भोपाल, मई 2015/ देश में उत्कृष्ट छवि बनाने के बाद मध्यप्रदेश राज्य बाँस मिशन ने विश्व के सर्वोच्च वैश्विक मंच संयुक्त राष्ट्र में भी अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करवाने में सफलता हासिल की है। पहली बार न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के ‘युनाइटेड फोरम ऑन फारेस्ट’ में बाँस को विशेष रूप से शामिल किया गया। इसमें केन्द्रीय वन मंत्रालय ने मध्यप्रदेश राज्य बाँस मिशन और टेरी, नई दिल्ली के साथ ‘आजीविका और जलवायु परिवर्तन में बाँस की महती भूमिका (बैम्बू : ए चेंज एजेन्ट फॉर लाइवलीहुड एण्ड क्लाईमेट चेंज)’ कार्यक्रम किया। मध्यप्रदेश देश का अकेला राज्य है, जिसे इस प्रतिष्ठित प्रतिनिधित्व का मौका मिला। अध्यक्षता केन्द्रीय वन मंत्रालय के महानिदेशक एस.एस. गरब्याल ने की। मिशन संचालक, मध्यप्रदेश राज्य बाँस मिशन डॉ. अजोय भट्टाचार्य ने विषय पर प्रकाश डाला

मुख्य वक्ता इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर बैम्बू एण्ड रट्टेन (इनबार) के महानिदेशक ने कहा कि बाँस में रोजगार के अवसर सृजित करते हुए गरीबी उन्मूलन की अपार क्षमता है। इसमें मिट्टी का क्षरण रोकने, बिगड़े वनों को पुनर्जीवित करने, कार्बन डाई अवशोषण, महत्वपूर्ण वन्य-प्राणियों के लिये चारा उपलब्ध करवाने आदि की अद्भुत क्षमता है। बाँस के उत्पाद सस्ती से सस्ती कीमत से लेकर महँगी से महँगी कीमतों तक के मिलने लगे हैं।

श्री भट्टाचार्य ने बताया कि भारत में 136 प्रजाति का बाँस होता है। बाँस संसाधन में भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत में विश्व का 30 प्रतिशत बाँस संसाधन होने के बावजूद वैश्विक बाजार में देश की हिस्सेदारी मात्र 4 प्रतिशत है। शासन की मंशा वैश्विक बाजार में बाँस से 500 बिलियन लाभ लेने की है। देश में सर्वाधिक 2.2 मिलियन हेक्टेयर का बाँस उत्पादन क्षेत्र मध्यप्रदेश के वन क्षेत्र में है। वन क्षेत्र के बाहर भी 0.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में बाँस उगाया जाता है। आने वाले वर्षों में बाँस 4 वैश्विक परिवर्तन में कारगर होगा, जिनमें आवास, आजीविका, पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा शामिल हैं। बाँस को भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया आदि देशों में महत्वपूर्ण आर्थिक प्रगति के संसाधन के रूप में देखा जा रहा है।

भारत में बाँस आधारित उत्पादों की वर्ष 2015 में बाजार संभावनाएँ इस प्रकार हैं- बाँस फर्नीचर 3625 करोड़, बाँस शूटस 300 करोड़, बाँस फर्श टाइल्स 1950 करोड़, बाँस पल्प 2088 करोड़, बाँस आवास 1163 करोड़, बाँस मैट बोर्डस 3908 करोड़, विभिन्न उद्योग 600 करोड़, अगरबत्ती और कुटीर उद्योग 1000 करोड़, ट्रक और रेल में उपयोगी बाँस प्लाई 3408 करोड़, मार्ग निर्माण में 274 करोड़ और काष्ठ विकल्प के रूप में 274 करोड़।

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