भोपाल। सतना जिलें के गाँव मोहना के कृषक रामानन्दसिंह ने कृषि वैज्ञानिकों की एक सलाह मान कर अपना जीवन खुशहाल कर लिया है। रामानन्दसिंह पहले परम्परागत तरीके से सोयाबीन बोते थे। इससे उन्हें प्रति एकड़ साढ़े तीन क्विंटल सोयाबीन होता था। ग्राम मोहना मध्यप्रदेश वाटर सेक्टर रिस्ट्रक्चरिंग परियोजना के गोविन्दगढ़ तालाब के कमाण्ड क्षेत्र में आता है। परियोजना में कमांड क्षेत्र के कृषकों को खेतों में उन्नत कृषि तकनीक के प्रदर्शन डाले जाते है।
कृषि महाविद्यालय, रीवा के कृषि वैज्ञानिक डा. व्ही.डी द्विवेदी ने मोहना गाँव के कृषकों को रिज-फरो विधि से सोयाबीन बोने की सलाह दी। पहले तो कृषक नई तकनीक अपनाने से हिचकिचाए लेकिन कृषि वैज्ञानिक के समझाने पर कुछ कृषक रिज-फरो के प्रदर्शन प्लाट लगाने पर सहमत हो गए। रामानन्द सिंह और तेजभान सिंह ने कृषि वैज्ञानिक की सलाह मान कर अपने खेतों में रिज-फरो विधि से सोयाबीन बोया।
कृषि वैज्ञानिकों ने प्रदर्शन के लिए उन्हें सोयाबीन की उन्नत प्रजाति का बीज, उर्वरक और दवाइयाँ उपलब्ध करवाईं। रिज-फरो यानी मेढ़ नाली पद्धति से बीज की मात्रा भी कम लगी। अधिक वर्षा से पौधे पानी में नहीं डूबे और एक सप्ताह तक वर्षा नहीं होने से पौधे सूखे भी नहीं। अधिक वर्षा होने पर पानी नाली से निकल गया और वर्षा नहीं होने पर नाली में संरक्षित पानी से पौधे नमी लेते रहे। नींदा नियंत्रण के लिए परसूट दवा डाली गई और कीट नियंत्रण के लिए ट्राइजोसफ का छिड़काव किया गया। इस विधि से पौधों के बीच पर्याप्त फासला होने से फसलों को बढ़ने की भी जगह मिलती है। रिज-फरो से उन्हें एक एकड़ से 7 क्विंटल सोयाबीन उत्पादन मिला, जो परम्परागत तरीके से बोने से दुगना उत्पादन था।
वाटर सेक्टर रिस्ट्रक्चरिंग परियोजना के कृषि विशेषज्ञ पी. के. जैन ने बताया कि रामानन्द सिंह और तेजभान सिंह की सफलता से प्रेरित हो कर इस वर्ष कृषकों ने 50 एकड़ में रिज-फरो विधि से सोयाबीन बोया है। अब कृषक गेहूँ, चना और मटर भी रिज-फरो विधि से बोने के लिए तैयार हैं।