देश का भविष्य तय करने वाले लोग इन दिनों प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर राजनीतिक नाटकबाजी में उलझे हैं। चूंकि उन्हें मोदी की डिग्री में हुई या न हुई स्पेलिंग मिस्टेक की ज्यादा परवाह है इसलिए शायद उनका ध्यान राजस्थान के कोटा से आने वाली भयानक खबरों की ओर नहीं जा पा रहा होगा। लेकिन कोटा से जो खबरें आ रही हैं, वे हमारे नेताओं के लिए भले ही प्राथमिकता का विषय न हों, लेकिन समाज के लिए यह सर्वोच्च प्राथमिकता और तत्काल ध्यान देने का मामला है।
कोटा में गत 28 अप्रैल को गाजियाबाद की एक लड़की ने बहुमंजिला इमारत से कूद कर जान दे दी थी। कृति त्रिपाठी नामक 17 साल की यह लड़की वहां जेईई मेन्स की तैयारी कर रही थी और बताया जाता है कि उसने आईआईटी जैसे संस्थानों में प्रवेश के लिए जरूरी परीक्षा में कट आफ नंबरों से 44 अंक ज्यादा पाए थे।
कृति ने अपने सुसाइड नोट में एक ऐसी बात लिखी है जो शिक्षा पूरी करने में लगे बच्चों की मनस्थिति को तो उजागर करती ही है, वह उन मां बाप के लिए भी चेतावनी है, जो बच्चों की स्वाभाविक प्रतिभा को पुख्ता करने के बजाय उनमें कृत्रिम तरीकों से प्रतिभा या योग्यता को ठूंस देना चाहते हैं।
सुसाइड नोट में कृति ने भारत सरकार और मानव संसाधन विकास मंत्रालय से गुजारिश की है कि ‘’जिनता जल्दी हो सके, कोचिंग इंस्टीट्यूट को बंद कर दें। क्योंकि वे आपको चूस लेते हैं।‘’
पांच पन्नों के इस नोट में इस बच्ची ने खुद की पीड़ा को उजागर करते हुए अपनी दोस्त को लिखा कि ‘’मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है, खुद से नफरत करना बहुत दर्दनाक है। मेरे आसपास रहने वाले लोग समझते हैं कि मैं खुद को नहीं मार सकूंगी और मेरे पास इसके लिए कोई वजह भी नहीं है। लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि मेरे अंदर क्या चल रहा है।”
पुलिस मामले की जांच कर रही है, हो सकता है आत्महत्या की वजह उसके बाद ही पता चले। लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्रालय से कृति ने जो गुजारिश की है वह ध्यान देने वाली है। इन दिनों मां बाप बच्चों को स्कूल के अलावा धड़ाधड़ कोचिंग की भट्टी में झोंक रहे हैं। वहां उन पर मां बाप की अपेक्षाओं का दबाव तो होता ही है, कोचिंग संस्थानों का अपनी साख और रैंकिंग का दबाव उससे कई गुना अधिक होता है। वे एक तरह से बच्चों की ‘चमड़ी उधेड़कर’ उन्हें रैंक की रेस में दुड़वाते हैं और अपने संस्थान का नाम सबसे ऊपर बनाए रखने के लिए कई तरह के वाजिब-गैरवाजिब हथकंडे अपनाते हैं। कोटा जैसे शहर तो देश में कोचिंग की ऐसी मंडी हो गए हैं, जहां बच्चों के शरीर और दिमाग दोनों को निचोड़ लेने का कारोबार चल रहा है।
कोटा में लगातार हो रही कोचिंग छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं से विचलित वहां के कलेक्टर रवि कुमार ने तो पिछले दिनों विद्यार्थियों के अभिभावकों को सार्वजनिक रूप से पत्र लिख गुजारिश की कि वे अपनी इच्छाएं थोपने के बजाय बच्चों को उनकी मनचाही पढ़ाई करने दें।
बच्चों पर पढ़ाई के दबाव के साथ दूसरों की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का इतना अधिक तनाव है कि, पिछले साल कोटा में करीब 30 छात्रों ने आत्महत्या की थी और इस साल यह आंकड़ा अब तक पांच हो चुका है। कलेक्टर ने अभिभावकों से अनुरोध किया है वे बच्चों पर अपनी इच्छाएं थोपने के बजाय उकनी क्षमताओं, रुचियों और योग्यताओं के आधार पर ही उनका भविष्य उज्ज्वल बनाने का प्रयास करें। पहले बच्चे के मन की बात जानें कि वह क्या करना चाहता है। नाहक दबाव न बनाएं और यदि कोई फैसला हो भी गया है तो बच्चे को भरोसा दिलाएं कि हर बुरी स्थिति में वे उसके साथ हैं। उसे हर तरह के मानसिक दबाव का मुकाबला करने के काबिल भी बनाएं।
कलेक्टर के खुले पत्र का यह हिस्सा रोंगटे खड़े कर देने वाला है कि- यह मेरा दुर्भाग्य है कि मुझे 20 से ज्यादा मेधावी बच्चों के सुसाइड नोट पढ़ने पड़े हैं। कॅरिअर के अवसरों के शहर कोटा में आपके बच्चों का स्वागत है, लेकिन बच्चे की न किसी से तुलना करें और न परिणाम के बारे में डराएं। वे आपको बेहतरीन परिणाम देंगे। हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनका बच्चा सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचे, लेकिन इंजीनियरिंग और मेडिकल में कॅरिअर के अलावा भी कई क्षेत्रों में अच्छे अवसर हैं। अभिभावक इनके बारे में भी जानें और बच्चों को भी बताएं। हो सकता है कि बच्चा आपकी उम्मीदों से ज्यादा तरक्की करे।
तनाव और दबाव के कारण बच्चों द्वारा आत्महत्याएं केवल कोटा ही नहीं देश के कई शहरों में हो रही हैं। हमारे अपने मध्यप्रदेश और राजधानी भोपाल में ही पिछले दिनों ऐसे कई दुखद प्रसंग हुए हैं। राज्य विधानसभा में यह मामला उठने के बाद इस मामले पर राय देने के लिए विधायकों की एक समिति भी बनाई गई है। लेकिन असली मसला तो बच्चों के परिवार और शिक्षा के बाजार से जुड़ा है। जब तक वहां इच्छाओं और संवेदनाओं पर महत्वाकांक्षाएं हावी रहेंगी, तब तक ऐसी दुखद खबरें आती रहेंगी।
गिरीश उपाध्याय