5-11 अक्टूबर : बेटी बचाओ अभियान
देश में तेजी से बढ़ रही कन्या-भ्रूण हत्या के फलस्वरूप निरंतर बिगड़ रहा लिंगानुपात नीति-निर्धारकों, समाज-शास्त्रियों एवं विकास के प्रबल पक्षधरों के समक्ष चुनौती बनकर उभरा है। वर्तमान में बालिकाओं की जन्म-दर का घटता अनुपात एक चिंतनीय सामाजिक समस्या है, जो समाज और देश के असंतुलन के लिये बहुत ही घातक है। जहाँ विकास के लिये बड़ी-बड़ी योजनाएँ बन रही हैं, वहीं दूसरी ओर नासमझ लोग मानव जाति की नींव को कमजोर कर रहे हैं। आज विचारणीय विषय है कि इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करने के बाद हम किस समाज का निर्माण कर रहे हैं।

हमारी सामाजिक व्यवस्था में पुत्री जन्म से मातृत्व की गौरवमयी भावना को ठेस लगती है। लगातार तीन-चार पुत्री संतान की माँ को अनेक तनावों से होकर गुजरना पड़ता है। इस समस्या पर समाज के परिप्रेक्ष्य में विचार करें तो बहुत ही निराशाजनक तस्वीरें सामने आती हैं। ज्यादातर परिवारों में चाहे वे किसी भी वर्ग, वर्ण या धर्म के हों, लड़कियों को दोयम दर्जे का ही माना जाता है।

दूसरी ओर समाज सुधारकों के यह विचार में महिला प्रगति के अभाव में समाज की प्रगति असंभव है। इस दृष्टि से देखा जाये तो भारतीय समाज की स्थिति काफी विकटपूर्ण और भयावह प्रतीत होती है। महिला प्रगति, महिला शक्ति और नारी स्वतंत्रता सभी की अनदेखी करते हुए हमारे समाज में कन्या भ्रूण हत्या बड़े पैमाने हो रही है। बेटी के मुकाबले बेटे को तरजीह देना हमारी संस्कृति का हिस्सा है। पुत्र प्राप्ति की कामना भारतीय संस्कृति में आदिकाल से विद्यमान है। वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ें भी बताते हैं कि देश में स्त्रियों की संख्या सतत घट रही है। गर्भ में लिंग की जाँच और फिर कन्या भ्रूण हत्या के कारण स्त्रियों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है।

एन.सी.ई.आर. के एक अध्ययन के अनुसार प्रतिवर्ष होने वाली मौतों में लड़कियों की संख्या ज्यादा रहती है। उनमें भी हर साल छ: में से एक महिला की मृत्यु लिंग भेद और घरेलू उपेक्षा के कारण होती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में 10 लाख से अधिक भ्रूण हत्याएँ हो रही हैं। प्रति 30 मिनिट में एक भ्रूण हत्या और हर डेढ़ घंटे में एक दहेज हत्या हो रही है। बेटी की चाह में हर 25 में से एक बच्ची जन्म लेने से पहले ही मार दी जाती है। देश में हर साल में एक करोड़ बीस लाख जन्म लेने वाली बच्चियों में से 25 प्रतिशत अर्थात 30 लाख अपना पन्द्रहवाँ जन्म-दिन मनाने के लिये जिन्दा नहीं रह पाती हैं। देश में महिलाओं की बढ़ती मृत्यु दर से इस बात का आकलन सरलता से लगाया जा सकता है कि समाज शिशु, किशोरी और माँ होने तक कितना भेदभावपूर्ण व्यवहार कर रहा है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा, घरेलू हिंसा, यौन हिंसा के साथ-साथ कन्या भ्रूण हत्याओं की बढ़ती संख्या जनसंख्याविदों और समाज-शास्त्रियों के लिये ही नहीं वरन सम्पूर्ण समाज के लिये चिंतनीय पहलू है। अगर इसे रोका नहीं गया तो देश में स्त्री-पुरुष संतुलन असंतुलित होकर एक नवीन सामाजिक समस्या उत्पन्न करेगा। इक्कीसवीं सदी में भारत चाँद में कदम रखने का सपना तो साकार कर सकता है, लेकिन दशक के बाद जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाले ढाई करोड़ युवाओं को संगिनी के लिये तरसना पड़ सकता है।
लेकिन, मध्यप्रदेश में अब बेटियों के जन्म पर खुशियाँ मनाने का वक्त आ गया है। भ्रूण हत्या जैसे घृणित अपराध पर लगाम कसी जा रही है। बालक-बालिकाओं के कम हो रहे अनुपात को बराबरी में लाने के लिये समाज को जागरूक किया जा रहा है। प्रदेश में बेटियों के जन्म को बोझ समझने की प्रवृत्ति को कम करने के लिये, बालिकाओं के समुचित विकास के लिये महिला सशक्तिकरण के प्रबल पक्षधर मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा अनेक प्रकार की योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं। चूँकि लिंगानुपात के अंतर को पाटने के लिए लोगों की सोच में बदलाव जरूरी है, इसीलिए महिला सशक्तिकरण की शुरूआत बचपन से की गई है। मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 2007 से बालिकाओं के सशक्तिकरण के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना लागू की है। योजना से लोगों के बेटियों के प्रति सोच और दृष्टिकोण में प्रभावी परिवर्तन लाने में मदद मिली है। मध्यप्रदेश में बेटियों के पक्ष को और मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री कन्यादान योजना शु डिग्री की गई है। इस योजना में अब तक सवा दो लाख से ज्यादा परिवारों को अपनी बेटी के विवाह में राज्य सरकार ने मदद की है। बालिकाओं के प्रति सामाजिक नजरिये में बदलाव की पदचाप अब मध्यप्रदेश में सुनाई देने लगी है।

मुख्यमंत्री की योजनाओं से बेटियों के प्रति समाज का मोह अब बढ़ने लगा है। उनकी पढ़ाई-लिखाई के लिए मध्यप्रदेश सरकार निरंतर उनके साथ है। ग्रामीण क्षेत्र की बालिकाओं को अपने गाँव से दूर पढ़ने के लिए नि:शुल्क सायकिलें तथा दो जोड़ी गणवेश भी उपलब्ध करवाये गये हैं। प्रतिभाशाली बालिकाओं को भी राज्य सरकार ने हाथों-हाथ लिया है। ऐसी बालिकाओं के प्रोत्साहन के लिए “गाँव की बेटी” और “प्रतिभा किरण” योजना लागू की गई। आँगनवाड़ी केन्द्रों के जरिए जिन लाखों बच्चों को पोषण आहार दिया जा रहा है, उनमें 6 वर्ष तक की बालिकाएँ भी शामिल हैं। बालिकाओं के पोषण और स्वास्थ्य के स्तर को बढ़ाने और उन्हें व्यावहारिक एवं व्यावसायिक कौशल से सम्पन्न कर सशक्त बनाने के लिए “सबला” योजना भी सफलताएं चल रही है। बाल विवाह जैसी कुप्रथा को रोकने में भी राज्य सरकार सफल होती दिख रही है।

मुख्यमंत्री के बेटी बचाओ अभियान से प्रेरित होकर अनेक जिलों ने नवाचारों को अपनाया है। खंडवा जिले में बेटी बचाओ अभियान के अंतर्गत “प्रोजेक्ट खुशी” का संचालन किया जा रहा है। इसके तहत पंचायत स्तर पर मैदानी अमले, जनप्रतिनिधि और जनसामान्य द्वारा सामूहिक रूप से परिवार में जन्मी बेटी के जन्म को उत्सव के रूप में मनाते हुए अभिभावकों को बधाई देकर प्रसन्नता व्यक्त की जाती है। साथ ही पालकों को राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं की जानकारी दी जाती है। बालाघाट जिले में प्रत्येक शासकीय अस्पताल एवं निजी नर्सिंग होम में कन्या को जन्म देने वाली माता एवं कन्या के परिजन को जन्म के दिन ही प्रभारी चिकित्सक द्वारा “”सम्बल कार्ड”” दिया जाता है। नरसिंहपुर जिले में केवल बेटियों वाले पालकों को सम्मान स्वरूप “”सम्मान पत्र”” दिया जा रहा है। सम्मान पत्र में कलेक्टर, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला कार्यक्रम अधिकारी के संयुक्त हस्ताक्षर भी होते हैं।

मध्यप्रदेश सरकार ने अब तय किया है कि भविष्य में होने वाले समस्त शासकीय कार्यक्रमों में एक बेटी वाले परिवारों एवं उन बालिकाओं का सम्मान किया जाए, जिन्होंने शिक्षा, खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि में विशेष उपलब्धि प्राप्त की है। भविष्य में यह सुनिश्चित किया जायेगा कि कोई भी शासकीय कार्यक्रम के आयोजन के पूर्व समस्त प्रतिभागियों द्वारा बेटी बचाओ के संबंध में संकल्प लिया जाए। राज्य सरकार मध्यप्रदेश गान की तरह बेटियों के संबंध में एक गान तैयार करवा रही है, जिसे भविष्य में होने वाले शासकीय कार्यक्रमों के प्रारंभ में मध्यप्रदेश गान के समान गाया जायेगा।

प्रदेश में शिशु लिंगानुपात को बेहतर करने के लिये श्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले साल 2011 से प्रदेशव्यापी “बेटी बचाओ अभियान” शुरू किया है। यह अभियान बेटियों के संरक्षण और उनके पोषण का है। मुख्यमंत्री का यह प्रयास नारी के जीवन और उसकी जीवन-शक्ति दोनों की रक्षा करेगा। अभियान का मक़सद समाज में केवल यह संदेश देना ही नहीं है कि “बेटी है तो कल है”, बल्कि बेटियों के भविष्य का निर्माण करना भी है। अभियान पर 12 शासकीय विभाग ने 66 योजना के माध्यम से ध्यान केन्द्रित किया है। अभियान के जरिये घटते लिंगानुपात को रोकने और इसके प्रति प्रत्येक स्तर पर जागरूकता लाने के लिए वृहद जन-अभियान चलाया गया। अभियान का दूसरा दौर इस वर्ष 5 से 11 अक्टूबर तक पुन: आयोजित हो रहा है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सदैव इच्छा रही है कि मध्यप्रदेश की बेटियाँ खूब पढ़ें और आगे बढ़ें तथा अपने पैरों पर खड़ी होकर अपना नाम रोशन करें। उनका मानना है कि जब एक बेटी पढ़ती है तो सात पीढ़ियाँ तर जाती हैं।

मुख्यमंत्री “बेटी बचाओ अभियान” ने जन-मानस तथा समाज को सोचने-विचारने पर मजबूर किया है। अभियान से महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव आयेगा तथा बेटी की महत्ता को कायम रखने वाले इस अभियान से निश्चित रूप से समाज प्रेरित होगा। यह केवल सरकारी पहल नहीं है। यह लोगों का अभियान है। समाज के सभी वर्गों को इस अभियान से बड़े पैमाने पर जोड़ा जा रहा है। इस काम को अंजाम देना अकेले सरकारी तंत्र के लिये संभव नहीं है। आज आवश्यकता है कि सबसे पहले पारिवारिक भेदभाव को मिटाया जाये। कन्या जन्म से जुड़ी सामाजिक मान्यताओं को तोड़ने के लिये समाज-शास्त्रियों, समाज-सुधारकों के हस्तक्षेप की नितांत आवश्यकता है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ मीडिया को भी इस ओर ठोस कार्य करने की जरूरत है। समाज के बुद्धिजीवी, समाज-सेवकों, समाज-शास्त्रियों व अन्य व्यक्तियों को मिलकर समस्या को सुलझाना होगा। बेटा और बेटी दोनों समाज और देश का भविष्य हैं। समाज बेटियों को बचाकर तो देखे, अपने कुल की तस्वीर उतनी ही सफल और खूबसूरत बनेगी।

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