जो लोग मध्यप्रदेश में नहीं रहते और इस प्रदेश को कम जानते हैं, उनके लिए मैं बता दूं कि पश्चिमी मध्यप्रदेश में एक जिला है बड़वानी। अंचल के लिहाज से यह निमाड़ क्षेत्र में आता है। पहले निमाड़ क्षेत्र में दो ही जिले होते थे, पूर्वी निमाड़ यानी खंडवा और पश्चिमी निमाड़ यानी खरगोन। बाद में 1998 में खरगोन जिले को काटकर एक नया जिला बड़वानी बनाया गया और 2003 मे खंडवा जिले को काटकर नए जिले बुरहानपुर का गठन हुआ।
नर्मदा किनारे बसा बड़वानी बहुत चर्चित जिला रहा है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की गतिविधियों और आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने इसे और सुर्खियों में ला दिया था। भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय ने 2006 में देश के जिन सर्वाधिक पिछड़े 250 जिलों की सूची बनाई थी, उनमें बड़वानी भी शामिल था। इससे पहले कि आप मुझ पर यह आरोप लगाएं कि मैं बहक गया हूं और खबर की बात करने के बजाय भूगोल पढ़ाने लगा हूं, तो मैं साफ कर दूं कि मेरी रुचि भूगोल में नहीं बड़वानी में है। मैं इस जिले को लेकर बहुत चिंतित हूं। और इसी चिंता ने मुझे इसके बारे में बात करने पर मजबूर किया है।
खबरों में बड़वानी का जिक्र कई बार होता रहा है। पिछले साल दिसंबर माह में इसी बड़वानी के जिला अस्पताल में लगे आई कैम्प में स्वास्थ्य अमले की लापरवाही के चलते करीब 40 लोगों को अपनी आंखें गंवानी पड़ी थीं।
अभी अभी यह जिला उस समय चर्चा में आया जब यहां के कलेक्टर अजय गंगवार ने फेसबुक पर एक पोस्ट डालकर नेहरू गांधी सरकार की नीतियों की सराहना करते हुए, परोक्ष रूप से मोदी सरकार की आलोचना की। उस आलोचना के बाद सरकार ने गंगवार साहब को तत्काल कलेक्टर पद से हटा कर मंत्रालय में अटैच कर दिया।
सबसे ताजा मामला मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह द्वारा ली गई ‘ग्राम उदय से भारत उदय’ अभियान की समीक्षा बैठक का है। इसमें जिले के प्रभारी और राज्य के श्रम मंत्री अंतरसिंह आर्य ने शिकायत की कि बड़वानी जिला कलेक्टर किसी की नहीं सुनते और वहां सरकारी योजनाओं का काम बहुत ढीला चल रहा है। आदिवासियों को पट्टे नहीं मिल रहे हैं। मंत्री तो और भी बहुत कुछ कहना चाहते थे, लेकिन इंदौर संभाग के आयुक्त संजय दुबे ने बात संभाली और बाद में खुद मुख्यमंत्री ने मामले को आगे न बढ़ने देते हुए अफसरों को हिदायत दी कि ऐसी शिकायत दुबारा नहीं आनी चाहिए।
अब सवाल यह है कि प्रभारी मंत्री किस पर उंगली उठा रहे थे। जब प्रधानमंत्री द्वारा घोषित ‘ग्राम उदय से भारत उदय’ अभियान चला तब और उससे पहले तो बड़वानी में श्री अजय गंगवार ही कलेक्टर थे। उन्हें फेसबुक पोस्ट कांड के बाद सरकार ने 26 मई की रात को हटाया। वहां तेजस्वी नायक को नया कलेक्टर 30 मई को बनाया गया। ऐसे में साफ है कि प्रभारी मंत्री ने जिसे निशाना बनाया है वे गंगवार ही हैं।
मंत्री की इस शिकायत के दो पहलू हो सकते हैं। पहला तो यह कि श्री गंगवार बड़वानी में कलेक्टर रहते हुए काम करने के बजाय राजनीति कर रहे थे। उनका मन सरकार की योजनाओं को क्रियान्वित करने के बजाय, सोशल मीडिया पर राजनीतिक टाइप की टिप्पणियां करने में ज्यादा लग रहा था। हो सकता है कि इस कारण वहां सत्तारूढ़ दल के सदस्यों में उनके व्यवहार को लेकर असंतोष हो और गंगवार की नेहरू के समर्थन में की गई टिप्पणी का एक सिरा उससे भी जुड़ता हो।
मामले का दूसरा पहलू यह है कि गंगवार की फेसबुक टिप्पणी के मामले में ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ को मुद्दा बनाकर सरकार की घेराबंदी का दायरा बढ़ता जा रहा है। खुद प्रदेश के कई अफसरों ने गंगवार के खिलाफ की गई कार्रवाई को गलत बताया है। कर्मचारी संगठनों में भी सरकार की कार्रवाई को लेकर मिलीजुली प्रतिक्रिया हुई है। तो क्या यह माना जाए कि ग्राम उदय से भारत उदय अभियान की समीक्षा के लिए कलेक्टरों के साथ हुई वीडियो कान्फ्रेंसिंग में अंतरसिंह आर्य ने जानबूझकर गंगवार को निशाना बनाया। ‘’मेरे जिले मे काम नहीं हो रहे और आदिवासियों को पट्टे नहीं दिए जा रहे’’- यह आरोप लगा कर क्या आर्य यह जता रहे हैं कि गंगवार एक नाकारा अफसर हैं? आर्य का दूसरा आरोप तो और भी संगीन है कि कलेक्टर किसी की सुनते ही नहीं हैं। यानी राज्य का एक मंत्री, आईएएस अधिकारी गंगवार को परोक्ष रूप से तानाशाह बता रहा है।
कहना मुश्किल है कि दोनों बातों में से सच क्या है। यह भी हो सकता है कि दोनों ही बातों में सचाई का थोड़ा थोड़ा अंश हो। लेकिन मेरी चिंता बड़वानीवासियों को लेकर है। राजनीति और प्रशासन की इस खींचतान में वे बेचारे कहां जाएं? उनके कलेक्टर को सरकार की नीतियों में भरोसा नहीं, उनके प्रभारी मंत्री को कलेक्टर में भरोसा नहीं, ऐसे में वे क्या करें? जिले के लोगों से क्षमायाचना के साथ मेरा एक सुझाव है। जब तक सरकार और अफसरशाही ‘बड़वानी’ के बारे में बड़े दिल से नहीं सोचती तब तक क्यों न जिले का नाम ‘छोटवानी’ रख दिया जाए।
आप क्या कहते हैं…
गिरीश उपाध्याय