कोटि-कोटि दलित जन को गरिमा और गौरव के साथ जीने का अधिकार दिलाने वाले और भारत के समता-मूलक संविधान के निर्माता भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर को उनकी 125वीं जयंती पर कोटिश: नमन। बाबा साहब ने जीवनभर उन वर्गों को ऊपर उठाने की कोशिश की, जो सामाजिक-ऐतिहासिक कारणों से हाशिए पर जी रहे थे।

बाबा साहब सच्चे अर्थों में एक महा-मानव थे। तमाम कष्टों और अन्यायों को सहने के बावजूद उनके मन में कभी किसी के प्रति द्वेष अथवा प्रतिशोध की भावना नहीं रही। निश्चय ही बाबा साहब दलित और पीड़ित वर्ग को समाज और विकास की मुख्य धारा में लाने के लिये संघर्ष करते रहे, लेकिन समाज के दूसरें वर्गों के प्रति उनका भाव हमेशा सकारात्मक रहा। उनकी महानता का एक और पक्ष यह है कि वे सिर्फ दलित एक्टिविस्ट नहीं थे। उनकी चिंतन की व्यापकता में पूरे भारत का हित समाहित था। एक छोटा-सा उदाहरण यह है कि वह महिलाओं को तलाक, सम्पत्ति में उत्तराधिकार आदि के प्रावधान वाले हिन्दू कोड बिल को लागू करवाने के लिये जीवनभर संघर्ष करते रहे। उन्होंने वर्ष 1951 में इस बिल के पारित न होने पर देश के प्रथम कानून मंत्री के रूप में इस्तीफा दे दिया। यह, अपने सिद्धांतों के प्रति उनकी दृढ़ता का परिचायक है। भारत के सामाजिक, आर्थिक, कृषि और औद्योगिक विकास के क्षेत्र में उनका चिंतन बहुत व्यापक था, जो उनके द्वारा रचित पुस्तकों में मिलता है। राष्ट्र निर्माण, विदेश नीति निर्धारण, सामाजिक सुरक्षा, श्रमिक कल्याण सहित ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जो बाबा साहब के चिंतन से अछूता हो।

बाबा साहब के जीवन और कृतित्व को चिर-स्मरणीय बनाने और नई पीढ़ी को उनके अवदान से परिचित करवाने के लिये हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अनेक कदम उठाये हैं। उनके प्रयासों से ऐसे 5 स्थलों को पंचतीर्थ के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिनका बाबा साहब के जीवन से गहरा संबंध रहा है। हमारे लिये यह गर्व की बात है कि बाबा साहब का जन्म हमारे प्रदेश के महू में हुआ। उनके जन्म-स्थल महू में उनकी स्मृति में भव्य स्मारक बनवाया गया है। इस पवित्र स्थल पर 14 से 17 अप्रैल तक हर साल मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बाबा साहब के जीवन पर केन्द्रित भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं।

प्रधानमंत्री की पहल पर लंदन में उस इमारत को खरीदकर तीर्थ-स्थल के रूप में विकसित किया गया है, जहाँ रहकर बाबा साहब ने पढ़ाई की थी। इसी तरह नागपुर में दीक्षा-भूमि, दिल्ली में महापरिनिर्वाण-भूमि और मुम्बई में अंबेडकर स्मारक को पंचतीर्थ में शामिल किया गया है।

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा महू में डॉ. बी.आर. अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है। इसका मुख्य उद्देश्य अनुसूचित-जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्गों के सामाजिक उत्थान तथा सामाजिक न्याय की दिशा में किये जा रहे कार्यों में इन वर्गों की सक्रिय सहभागिता बढ़ाना है। यह देश में अपनी तरह का पहला विश्वविद्यालय है, जो सामाजिक बुराइयों, असमानता, कुप्रथाओं, अंधविश्वास, छुआछूत और जातिभेद को समाप्त करने की दिशा में कारगर सिद्ध होगा।

महापुरुष किसी वर्ग विशेष, जाति विशेष या राजनीतिक दल विशेष के नहीं होते। वे सबके होते हैं। वे सबके इसलिये होते हैं, क्योंकि वे सबको अपना मानते हैं। बाबा साहब ऐसे ही महापुरुष थे। आइये, उनके सामाजिक समरसता बढ़ाने और दलित वर्ग को समाज की मुख्य धारा में लाने के काम को हम आगे बढ़ाने के अपने संकल्प को दोहरायें। यही बाबा साहब को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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