डॉ. इकबाल मोदी
मध्यप्रदेश सरकार ने इस वर्ष चार हजार नई आंगनबाड़ी खोलने और 600 मिनी आंगनबाड़ी केन्द्र स्थापित करने का ऐलान किया है। लेकिन प्रदेश में जो आंगनबाड़ी पहले से संचालित हैं, उनके हाल बेहाल है। इनके पास न तो भवन है, न ही कोई सुविधा। पहले उन्हें उन्नत किया जाना चाहिए। उन्हें सर्वसुविधा युक्त बनाना जाना चाहिए। प्रदेश में नई आंगनबाड़ी खोलने का कोई औचित्य नहीं है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं का कुपोषण दूर करने वाले करीब आधे आंगनबाड़ी केन्द्र खुद किराये के आंगन में संचालित हो रहे हैं। किराये के भवनों में आंगनबाड़ी के सुचारू संचालन में विभाग को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यह व्यवस्था सरकारी जमीन की कमी के चलते मजबूरी में अपनाई जा रही है। प्रदेश के 53 हजार गांवों में गर्भवती महिलाओं व बच्चों को कुपोषण से बचाव के कार्यक्रम आंगनबाड़ी केन्द्रों में होते है, परंतु अधिकतर केन्द्रों की स्थिति दयनीय है। कई केन्द्र लोगों द्वारा मुफ्त में उपलब्ध कराई गई जगहों पर चल रहे है या आंगनवाडी किसी मंदिर परिसर में लग रही है।
किराये के भवनों में संचालित हो रहे आंगनबाड़ी केन्द्रों की भी अपनी परेशानियां होती है, कई मकान मालिक अपनी शर्तों पर भवन किराये पर देते है, जिनमें दीवारों पर पेटिंग या लिखावट न करना शामिल होता है, तो बच्चों को लेकर कुछ खास निर्देश भी दिये जाते है। ऐसे में कार्यकर्ताओं को शासन की कई योजनाओं के संचालन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही आंगनबाड़ी केन्द्र कभी भी खाली कराये जाने का अंदेशा बना रहता है। इससे प्रदेश में कुपोषण मिटाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। लगभग एक हजार की आबादी पर एक आंगनबाड़ी खोलने का शासन का प्रावधान है तथा तीन सौ की आबादी वाले छोटे ग्रामों में एक मिनी आंगनबाड़ी केन्द्र खोला जाता है। जिसमें छ: माह के बच्चों को ऊपरी आहार देने के लिये अन्न प्राशन, गर्भवती महिलाओं की गोदभराई रस्म, पाँच वर्ष तक के बच्चों का संपूर्ण टीकाकरण बचाव एवं किशोर बालक एवं बालिकाओं को एनीमिया से बचाव हेतु परामर्श व आयरन फोलिक एसिड की गोलियों का सेवन जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया जाता है। इसके अलावा पोषण आहार वितरण, बच्चों के जन्दिवस मनाना, कुपोषण शिविर आयोजित करना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिये जागरूकता अभियान चलाना, लाड़ली लक्ष्मी योजना, वजन मेला, बाल सुरक्षा अभियान तथा महिला स्वास्थ्य शिविर जैसी गतिविधियाँ होती रहती है। अतएव प्रदेश के आंगनबाड़ी केन्द्रों के लिये स्वयं के भवन होना, नितान्त आवश्यक है। जहां पर शौचालय, बाथरूम किचन शेड, फुलवाड़ी की भी दरकार है। ग्रामीण क्षेत्रों में और अनपढ़ लोगों में कुपोषण और स्वास्थ्य की चर्चा करना परिवार कल्याण कार्यक्रम को अपनाने की भावना जगाने का कार्य अमूमन बहुत ही टेढ़ी खीर है। परंतु ऐसे दूरदराज क्षेत्रों और समुदाय में भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता मेहनत एवं लगन से कार्य कर रहे है। उन्हें नाममात्र का मान देय दिया जाता है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता प्रत्येक शिशु के लिये वृद्धि मापने के चार्ट का प्रयोग करती है। प्रत्येक बच्चे का वजन तौला जाता है और उसके वजन को वृद्धि चार्ट पर अंकित किया जाता है। पांच वर्ष से कम आयु के बालक और बालिकाओं के चार्ट अलग-अलग होते है।
हालांकि एक सर्वेक्षण के अनुसार स्कूल जाने की उम्र से छोटे बच्चों के मानव मितिक (आयु के लिये भार) के साथ-साथ नैदानिक स्तर के संदर्भ में पिछले वर्षों में कुपोषण कम हुआ है। असुरक्षित वर्गों में पोषकों के औसत उपयोग में सुधार करने के लिये प्रदेश सरकार ने कई कदम उठाये है। एक से पांच वर्ष तक के बच्चों में विटामिन ‘ए’ की कमी को रोकने के लिये अभियान भी चलाया गया है। गर्भावस्था और दूध पिलाने वाली अवस्था (धात्री महिला) के दौरान स्कूल जाने की उम्र से छोटे बच्चों और महिलाओं के बीच में नाजुक अंतर को भरने के लिये एकीकृत बाल विकास सेवा योजना के अंतर्गत पूरक पोषण आहार कार्यक्रम क्रियान्वित किया है। फिर भी अक्सर घटिया और निम्न स्तर के पोषण आहार की शिकायतें आए दिन मिलती रहती है। अतः प्रदेश सरकार को कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलाने के लिये इस दिशा में नये सिरे से प्रयास करना चाहिए।