मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में तीन चार दिनों से अजीब तमाशा चल रहा है। वैसे इस तमाशे की बुनियाद कई महीनों पुरानी है, लेकिन वह बुनियाद इन दिनों रह रह कर हिल रही है। यह ऐसी बासी कढ़ी है जिसमें आए दिन उबाल आ रहा है।
आपको याद होगा कि भोपाल में स्मार्ट सिटी बनाए जाने को लेकर पिछले दिनों काफी बड़ा पंगा हुआ था। जनमत संग्रह जैसे तमाशों के बाद शिवाजी नगर और तुलसी नगर इलाकों को स्मार्ट सिटी के लिए चुन लिया गया और बाकायदा उसका ऐलान करके भाई लोगों ने अपना‘काम’ भी चालू कर दिया था। उस फैसले के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए। हरियाली को खत्म करने के खिलाफ मजबूत दलील दी गई और दबाव इतना बढ़ा कि सरकार को वह योजना बदलनी पड़ी। मुख्यमत्री ने कहा- भोपाल की हरियाली किसी भी कीमत पर नष्ट नहीं होने दी जाएगी। स्मार्ट सिटी अब तुलसी नगर और शिवाजी नगर के बजाय नार्थ टीटी नगर में बनेगी।
यहां से अब नई कहानी शुरू होती है। पुरानी फाइल बंद होने के बाद भाई लोगों ने नए सिरे से ‘संभावनाएं’ तलाशीं और उस पर काम चालू कर दिया। भोपाल के लोगों ने भी मान लिया कि अब नई स्मार्ट सिटी वहीं बनेगी जहां के लिए मुख्यमंत्री ने घोषणा की है और जिस जगह का वे अपनी घोषणा के अगले ही दिन दौरा भी कर आए हैं। इस बीच इस मसले से जुड़ी तमाम खबरें अखबारों में छपती भी रहीं।
इससे पहले कि कहानी और आगे बढ़े एक क्षेपक कथा आपको बताना जरूरी है। दरअसल जिस जगह मुख्यमंत्री ने नई स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की है, उस जगह पर कुछ साल पहले भोपाल विकास प्राधिकरण अपनी ‘पुनर्घत्वीकरण’ की योजना घोषित करते हुए उस पर काम भी शुरू कर चुका था। यदि आपको यह ‘पुनर्घत्वीकरण’ शब्द हिन्दी में समझ में न आया हो तो मैं इसे अंग्रेजी में बता देता हूं। अंग्रेजी में इसे Redensification कहते हैं। यदि इससे भी कुछ समझ में नहीं आया हो, तो मैं कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि योजना बनाने वालों ने इसे इन्हीं दो नामों से पुकारा था। वैसे सरल भाषा में कहें तो भोपाल विकास प्राधिकरण ने नार्थ टीटी नगर को फिर से बसाने की योजना बनाई थी। कमोबेश वह भी स्मार्ट सिटी टाइप का ही मामला था।
खैर.. तो जब उस जगह पर मुख्यमंत्री ने नई स्मार्ट सिटी बनाने का ऐलान कर दिया तो,सामान्य बुद्धि वाला आदमी सोचेगा कि पुरानी योजना खत्म हो गई। लेकिन सरकारों में ऐसा नहीं होता। जमीन में कुआं भले न हो लेकिन कागजों पर वह जरूर होता है। ऐसा ही स्मार्ट सिटी मामले में भी हो रहा है। मुख्यमंत्री का ऐलान अपनी जगह है, लेकिन कागज में वो‘पुनर्घनत्वीकरण’ की योजना शायद पूरी तरह जिंदा है। और उसके जिंदा होने का सबूत तब मिला जब स्मार्ट सिटी के ‘महा एपीसोड’ में भोपाल नगर निगम और भोपाल विकास प्राधिकरण के बाद एक तीसरे कैरेक्टर ने धमाकेदार एंट्री की। खबरें छपीं कि संपदा संचालनालय नाम के इस कैरेक्टर ने उस इलाके में रहने वाले लोगों को ‘पुनर्घत्वीकरण’योजना पर अमल के लिए मकान खाली करने के नोटिस जारी कर दिए हैं। इन नोटिसों से हड़कंप मच गया। ऐन बारिश का मौसम सिर पर है, ऐसे में लोग इतनी जल्दी मकान खाली करके जाएं भी कहां और कैसे?
नोटिस मिले और हल्ला मचा तो पल्ला झाड़ने का काम शुरू हुआ। व्यवस्था में और कोई काम गंभीरता से हो या न हो लेकिन पल्ला झाड़ने का काम पूरी गंभीरता से होता है। एक अफसर ने बड़ी मासूमियत से कहा, हमें क्या मालूम कि स्मार्ट सिटी जैसी कोई योजना चल रही है। हमारे पास तो पुरानी फाइल रखी थी हमने उसी हिसाब से नोटिस जारी कर दिए। यानी कोई पुरानी फाइल हाथ लग जाए और उस पर चढ़ी धूल गलती से भी झड़ जाए तो बिना यह देखे कि वो फाइल कब की है और उस मामले की ताजा स्थिति क्या है, ये भाई लोग भारत को अविभाजित मानते हुए कराची या लाहौर में बैठे आदमी को भी भोपाल से नोटिस भेज सकते हैं। आप शायद हंसेंगे लेकिन यह संभव है कि कोई अफसर या बाबू ऐसा नोटिस जारी करने के बाद मासूमियत से यह तर्क भी दे दे कि मुझे क्या मालूम कि भारत का विभाजन हो गया है और लाहौर या कराची अब भारत में नहीं पाकिस्तान में हैं।
तो श्रीमान, आला हजरत… आपसे निवेदन है कि लोगों के साथ यह मजाक बंद करवाइए। एक दिन पीले चावल भेजकर उन तमाम विभागों को बुला लीजिए जिनका इस स्मार्ट सिटी के मामले से जरा सा भी लेना देना है। और अगर वे सरकार की बात सुनने और सुनने से भी ज्यादा उसे मानने को तैयार हों, तो उन्हें बता दीजिए कि बाबू साहब अब नार्थ टीटी नगर में स्मार्ट सिटी का प्रोजेक्ट ही आएगा। पुरानी सारी फाइलों को बराए मेहरबानी सोच समझ कर खोलें। इन सारे लकीर के फकीरों को समझाना हालांकि मुश्किल है, लेकिन उनसे साफ कह दीजिए कि यूं नोटिस-नोटिस खेलकर राजधानी के लोगों का जीना हराम न करें। इन सारे ‘कमाल के ढक्कनों’ को समझा दीजिए कि, वे जहां लगे हैं वहीं लगे रहें, क्यों खामखां जनता का और ‘जनता की सरकार’ का फजीता करने पर तुले हैं।
गिरीश उपाध्याय