प्रिय पाठको, स्टार टीवी नेटवर्क के मीडिया प्रोफेशनल हैदर अब्बास नकवी की कहानी ‘मोहम्मद की गाय’ के पहले भाग में आपने पढा़ कि मोहम्मद अपने घर में पली बढ़ी गाय ‘गौरी’ को तबेले में छोड़ आया। वहां गौरी पर क्या बीती, पढि़ए आज इस कहानी के दूसरे और अंतिम भाग में-
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वक्त बीता तो गौरी को किसी से और किसी को गौरी से कोई परेशानी नहीं रही, सब कुछ पहले जैसा समान्य हो चुका था। धीरे धीरे गौरी के चर्चे नाभा के गांवों से निकल कर पंजाब के दूसरे कस्बों और जिलों में होने लगे।
धार्मिक आयोजनों में गौरी का आना जाना शुरू हो गया और बात से बात फैलती गई.. कि अलीपुर गांव में एक मुसलमान की गाय है और लोगों ने गौरी को अपने कार्यक्रमों और आयोजनो में बुलाना अपनी शान और सम्मान का सवाल बना लिया शायद यहीं से मोहम्मद और गौरी के रिश्तों का बुरा दौर शुरू हो गया।
बातों से बहस शुरू हुई और बहस पूरे शहर में फैल गई “क्या एक दूसरे मजहब का आदमी किसी दूसरे मजहब के पूजनीय पशु को लेकर धार्मिक आयोजनो में जा सकता है’’ ।
दूसरी बहस थी “क्या दूसरे धर्म के व्यक्ति से धार्मिक आयोजनो में पशु को मंगवाया जा सकता है’’। सीधे अल्फाज में कहें तो “मुसलमान की गाय हो सकती है क्या?” और ’’मुसलमान की गाय को धर्म के कामों में इस्तेमाल करना कितना ठीक है?”
जुमे में जब मोहम्मद नमाज़ पढ़ने गया तो वहां उसके धर्म वालो ने घेर लिया कहा..“क्या कुफ़्र कर रहे हो, हिन्दुओं की पूजा में जा रहे हो वो भी अपनी गाय लेकर, मुसलमान की गाय हिन्दुओं के यहां और वो भी पूजा पाठ में’’। “गाय से क्या तुम भी दुआ मांगने लगे हो’’ मोहम्मद चुप रहा, नमाज़ पढ़ी और घर वापस आ गया।
शाम को तबेले गया तो मोतीराम मिल गये बोले “देख मोहम्मद यह गो से अपना नाता तोड़ दे, तेरे पास भैंसें हैं और तेरा ठीक ठाक काम चल रहा है’’।
‘’हम इसको माता मानते है और कोई भी अपनी माता का अपमान नही सहन कर सकता’’, यह कह कर मोतीराम चले गये। मोहम्मद चुप रहा और जा कर गौरी के पास बैठ गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि उससे और उसकी गौरी से लोग इतने ख़फा, क्यों हो गये हैं। उसने गौरी के मुंह पर हाथ रखा और गौरी उसके हाथ को फिर से चाटने लगी और मोहम्मद के चेहरे पर दिख रहे तनाव को समझने की कोशिश करने लगी ।
आये दिन मोहम्मद से गौरी के रिश्ते को लेकर लोग बहस शुरू कर देते, कुछ दायरे में कुछ दायरे के बाहर आकर, लेकिन मोहम्मद भी डट कर उन सवालों का सामना करता, जवाब देता और अपना एतराज़ जाता।
देखते देखते लोगों की नागवारी बढ़ती जा रही थी, लेकिन मोहम्मद और गौरी के बीच, इसका कोई असर नहीं पड़ा वो वैसे ही मोहम्मद से मिलकर उसका हाथ चाटती और मोहम्मद उसी तरह से ही उसके सिर पर हाथ फेरता।
एक रात मोतीराम अपने दो साथियों के साथ मिलकर कर मोहम्मद के तबेले में घुस गया। वहां काम करने वाले को कंबल में लपेट कर बांध दिया और गौरी को खोलने के लिये जैसे ही हाथ बढ़ाया तभी गौरी ने अपने पैने सींगों को ज़ोर से घुमाया और मोतीराम के साथ आये बंदे के गाल में ऐसा निशान मारा कि उसकी हिम्मत जवाब दे गई। उसके भागते ही बाकी साथियों ने कोशिश नहीं की और सब वहां से निकल गये।
सुबह थाने में शिकायत दर्ज कराई गई, दरोगाजी ने जगह का मुआयना किया। दोनो पार्टियों को बुलाया गया। बात मिल कर खत्म करने को कहा, पर जो खत्म हो जाये वो बात कहां, उस वक्त के लिये दोनों ने बात को वहीं पर रोक दिया ।
गौरी और मोहम्मद की ज़िन्दगी में कुछ दिन के लिये ही सही, पर सुकून आ गया।
लेकिन ज़िन्दगी में मुसीबतें आनी होती हैं तो फिर क्या भगवान क्या अल्लाह सब ही तमाशबीन बन जाते हैं। बकरीद में देश के एक राज्य में गो हत्या के शक या जुर्म में एक आदमी की भीड़ ने हत्या कर दी।
जिससे पहले उस राज्य में तनाव हुआ फिर यह आग धीरे घीरे जहां मौका मिला वहां लग गई।
मोहम्मद का गांव अलीपुर भी इससे नहीं बचा और इसकी चिंगारी गौरी और मोहम्मद पर गिर पड़ी, किसी ने कहा गौरी को छोड़ दो, किसी न कहा बेच दो, किसी ने कहा हमें दे दो। वो कुछ दिन मोहम्हद की जिन्दगी के बुरे दिनों में से एक थे… तनाव बढ़ता जा रहा था ।
मोहम्मद की बिरादरी वाले उससे मिलने आये और कहा “इस गौरी के चक्कर में तुम मारे जाओगे। इसे हमें दे दो हम अपना काम कर देंगे’’, मोहम्मद कुछ नहीं बोला लेकिन उसकी आंखों ने एक फैसला कर लिया था।
अचानक गौरी गायब हो गई, पूरे गांव में शोर मच गया। ढुंढाई शुरू हो गई… जहां-जहां उम्मीद थी उन सारी जगहों को तलाशा गया, हर कहीं देख डाला गया पर गौरी कहीं नहीं मिली, बात बवाल में बदल गई और किसी ने कह डाला “मोहम्मद ने अपनी गाय काट दी’’।
दूसरे दिन सुबह जब मोहम्मद अपने तबेले के लिये निकला तो घात लगाये लोगों ने घेर लिया। पहले बात फिर थप्पड़, लात, घूंसे… और आखिर में डंडे चले। मोहम्मद अपनी जान बचा कर भागा। भीड़ उसके पीछे थी। मोहम्मद की आवाज में दर्द था वो पास के खेत में घुसा… और ज़ोर से चिल्लाया “गौरी… रीरीरी…
लोगों ने उस पर लाठियों से हमला किया, अचानक खेत में कुछ हलचल हुई और सब की नज़र जब उठी तो सामने गौरी थी।
मोहम्मद ने अपनी बिरादरी से बचाने के लिये गौरी को यहां रखा था लेकिन अब गौरी की बिरादरी सामने थी, और दोनों बिरादरियों के सामने मोहम्मद और गौरी।
गौरी वो मां लग रही थी जिसके सामने उसके बच्चे की जिन्दगी खतरे में हो। गौरी क्या करेगी यह शायद भीड़ ने सोचा नहीं था। डंडे अभी मोहम्मद को पड़ कर ऊपर ही उठे थे कि गौरी ने अपने पैने सींगों से भीड़ को तितर बितर कर दिया ।
भीड़ अब तक जो मोहम्मद को मार रही थी अचानक अपने आप को बचाने के लिये गौरी पर टूट पड़ी… और आस्था- धर्म-मुहब्बत सब लाल रंग में बहा गई…
मोहम्मद का हाथ गौरी के मुंह पर था लेकिन इस बार गौरी उसे चाट नहीं रही थी। इससे पहले पुलिस पहुंचती दंगाई अपने रास्ते हो लिये थे। तब ना ही उन्होंने मोहम्मद का ख्याल रहा और ना ही गौरी मां का, बस खेतों पर पड़ी रह गई, दो जानें ..
एक मोहम्मद की और एक मोहम्मद की गाय… गौरी की ।
समाप्त
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संपादक
I like the story Mohammed ke gay a very much .everyone of us should respect all religion .animals dont understand religion. They just know the love toward’s them.
well said Priya. Thanks for comment. plz keep continue viewing madhyamat.com and post your suggestion for its improvement.
Editor
बहुत ख़ूब हैदर भाई। ऐसे ही लिखते रहें।