परीक्षा की मेरिट सूचियों को लेकर ज्यादातर लोगों का कहना है था कि अब ऐसी सूचियों का महत्व ही नहीं रह गया है। जिस तरह से नकल और सौदेबाजी से मेरिट बिक रही है, उसके चलते प्रतिभाशाली और मेहनती छात्र भी संदेह की दृष्टि से देखे जाने लगे हैं।
इन्हीं प्रतिक्रियाओं के बीच बिहार इंटर परीक्षा की मेरिट में पहले स्थान पर आने वाली रूबी राय का एक बयान पढ़ने में आया। यह बयान शिक्षा और उससे जुड़ी, समाज की मानसिकता की कई और पोलें और परतें खोलता है। रूबी के हवाले से जो खबरें प्रकाशित हुई हैं, उनके मुताबिक गिरफ्तार हो गई इस लड़की ने जेल जाने से पहले विशेष जांच दल को बताया कि उसके पापा ने ही इंटर का फार्म बिशुन राय कॉलेज से भरवाया था। परीक्षा से पहले पापा ने कहा था कि रोल नंबर और हस्ताक्षर ठीक से कर आना। आगे हम देख लेंगे।
रूबी के मुताबिक उसके पापा ने परीक्षा के बाद उससे पूछा था कि कौनसा डिविजन चाहिए,तो उसने कहा था कि ज्यादा कुछ नहीं, बस सेकंड डिविजन ही आ जाए तो बहुत है। उसने माना कि परीक्षा में वो पर्चे ठीक से हल नहीं कर सकी थी। जो समझ में आया लिख दिया था। रूबी के मुताबिक बिशुन राय कॉलेज के प्राचार्य बच्चा राय रिश्ते में उसके चाचा लगते हैं।
बेउर जेल भेजे जाने से पहले रूबी ने पुलिस वालों से सवाल किया कि अंकल जेल से कितने दिन में छूट जाऊंगी? यह मासूम सा सवाल ही बताता है कि वो शातिरपन किसी और दिमाग का था, जिसकी वजह से रूबी आज इस हालत में पहुंच गई।
अगर रूबी की बात पर भरोसा किया जाए तो साफ है कि उससे ज्यादा दोषी तो उसके पिता और रिश्ते में लगने वाला वह चाचा है, जो परीक्षा केंद्र का प्रचार्य था। जो बच्ची अधिक से अधिक सेकंड डिविजन में पास हो जाने से ही खुद को धन्य मानती हो, उसे मेरिट लिस्ट में पहले स्थान पर स्थापित कर देने का षड़यंत्र रचने वालों का दोष उससे कहीं अधिक है। रूबी को निर्दोष नहीं कहा जा सकता, लेकिन असली अपराधी तो उसका पिता और कथित चाचा है। यह अपराध अपनी इच्छाएं बच्चों पर थोपने या अपनी प्रतिष्ठा को लेकर कुछ भी कर गुजरने की पराकाष्ठा का है। ऐसे में क्या रूबी से पहले उसके पिता को सजा नहीं मिलनी चाहिए?
पिछले दिनों दिल्ली में एक नाबालिग द्वारा, महंगी कार से एक व्यक्ति को कुचल डालने पर,कोर्ट ने फैसला दिया था कि, उस नाबालिग को बालिग मानते हुए उस पर आपराधिक केस चलेगा। बिहार मेरिट कांड में इसी तर्ज पर लड़की के पिता को वास्तविक दोषी मानते हुए,क्या पहले उसको सजा नहीं मिलनी चाहिए? उसी ने अपनी लड़की से कहा था ना कि, तू तो जो मन में आए लिख आना, बाकी सब मैं देख लूंगा। यानी अपराध की योजना बनाने से लेकर, उसे अंजाम देने का काम तो किसी और ने किया। इस मामले में धन का कितना लेन देन हुआ, यह तो जांच के बाद ही सामने आ सकेगा, लेकिन यदि वह हुआ है, तो वह सारा खर्चा भी उसके बाप ने ही किया होगा। ऐसा करके क्या उसने दूसरे प्रतिभावान बच्चों का हक मारने और उनके भविष्य की हत्या करने की सुपारी नहीं दे दी थी? दरअसल रूबी के परिवार वालों ने दोहरा अपराध किया है, पहला अपनी बच्ची का भविष्य बिगाड़ने का और दूसरा उससे भी बड़ा, बाकी बच्चों के भविष्य की हत्या करने का। ऐसे अपराध तो जघन्यतम अपराधों की श्रेणी में शुमार होने चाहिए, क्योंकि ये किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे समाज और पूरी पीढ़ी के खिलाफ होते हैं। मध्यप्रदेश के व्यापमं घोटाले में भी यही हुआ था और बिहार के मेरिट घोटाले में भी।
अब जरा मध्यप्रदेश की बेटी की बात भी कर लें। रूबी के विपरीत, अपनी प्रतिभा और मेहनत से 10 वीं की परीक्षा पास करने वाली सिदरा खान ने, खुद के साहस से अपने अच्छे नंबरों की लड़ाई तो जीत ली, लेकिन उसके खिलाफ जो अपराध हुआ उसका क्या? मान लिया कि उसकी कापियां जांचने वाले परीक्षक से अंकों को गिनने में गलती हुई। लेकिन जब सिदरा ने बाकायदा आवेदन देकर, अंकों की फिर से जांच कराई, तो कैसे आंख मूंदकर यह टका-सा जवाब दे दिया गया कि कोई गलती नहीं पाई गई। यदि सिदरा ने समझदारी दिखाते हुए अपनी उत्तरपुस्तिका की प्रतिलिप नहीं मंगवाई होती, तो इस बच्ची को पता ही नही चल पाता कि, उसके साथ कितना बड़ा अन्याय हुआ है। वह जिंदगी भर अपने आत्मविश्वास को लेकर हीन भावना का शिकार रहती।
बिहार में तो रूबी मामले में कार्रवाई हो गई, लेकिन जरा देखिए- लाड़लियों के इस प्रदेश में,एक लाड़ली के साथ इतना बड़ा अन्याय हुआ और सारे लोग मौज में हैं। होना तो यह चाहिए था कि शिक्षा तंत्र का हर वो पुर्जा, जो सिदरा को गलत सूचना देने के लिए जिम्मेदार था,24 घंटे के भीतर खूंटी पर टांग दिया जाता। ऐसा होता तो ऐसी घनघोर लापरवाही करने वालों को कठोर संदेश जाता। लेकिन जब सिस्टम चलाने वाले लोगों के खूंटे बहुत गहरे तक गड़े हों, तो उन्हें कौन खूंटी पर टांगे? हां ऐसे लोगों पर उंगली उठाने वाले जरूर कहीं न कहीं टांगे जा सकते हैं… सावधान रहिएगा!
गिरीश उपाध्याय