कबीर जयंती हालांकि 20 जून को बीत चुकी है। लेकिन कवि पत्रकार आलोक श्रीवास्‍तव ने कबीर जयंती पर उन्‍हें जो काव्‍यमय श्रद्धांजलि दी थी, वह आज हमारे हाथ लगी। सोचा इसे क्‍यों न अपने पाठकों से शेयर किया जाए। कबीर को याद करने के इस अंदाज पर आप भी फिदा हुए बिना नहीं रहेंगे-

हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या,
गुज़ारी होशियारी से, जवानी फिर गुज़ारी क्या.

धुएँ की उम्र कितनी है, घुमड़ना और खो जाना,
यही सच्चाई है प्यारे, हमारी क्या, तुम्हारी क्या.

उतर जाए है छाती में, जिगरवा काट डाले है,
मुई तनहाई ऐसी है, छुरी, बरछी, कटारी क्या.

तुम्हारे अज़्म की ख़ुशबू, लहू के साथ बहती है,
अना ये ख़ानदानी है, उतर जाए ख़ुमारी क्या.

हमन कबिरा की जूती हैं, उन्हीं के क़र्ज़दारी है,
चुकाए से जो चुक जाए, वो क़र्ज़ा क्या उधारी क्या.

(कबीर को श्रद्धा सहित समर्पित, जिनके मिसरे पर ये ग़ज़ल हुई)

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