भोपाल, नवम्बर 2014/ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वन एवं पर्यावरण से संबंधी अधिनियमों के परीक्षण और समीक्षा के लिये गठित उच्च-स्तरीय समिति के विचारार्थ मध्यप्रदेश द्वारा भेजे गये सुझावों की ओर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का ध्यान आकर्षित किया है। यह सुझाव मुख्य सचिव अन्टोनी डीसा द्वारा श्री टी.एस.आर. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में गठित समिति को भेजे गये हैं। मुख्यमंत्री ने पत्र में कहा है कि यह मुद्दे मध्यप्रदेश के लिये बहुत महत्वपूर्ण हैं।
समिति को यह सुझाव भेजा गया है कि वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 में स्थानीय विकास और वाणिज्यिक गतिविधियों के बीच भेद किया जाना चाहिए। यह सिर्फ भारतीय वन अधिनियम 1927 में घोषित आरक्षित और संरक्षित भवनों पर ही लागू होने चाहिए। इसी तरह वन्य-प्राणी (संरक्षण) अधिनियम 1972 में प्राधिकरणों को दिये गये अधिकार संविधान की संघीय संरचना के अनुरूप होने चाहिए। इस तथा अन्य पहलु पर विचार करने की आवश्यकता है।
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के संबंध में यह सुझाव दिया गया है कि स्वीकृतियों की गति बढ़ाने के लिये प्राधिकरणों, अधिनियमों, नियमों और अधिसूचनाओं की संख्या कम की जाये और दूसरी ओर पर्यावरण का संरक्षण किया जाये। यह भी अनुरोध किया गया है कि उच्च-स्तरीय समिति के समक्ष प्रदेश को अपना प्रस्तुतीकरण देने का अवसर मिलना चाहिए।