जबलपुर, अगस्त 2014/ किसान-कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने कहा है कि लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन को देखते हुए गेहूँ की ऐसी प्रजातियाँ विकसित की जायें, जिससे किसान प्रतिकूल मौसम में भी अच्छा उत्पादन ले सकें। कृषि वैज्ञानिक कम से कम फर्टिलाइजर में अधिक से अधिक उत्पादन देने वाली रोग-प्रतिरोधी गेहूँ की प्रजातियों को विकसित करे। श्री बिसेन जबलपुर में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में गेहूँ और जौ अनुसंधान संबंधी अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

उन्‍होंने कहा कि खेती में फर्टिलाइजर एवं कीट-नाशक दवाइयों के बढ़ते उपयोग के कारण खेतों की मिट्टी खराब हो रही है। गेहूँ उत्पादन में मध्यप्रदेश पूरे देश में तीसरे एवं चना उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। राज्य सरकार की किसान हितैषी नीतियों के कारण प्रदेश की कृषि विकास दर 24.99 तक पहुँच गई है। किसानों की तरक्की के लिये प्रदेश में कृषि केबिनेट गठित है। प्रदेश में किसानों को जीरो प्रतिशत ब्याज-दर पर फसल ऋण दिया जा रहा है। सिंचाई के लिये 10 घंटे बिजली दी जा रही है।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय संस्थान इकार्डा लेबनान के उप महानिदेशक डॉ. मार्टिन ने कहा‍कि देश में गेहूँ के बढ़ते उत्पादन के लिये कृषि वैज्ञानिकों का अनुसंधान प्रशंसनीय है। आस्ट्रेलिया से आये कृषि वैज्ञानिक डॉ. एरिक हटनर ने भारत एवं आस्ट्रेलिया द्वारा गेहूँ उत्पादन के लिये संयुक्त रूप से किये जा रहे अनुसंधान की जानकारी दी। भारतीय कृषि अनुसंधान, नई दिल्ली के उप निदेशक डॉ. स्वप्न कुमार दत्ता ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या के कारण सन् 2050 में 140 मिलियन टन गेहूँ की आवश्यकता होगी। कृषि संगोष्ठी में देश-विदेश के 350 कृषि वैज्ञानिक ने भाग लिया।

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