डॉ. इकबाल मोदी
हाल ही में सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा खुलासा किया गया है कि प्रदेश भर में नए शासकीय भवनों के निर्माण के दौरान ठेकेदारों द्वारा घोर लापरवाही बरती गई है। अमूमन भवन बनाते वक्त न तो तकनीकी गुणवत्ता का ध्यान रखा जाता है ना ही लागत दर के हिसाब से क्वालिटी से काम किया जाता है। ठेकेदारों द्वारा प्रदेश सरकार से भरपूर पैसे भी लिए जाते हैं और घटिया स्तर का कार्य किया जाता है। मजे की बात यह है कि सरकार भी आमतौर पर ऐसे ठेकेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं करती। फिलहाल घटिया निर्माण के 1700 मामले प्रकाश में आए हैं। निर्माण कार्य में ठेकेदारों की लापरवाही पर नजर रखने वाला तकनीकी सतर्कता संगठन भी सुस्त है। जिससे ठेकेदारों के खिलाफ मामले सामने आने पर भी कोई जाँच नहीं हो पा रही है।
प्रदेश में इसी तरह नए पुल/पुलिया बनाते समय भी लापरवाही बरतने के कई प्रकरण देखे गए हैं। कई पुलों में दरारें आना एवं उनका धंसना आम बात हो गई है।
ऊपर से नीचे तक कमीशन का धंधा चलता है। इस तरह पूरे कुएं में ही भांग घुली है। भवन निर्माण में यदि कंपाउंड की दीवार में भी दरारें पड़ जाती हैं तो जाँच व जवाबदारी की मांग उठती है। लाखों-करोड़ों रुपए सड़कों की मरम्मत पर हर साल खर्च किए जाते है। लेकिन बार-बार सड़क खराब होने के कारणों के सूक्ष्म परीक्षण परिक्षण, जवाबदारी निर्धारण व स्थायी सुधार बाबद विचार आमतौर पर नहीं होता।
यह सही है कि किसी भी भवन या सड़क के नवीनीकरण या मरम्मत की आयु चार या पाँच वर्ष मानी जाती है और यह आवश्यक भी होता है। इस बीच हर वर्ष बारिश के कारण गड्ढे भी पड़ते हैं। जिनका सुधार सामान्य मरम्मत की श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में सामान्य श्रेणी से हटकर विशेष मरम्मत, बिना विशेष कारणों के नहीं होना चाहिए।
प्रदेश की शासकीय व अर्धशासकीय इकाइयां अभी भी घटिया सामग्री का उपयोग करती हैं। प्रयोग शालाओं से झूठी जाँच रिपोर्ट कागजों पर सही बताई जाती है। कई जगह घटिया सामग्री का उपयोग ही किया जाता है। विगत वर्षों से भवानों की दशा निरंतर बिगड़ती जा रही है। हर साल वर्षाकाल में छतें टपकने, दीवार धंसने, सड़कों में गड्ढे होने की ढेरों शिकायतें होती हैं।
प्रदेश के उन इलाकों में जहां ग्रेनाइट स्टोन व लाइम स्टोन की प्रचुरता है वहां से ली जाने वाली मुरम,गिट्टी व अन्य सामग्री ठीक होने के कारण उन इलाकों के भवनों व सड़कों की दशा अच्छी देखने में आती है। आगरा-मुंबई मार्ग मुरैना से शिवपुरी के बीच अच्छी दशा में मिलता है। मगर मालवा क्षेत्र शुरू होते ही सड़कें व भवन खस्ताहाल दिखते हैं। जमीन रेतीली हो तो भवन अच्छे व मजबूत होते है। लेकिन काली मिट्टी में धंसने लगते हैं। हम जमीन को तो बदल नहीं सकते परंतु घटिया सामग्री के उपयोग से तो बाज आ सकते है।
जिस गुणवत्ता की ईंट सीमेंट, गिट्टी, मुरम प्रदेश के अधिकांश भागों में मिलती है, वह भवन निर्माण व मरम्मत के लिये कतई उपयुक्त नहीं होती। सामान्यतः यह देखा जाता है कि ऐसे निर्माण व रिपेयर कभी टिकाऊ नहीं रहते। और इस प्रकार के घटिया निर्माण की जांच और दोषियों पर कार्रवाई न होने से ऐसे निर्माण कार्यों को और बढ़ावा मिल रहा है। प्रदेश में हर जगह ऐसे कई शासकीय भवन ऐसी बदतर हालत में हैं, जिसे बयान नहीं किया जा सकता। सवाल यह है कि ये हालात बदलने की चिंता सरकार में क्यों दिखाई नहीं देती।