इस देश में लोगों के पास बहुत फालतू टाइम है भाई। ऐसा लगता है कि पूरा देश ही फुरसत में बैठा है। मोदीजी की डिग्री को लेकर जिस तरह की कुत्ता फजीहत चल रही है वह भारतीय राजनीति के निम्नतम स्तर का अप्रतिम उदाहरण है। डिग्री का यह मामला जनता के लिए ‘थर्ड डिग्री टॉर्चर’ की तरह हो गया है। सोमवार को इस विवाद ने नई न्यूनताओं को छुआ। सबसे पहले देश में सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और देश के वित्त मंत्री तथा प्रख्यात कानूनविद अरुण जेटली प्रधानमंत्री की डिग्रियां और अन्य शैक्षणिक रिकार्ड लेकर मीडिया के सामने आए। उन्होंने आम आदमी पार्टी की ओर से नरेंद्र मोदी की डिग्रियों को लेकर लगाए जा रहे आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए प्रधानमंत्री की डिग्रियां मीडिया के सामने डिस्प्ले कीं। इस फोटो/वीडियो सेशन को टीवी चैनलों के माध्यम से पूरे देश ने देखा (या दिखाया गया)।
भाजपा की वीवीआईपी प्रेस कान्फ्रेंस के बाद आम आदमी पार्टी की ओर से पत्रकार टर्न पॉलिटीशियन आशुतोष अपनी सेना के साथ मीडिया के सामने आए और उन्होंने भी कागजों का एक पुलिंदा मीडिया के सामने लहराते हुए शाह और जेटली द्वारा दिखाई गई डिग्रियों को सरासर फर्जी घोषित कर दिया। आशुतोष ने उन दस्तावेजों की गलतियों को लेकर सवालों की झड़ी लगा दी। थोड़ी देर के लिए ऐसा लगा कि यदि आज ही मोदीजी की डिग्री का मामला हल नहीं हुआ तो यह भारतवर्ष रसातल में चला जाएगा, अस्तित्वविहीन हो जाएगा… लेकिन ताज्जुब है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ।
सवाल यह उठता है कि यदि आम आदमी पार्टी मोदी सरकार या भाजपा के साथ कोई खेल खेल रही है तो भाजपा को उसके झांसे में आने की जरूरत क्या है? जब देश में सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष और देश के वित्त मंत्री अपने प्रधानमंत्री की डिग्रियां और अंकसूचियां दिखाते हुए मीडिया के सामने आएंगे, तो लोगों को खुद-ब-खुद लगने लगेगा कि जरूर दाल में कुछ काला है, वरना इतने बड़े नेताओं को सार्वजनिक रूप से सामने आकर सफाई देने की जरूरत क्यों पड़ती। भाजपा या मोदी सरकार के साथ यही दिक्कत है कि जब तोप मुकाबिल हो तो वे तिनका निकालते हैं और जब हाथी से भिड़ना हो तो चूहों को मैदान में उतार देते हैं। क्या भाजपा को यह काम अपनी प्रवक्ताओं की टीम में से किसी से नहीं करवा लेना चाहिए था? जिस काम के लिए शाह और जेटली जैसे दिग्गज नेता मीडिया के सामने आए, वह काम तो संबित पात्रा ही अच्छे से निपटा देते। आरोप लगाने वालों को भी माकूल संदेश चला जाता कि भाजपा उनकी हैसियत का आकलन किस स्तर पर करती है।
लेकिन जब आप खुद ऐसे टटपूंजे मामलों में दिग्गजों को आगे लाएंगे तो विरोधियों की मंशा को ही पूरा करेंगे। ताज्जुब तो यह है कि इतनी मोटी बात भी भाजपा में कोई नहीं समझ रहा कि आम आदमी पार्टी की रुचि नरेंद्र दामोदरदास मोदी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक योग्यता की सत्यता जानने में नहीं, उनकी छीछालेदर करने में है। यह वैसा ही मामला है जैसे बच्चे शरारत करते हुए पीछे से किसी के सिर पर धौल मारकर भाग जाया करते हैं और धौल खाने वाला सिर खुजाते हुए पता करता रहता है कि ये किसने किया? केजरीवाल की पार्टी ने यह खेल अच्छी तरह सीख लिया है। वे इसके सिद्धहस्त खिलाड़ी बन गए हैं। युद्ध में तलवार लेकर तो शत्रु से भिड़ा जा सकता है लेकिन उस शत्रु से कोई कैसे भिड़े जो तलवार चलाने के बजाय आपको चिकोटी काटकर भाग जाए। और यहां तो चिकोटी काटने की जहमत भी नहीं उठाई जा रही। आम आदमी के नेता देश के प्रधानमंत्री, उनकी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के तमाम दिग्गजों को युद्ध के मैदान में सिर्फ जीभ चिढ़ाकर ही भाग जा रहे हैं। और इधर तमाम अक्षौहिणी सेनाएं लिए स्वयं ‘सरकार’ नथुने फुलाते हुए इन ‘चिढ़ावनीबाजों’ के चक्कर में फंसकर अपनी भद पिटवा रही है।
जरा घटनाक्रम देखिए… जिस दिन राज्यसभा में कांग्रेस अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर मामले में प्रधानमंत्री पर तीखा हमला बोलती है, जिस दिन उत्तराखंड के नौ कांग्रेसी बागी विधायकों को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट कहीं से भी राहत नहीं मिलती, उस दिन देश की राजधानी पर राज करने वाली आम आदमी पार्टी और देश पर राज करनेवाली भारतीय जनता पार्टी के नेता इस बहस में उलझे पड़े होते हैं कि एक डिग्री में नरेंद्र कुमार मोदी लिखा है और दूसरी में नरेंद्र दामोदरदास मोदी, ऐसा क्यों?
और यह वही आम आदमी पार्टी है जिसने दो दिन पहले ट्विटर पर एक और अभियान चलाकर कहा था कि जो डिग्री दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से दिखाई गई है, वह तो दरअसल अलवर के नरेंद्र मोदी की है, जबकि प्रधानमंत्री तो गुजराज के बड़नगर वाले नरेंद्र मोदी हैं, यानी वह डिग्री फर्जी है। ‘आप’ के इस अभियान ने उस बापड़े अलवर के नरेंद्र मोदी को ऐसा मुश्किल में डाला कि काम धंधा छोड़कर वह मीडिया के सवालों के जवाब देते देते थक गया।
हम कई बार कहते हैं कि फलां मामले में ‘राजनीति’ हो रही है। लेकिन इस मामले में तो ठीक से राजनीति भी नहीं हो रही। यह तो विशुद्ध ‘ठलुआई’ है। क्या आपको नहीं लगता कि यह देश नहीं एक विशाल ‘ठलुआ क्लब’ है और हम सब इस ठलुआगिरी को झेलने के लिए अभिशप्त हैं।
– गिरीश उपाध्याय