भोपाल, जून 2016/ मध्यप्रदेश में राज्यसभा का चुनाव बहुत दिलचस्प हो गया है। आमतौर पर राज्यसभा की सीटों का चुनाव बिना मतदान के ही होता रहा है लेकिन इस बार राज्य में मतदान होगा। मध्यप्रदेश से राज्यसभा की कुल तीन सीटें हैं जिनमें से कायदे से भाजपा को दो और कांग्रेस को एक सीट मिल जानी चाहिए थी। लेकिन भाजपा ने कांग्रेस की राह में मोटा रोड़ा डालते हुए निर्दलीय के रूप में अपने प्रदेश महामंत्री विनोद गोटिया को मैदान में उतार दिया। चूंकि सारे उम्मीदवारों के फार्म ठीक पाए गए हैं इसलिए अब मतदान से ही फैसला होगा।
हाल ही में विधानसभा की घोड़ाडोंगरी सीट के लिए हुए उपुचनाव में मिली जीत से भाजपा का हौसला बुलंद है। चूंकि तीसरी सीट के लिए फैसला जोड़ तोड़ से ही होना है इसलिए भाजपा और कांग्रेस ने इसी काम में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। यानी घोड़ाडोंगरी के बाद अब सारा ध्यान घोड़ों की खरीद फारोखत पर लग गया है।
अब तक 58-58 वोटों के साथ भाजपा के वर्तमान सांसद अनिल दवे एवं एम.जे. अकबर और प्रथम वरीयता के 57 वोटों के साथ कांग्रेस के प्रत्याशी, वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा का चुना जाना तय था। लेकिन विनोद गोटिया के मैदान में आ जाने के कारण तन्खा की राह कठिन हो गई है। 230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में भाजपा के पास 165 और कांग्रेस के पास 57 विधायक हैं। बसपा के चार और तीन निर्दलीय विधायक हैं। चुनाव जीतने के लिए हरेक उम्मीदवार को प्रथम वरीयता के 58 वोट चाहिए। इस गणित के हिसाब से दो सीटें जीतने के बाद भी भाजपा के पास 49 वोट अतिरिक्त हैं। राज्यसभा की तीसरी सीट जीतने के लिए उसे 8 मतों की जरूरत होगी। यदि वह बसपा के 4 और 3 निर्दलीय विधायकों को फोड़ लेती है तो मुकाबला 57-57 पर बराबर हो जाएगा और वैसी स्थिति में फैसला दूसरी वरीयता के वोटों पर निर्भर करेगा। जाहिर है अधिक संख्याबल होने के कारण दूसरी वरीयता का पलड़ा भाजपा के पक्ष में भारी होगा। कांग्रेस की चिंता भी यही है।