भोपाल, नवम्बर 2015/ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खेती और किसानों को भविष्य में सूखे के संकट से बचाने और खेती को लाभदायी बनाने के उद्देश्य से कृषि के नये रोड मेप को अंतिम रूप दिया।
प्रशासन अकादमी में कृषि मंथन में खेती को लाभदायी और सक्षम बनाने के लिये विभिन्न विकल्प और उपायों पर विचार कर अनुशंसा देने के लिये भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा और वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों के गठित समूहों ने अपने-अपने सुझाव दिये। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर इन अधिकारियों ने गाँवों का दौरा कर फसलों के नुकसान और किसानों की हालत का जायजा लिया था। मैदानी अनुभव एवं कृषि विशेषज्ञों के सुझाव के आधार पर खेती का रोड मेप तैयार करने की अनुसंशाएँ सौंपी गई।
मुख्यमंत्री ने कृषि विशेषज्ञों और समूहों की अनुशंसा में से तत्काल लागू करने योग्य अनुशंसाओं की कार्य-योजना बनाने के निर्देश दिये। शेष पर विचार कर अंतिम रूप देने एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया।
कृषि के नये रोड मेप के अनुसार पुलिस, प्रशासनिक और वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी तीन माह में एक बार गाँव का भ्रमण करेंगे। वे योजनाओं के क्रियान्वयन की रिपोर्ट सरकार को देंगे और मौके पर ही समस्याओं का निराकरण भी करेंगे। यह एक नियमित प्रशासकीय प्रक्रिया होगी।
मार्च 2017 तक सभी किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिये जायेंगे।
किसानों को बिजली के स्थाई कनेक्शन देने की व्यवस्था की जायेगी। इसके लिये एक अभियान चलाया जायेगा।
किसानों को सोलर पम्प लगाने के लिये प्रोत्साहित किया जायेगा। इसके लिये उन्हें अनुदान भी दिया जायेगा।
उद्यानिकी और कृषि उत्पाद के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये राज्य स्तरीय संस्था का गठन किया जायेगा। यह संस्था भारत सरकार की एपीडा संस्था की तरह कार्य करेगी।
किसानों के लिये चल रही छोटी-छोटी अनुदान योजनाओं को समाप्त कर बड़ी योजनाओं में समाहित किया जायेगा।
सभी किसानों को को-ऑपरेटिव सोसायटी के नेटवर्क में लाने के लिये अभियान चलाया जायेगा।
लीज या किराये पर खेती की भूमि देने और लेने की प्रक्रिया को कानूनी रूप देने के लिये भू-राजस्व संहिता में उपयुक्त संशोधन किया जायेगा।
23 हजार ग्राम पंचायत में से प्रत्येक में एक खाद्य प्र-संस्करण इकाई स्थापित की जायेगी। इससे स्थानीय स्तर पर उपलब्ध उत्पाद का मूल्य संवर्धन होगा। मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना में स्थानीय युवाओं को इसके लिये प्रोत्साहित किया जायेगा। उन्हें आवश्यक वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण दिया जायेगा।
मिल्क रूट में वृद्धि करने के साथ ही सब्जी, फल और पुष्प रूट भी विकसित किये जायेंगे। साथ ही उनके फेडरेशन बनाये जायेंगे।
अब डेरी इकाई स्थापित करने के लिये कम से कम पाँच गाय या भैंस दी जायेगी ताकि यह फायदे का धंधा बने।
मंडियों में फल-सब्जी के लिये अलग से स्थान होगा। हर जिले में फल-सब्जी की एक आधुनिक सुविधायुक्त आदर्श मंडी होगी। मंडियों में अनावश्यक ज्यादा आढ़त काटने वालों पर सख्त कार्रवाई की जायेगी।
पानी बचाने के लिये अगले तीन साल में सघन अभियान चलेगा। अभियान में नई संरचनाएँ बनाई जायेंगी और पुरानी संरचनाओं में सुधार होगा।
ड्रिप सिंचाई और माइक्रो इरीगेशन को प्रोत्साहित करने की मॉडल योजना बनाई जायेगी। इस पर अनुदान देने का भी मॉडल फार्मूला बनाया जायेगा।
हर जिले में आदर्श प्रदर्शन प्रक्षेत्र विकसित होगा। किसानों को क्षेत्र विशेष की फसल लगाने के लिये प्रोत्साहित किया जायेगा।
खेती को आधुनिक बनाने के लिये मैदानी कृषि अमले को प्रशिक्षित किया जायेगा। कृषि विज्ञान केन्द्रों को सुदृढ़ बनाया जायेगा और कृषि स्नातकों को भी इससे जोड़ा जायेगा।
प्रत्येक ग्राम पंचायत में स्व-चालित वर्षा मापक यंत्र लगाया जायेगा।
पोस्ट हार्वेस्ट मेनेजमेंट इंस्टीट्यूट की स्थापना की जायेगी, ताकि कृषि उत्पादों का मूल्य संवर्धन हो सके।
एग्रो फारेस्ट्री के लिये अलग से नीति बनाई जायेगी।
पशुपालन, मछलीपालन पर आधारित आदर्श योजनाएँ बनाई जायेगी।
किसानों को खेती संबंधी आवश्यक जानकारी देने के लिये एस.एम.एस. सेवा शुरू की जायेगी। भविष्य में मोबाइल एप्लीकेशन भी बनाई जायेगी।
एग्री बिजनेस को बढ़ावा देने के लिये खाद्य प्र-संस्करण इकाइयों की स्थापना की जायेगी। इसके लिये खाद्य प्र-संस्करण इकाइयों के क्लस्टर स्थापित किये जायेंगे।
मुख्यमंत्री ने इन अनुशंसाओं के आधार पर कार्य-योजना बनाने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि सूखे की चुनौती को अवसर के रूप में बदलेंगे। कृषि की दिशा और दशा को और बेहतर बनायेंगे। किसानों को संकट से स्थाई रूप से मुक्ति दिलाई जाएगी।
प्रस्तुतिकरण के दौरान अलग-अलग समूहों ने सुझाव दिए। इंदौर-उज्जैन संभाग के लिए गठित पहले समूह ने कृषि आदान में सुधार के लिए राज्य स्तर पर विशिष्ट योजनाएँ बनाने, खाद के संतुलित उपयोग, मिट्टी परीक्षण अभियान और प्रत्येक जिले को बीज उत्पादन में आत्म-निर्भर बनाने के सुझाव दिए। यह भी सुझाव दिया कि जैविक खाद के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए। आपदा राहत और फसल बीमा को मिलाकर संयुक्त आपदा राहत कोष बनाया जाए। विद्युत विभाग स्थाई कनेक्शन देने का अभियान चलाए। दूरस्थ क्षेत्रों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाए। अनुदान आधारित कृषि अभियांत्रिकी को बंद किया जाए। मण्डी अधिनियम में ग्रेडिंग का प्रावधान हो। दुग्ध रूट की तरह सब्जी रूट विकसित किये जाये। किसानों को रोजगार की वैकल्पिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाए।
दूसरे समूह ने सुझाव दिए कि फसल कटाई प्रयोग व्यवस्था का गंभीरता से पालन हो। स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई पद्धति को विस्तारित किया जाए। कृषि के लिए वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग हो। बाजार में खाद-बीज और कीटनाशक की उपलब्धता और गुणवत्ता सुनिश्चित की जाए। सेवा भूमि पर अच्छे बीज के आदर्श फार्म विकसित किये जाये। फसल विविधताओं को प्रोत्साहित किया जाए। कृषि में अवैज्ञानिक तरीकों को पूरी तरह से समाप्त किया जाये।
चौथे समूह ने फसल हानि के आकलन, सिंचाई बढ़ने, फसल रकबा बढ़ाने, बिजली प्रदाय दर 14 घंटे तक बढ़ाने की अनुशंसा की। पाँचवें समूह ने बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंस को प्रभावी बनाने, फसल रकबा बढ़ाने, माइक्रो इरीगेशन बढ़ाने, खेती संबंधी व्यवसाय के लिए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षण की सिफारिशें की। कृषि विशेषज्ञों डॉ. पंजाब सिंह, डॉ. ज्ञानेन्द्र सिंह, डॉ. अशोक गुलाटी एवं डॉ. रामभाऊ पाटिल ने भी अपने विचार रखे।
इस अवसर पर मंत्रीमंडल के सदस्य, मुख्य सचिव अन्टोनी डिसा, कृषि टास्क फोर्स के सदस्य एवं वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।