भोपाल, जनवरी 2015/ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वामी विवेकानन्द की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ट्वीटर पर कहा कि स्वामी जी ने विश्व को भारत की आध्यात्मिक विरासत से परिचित करवाया। स्वामी जी ने पश्चिमी जगत में भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को लेकर षड़यंत्रपूर्वक फैलाई गई भ्रांतियों को निर्मूल सिद्ध कर विश्व को भारत की संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत की श्रेष्ठता से परिचित करवाया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत के गौरव और आदर्श स्वामी विवेकानंद में तरुणाई की तेजस्विता और ऋषियों की मनस्विता का अदभुत संगम था। इन दोनों के मिलन से ही भारत का नव-निर्माण हो रहा है। स्वामी जी ने सदियों से राजनैतिक दासता के कारण भारत के लोगों में गहराई से घर कर गई हीन भावना और आत्महीनता को दूर कर उन्हें आत्म-विश्वास से भर दिया। स्वामी विवेकानंद ने भारतीयों को बताया कि उनमें अपार दिव्य शक्तियाँ मौजूद हैं। उन्होंने इन शक्तियों को जगाकर उनका स्वयं के उत्थान और राष्ट्र नव-निर्माण में उपयोग करने प्रेरित किया।
स्वामी विवेकानन्द की मानववादी सोच का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वामी जी ने मानव सेवा को व्यक्ति के स्वयं के मोक्ष से ऊपर स्थान दिया। उनके अनुसार दीन-दुखियों की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। दरिद्र, रोगी और कमजोर की सेवा को ही वह वास्तविक शिव पूजा मानते थे।
श्री चौहान ने कहा कि स्वामी जी ने अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत से विमुख होते जा रहे भारत के युवाओं को सही दिशा दी। उन्होंने युवाओं को तेजस्वी, ओजस्वी और मनस्वी बनने प्रेरित ही नहीं किया, बल्कि उसके उपाय भी बताये। स्त्रियों के उत्थान के लिये स्वामी जी प्रतिबद्ध थे। उनका कहना था कि ‘नारियाँ महाकाली की साकार प्रतिमा है। यदि तुमने इन्हें ऊपर नहीं उठाया तो मत सोचो कि तुम्हारी अपनी उन्नति का कोई अन्य मार्ग है।’ स्वामी विवेकानंद की यह धारणा थी कि धर्म मनुष्य के भीतर निहित देवत्व का विकास है।
शिक्षा में आमूल परिवर्तन के हिमायती स्वामी विवेकानंद ने रटंत विद्या सिखाने वाली शिक्षा के बजाय व्यक्ति में स्वयं सोचने और अच्छा-बुरा समझने का विवेक जगाने वाली शिक्षा का समर्थन किया।