भोपाल, दिसम्बर 2014/ नवजात शिशुओं को मौत से बचाने वाले नए पेंटावेलेंट टीके से कोई मृत्यु दर्ज नहीं हुई है। राज्य में 2 जिले छिंदवाड़ा और उज्जैन में गत माह दो बच्चों की मौत के कारणों की जाँच के पश्चात ज्ञात हुआ कि मौत का कारण यह टीका नहीं था जैसा आरोप लगा था। प्रमुख सचिव स्वास्थ्य प्रवीर कृष्ण ने यह जानकारी दी। प्रदेश के जबलपुर, ग्वालियर, मुरैना को टीकों के स्टोर की दृष्टि से न सिर्फ प्रांतीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ माना गया है। राज्य में 597 वेक्सीनेटर और 1205 शीत श्रंखला गृह हैं जहाँ टीके निर्धारित मापदंडों के अनुसार रखे जाते हैं।

प्रमुख सचिव आज यहाँ नियमित टीकाकरण कार्यक्रम की मीडिया कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। श्री प्रवीर कृष्ण ने बताया कि राज्य में शिशुओं को पाँच रोग से बचाने में एक टीका पेंटावेलेंट तीन बार लगवाना होता है। इसका विश्व के अधिकांश देशों में उपयोग किया जा रहा है। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अच्छे नतीजे लाने वाले 14 राज्य में मध्यप्रदेश भी शामिल है। प्रदेश में मदर चाइल्ड ट्रेकिंग सिस्टम लागू होने से प्रत्येक नवजात शिशु का पंजीयन होता है और समय-समय पर जरूरी टीके लगाए जाते हैं। पेंटावेलेंट के संबंध में 15 हजार स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रशिक्षित किए गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से एक माह का प्रशिक्षण दिया गया।

प्रमुख सचिव ने कहा कि टीकाकरण से बच्चों और गर्भवती माताओं की जीवन रक्षा होती है। टीकों के संबंध में जनता के बीच कई बार भय और भ्रांतिपूर्ण भावना व्याप्त हो जाती है। इसका निवारण करने में समाचार-पत्र, रेडियो, टीवी चेनल और पारम्परिक जन माध्यम सहयोग कर सकते हैं। उन्होंने मीडिया प्रतिनिधियों से समाज हित में सही जानकारी के प्रचार-प्रसार में सहभागी बनने का आव्हान किया। कार्यशाला को मिशन संचालक एनएचएम फैज अहमद किदवई ने भी संबोधित किया।

प्रारंभ में यूनिसेफ की विशेषज्ञ डॉ. वंदना भाटिया ने सर्वव्यापी टीकाकरण के महत्व की विस्तार से जानकारी दी। उप संचालक (टीकाकरण) डॉ. संतोष शुक्ला ने बताया कि राज्य में टीकाकरण कार्य के सुपरविजन के लिए विभागीय अधिकारी सहित विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम भी जिलों में भ्रमण करती है। डॉ शुक्ला ने बताया कि वर्ष 2015 में बच्चों को पल्स-पोलियो की खुराक पिलाए जाने के साथ ही इंजेक्शन भी दिया जाने लगेगा।

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