भोपाल, सितम्बर 2014/ महिला-बाल विकास मंत्री माया सिंह ने लिंग भेद परीक्षण करने वाले डॉक्टर का लायसेंस निरस्त करने और अभिभावकों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने का सुझाव दिया है। श्रीमती सिंह मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के 21 वें स्थापना दिवस पर ‘कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप” विषय पर परिचर्चा में बोल रही थीं। उन्‍होंने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या जैसे सामाजिक अपराध पर गंभीरता से मंथन करने की जरूरत है। चिंताजनक यह है कि इस अपराध में समाज का शिक्षित वर्ग जुड़ा है। बच्चियों को जन्म लेने का हक है। उनके इस मानव अधिकार को छीना नहीं जाना चाहिए। आज जिस युग में हम है उसमें लिंग भेद मानसिकता का कोई स्थान नहीं है। इस सोच में बदलाव लाने के लिए समाज को आगे आना चाहिये। श्रीमती सिंह ने मुख्य सचिव अंटोनी डिसा से कहा कि वे प्रदेश के सभी जिले में पी.सी.सी. एंड डी.टी. एक्ट का सख्ती से पालन करवाएँ और दर्ज प्रकरण पर कार्यवाही हो ताकि वह मिसाल बने।

आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. वीरेन्द्र मोहन कँवर ने कहा कि लिंग प्रतिषेघ अधिनियम की मुख्य धाराओं का प्रदेश में कड़ाई से पालन होना चाहिये। कन्या भ्रूण का पता लगाने के लिये पकड़ी गयी बहुत सारी सोनोग्राफी मशीन सील की जाना चाहिये। मुख्य सचिव ने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या विषय पर चर्चा करना समय की माँग है।

आयोग के सचिव विनोद कुमार ने कहा कि आयोग में पिछले तीन वर्ष में 37 हजार प्रकरण आये जिनमें से 35 हजार का निराकरण किया गया। आयोग अधिकारों की रक्षा के लिये जिलों में जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित करता है। अभी ‘स्कूल का बस्ता आवश्यकता या बोझ”, मानव अधिकार और चुनौतियाँ, बाल अधिकार, बेटियों के अधिकार आदि विषयों पर हर जिले में आयोजन हो चुके हैं।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के प्रतिनिधि तेजराम जाट ने स्लाइड के माध्यम से अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि शिशु लिंगानुपात पिछले तीन दशक में सबसे तीव्र गति से गिरा है, सोनोग्राफी मशीनें इसका सबसे बड़ा कारण हैं। पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे ने कहा कि हमें कन्याओं को आगे बढ़ने के पूरे अवसर देना होंगे। कन्या भ्रूण हत्या हमारी आपराधिक मानसिकता की पहचान है। इस मानसिकता को जड़ से समाप्त करने के लिये एक सशक्त सामाजिक आंदोलन की जरूरत है। परिचर्चा में इंदौर कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने कन्या भ्रूण हत्या पर नियंत्रण पर प्रस्तुतीकरण दिया।

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