गुलमोहर यानी स्‍वर्ग का फूल

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गुलमोहर यानी स्‍वर्ग का फूल

मुंबई से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘हिन्‍दी विवेक’ की कार्यकारी संपादक पल्‍लवी अनवेकर ने अपनी फेसबुक वॉल पर जब फूलों से लदे फदे गुलमोहर के पेड़ का फोटो डाला तो इस पेड़ को लेकर कई सारी बातें शेयर करने का मन हुआ। अंगारों जैसे लाल रंग वाले गुलमोहर की जन्मभूमि मेडागास्कर को माना जाता है। कहते है कि सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने मेडागास्कर में इसे देखा था। 18 वीं शताब्दी में फ्रेंच किटीस के गवर्नर काउंटी डी पोएंशी ने इसका नाम बदल कर अपने नाम से मिलता-जुलता नाम पोइंशियाना रख दिया। बाद में यह सेंट किटीस व नेवीस का राष्ट्रीय फूल भी बनाया गया। रॉयल पोइंशियाना के अलावा इसे अंगारों जैसे रंग के कारण ‘फ्लेम ट्री’ के नाम से भी जाना जाता है। फ्रांसीसियों ने संभवत: गुलमोहर का सबसे अधिक आकर्षक नाम दिया है, उनकी भाषा में इसे स्वर्ग का फूल कहते हैं। वास्तव में गुलमोहर का सही नाम ‘स्वर्ग का फूल’ ही है। भरी गर्मियों में गुलमोहर के पेड़ पर पत्तियाँ तो नाममात्र होती हैं, परंतु फूल इतने अधिक होते हैं कि गिनना कठिन। यह भारत के गरम तथा नमी वाले स्थानों में सब जगह पाया जाता है। गुलमोहर के फूल मकरंद के अच्छे स्रोत हैं। शहद की मक्खियाँ फूलों पर खूब मँडराती हैं। मकरंद के साथ इन्‍हें इन फूलों से पराग भी प्राप्त होता है। फूलों से परागीकरण मुख्यतया पक्षियों द्वारा होता है। सूखी कठोर भूमि पर खड़े पसरी हुई शाखाओं वाले गुलमोहर पर पहला फूल निकलने के एक सप्ताह के भीतर ही पूरा वृक्ष गाढ़े लाल रंग के अंगारों जैसे फूलों से भर जाता है। ये फूल लाल के अलावा नारंगी, पीले रंग के भी होते हैं।

भारत में इसका इतिहास करीब दो सौ वर्ष पुराना है। संस्कृत में इसका नाम ‘राज-आभरण’ है, जिसका अर्थ राजसी आभूषणों से सजा हुआ वृक्ष है। गुलमोहर के फूलों से भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के मुकुट का शृंगार किया जाता है। इसलिए संस्कृत में इस वृक्ष को ‘कृष्ण चूड’ भी कहते हैं। भारत के अलावा यह पेड़ युगांडा, नाइजीरिया, श्रीलंका, मेक्सिको, आस्ट्रेलिया तथा अमेरिका में फ्लोरिडा व ब्राजील में खूब पाया जाता है। आजकल इसके वृक्ष यूरोप में भी देखे जा सकते हैं। मेडागास्कर से इस पेड़ का विकास हुआ पर अब वहां यह लुप्त होने की दशा में है इसलिए इसकी मूल प्रजाति को अब संरक्षित वृक्षों की सूची में शामिल कर लिया गया है।

वसंत से गर्मी तक यानी मार्च अप्रैल से लेकर जून जुलाई तक गुलमोहर अपने ऊपर लाल नारंगी रंग के फूलों की चादर ओढ़े, भीषण गर्मी में, देखने वालों की आंखों को ठंडक का अहसास देता है। इसके बाद फूल कम होने लगते हैं पर नवंबर तक पेड़ पर फूल देखे जा सकते हैं। इसकी इसी विशेषता के कारण पार्क, बगीचे और सड़क के किनारे इसे खूब लगाया जाता है।

गुलमोहर के फूलों के खिलने का मौसम अलग अलग देशों में अलग अलग होता है। दक्षिणी फ्लोरिडा में यह जून के मौसम में खिलता है तो कैरेबियन देशों में मई से सितम्बर के बीच। भारत और मध्यपूर्व में यह अप्रैल-जून के मध्य फूल देता है। आस्ट्रेलिया में इसके खिलने का मौसम दिसम्बर से फरवरी है जब इसको पर्याप्त मात्रा में गरमी मिलती है। उत्तरी मेरीयाना द्वीप पर यह मार्च से जून के बीच खिलता है।

भारत में केरल में इसे ‘कालवरिप्‍पू’ कहा जाता है जिसका अर्थ है कालवरी का फूल। सेंट थॉमस ईसाइयों में यह मान्‍यता है कि जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था तो उनके क्रॉस के नजदीक ही गुलमोहर का छोटा सा पेड़ था। ईसा मसीह के खून के छींटे जब उस पेड़ पर पड़े तो उसके फूलों का रंग सुर्ख हो गया।

प्रसिद्ध गीतकार गुलजार ने गुलमोहर पर एक सुंदर गीत लिखा है। किशोर कुमार और लता मंगेशकर द्वारा गाया यह गीत 1978 में आई फिल्‍म ‘देवता’ में राकेश रोशन और सारिका पर फिल्‍माया गया है। इस लिंक पर क्लिक करें और सुनें यह मीठा गीत-

https://www.youtube.com/watch?v=M9JSmhB-rRg

 

2 COMMENTS

  1. धन्यवाद गिरीश जी
    पोस्ट के साथ मराठी में लिखी मेरी कविता यहां प्रस्तुत है।
    गुलमोहर

    लाल पिवळा केशरी, प्रसन्न रंगांचा गुलमोहर|
    पाहता क्षणी मोहात पाडणारा गुलमोहर|
    सूर्याची तीव्रता सहन करणारा गुलमोहर|
    सहन करूनही बहरणारा गुलमोहर|
    असह्य होता एखाद्या क्षणी पाने गाळणारा गुलमोहर|
    पाने नसताना फुलांनीच नटलेला गुलमोहर|

    बाग नको रान नको वाटेकिनारी उगवे गुलमोहर|
    स्थानापेक्षा उत्थानाला महत्व देई गुलमोहर|
    कोमेजता सगळी फुले उमलतो गुलमोहर|
    रुक्ष वातावरणात ही आनंद देतो गुलमोहर|
    विपरीत असूनही परिस्थितिशी झगडतो गुलमोहर|
    ताठ मानेन जगायला शिकवितो गुलमोहर|
    पल्लवी अनवेकर

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