भोपाल, दिसंबर 2012/ मध्यप्रदेश में शिशुओं के अच्छे स्वास्थ्य के लिये सघन प्रयास किये जा रहे हैं। नवजात शिशुओं की देखभाल के लिये स्वास्थ्य संस्थाओं में त्रि-स्तरीय प्रणाली संचालित की जा रही है। इसके अंतर्गत 1120 न्यू बार्न कार्नर स्थापित किये जाना हैं। गंभीर कुपोषण को रोकने के लिये 313 पोषण पुनर्वास केन्द्र भी स्थापित किये जाने का लक्ष्य है। वर्तमान में 277 पोषण पुनर्वास केन्द्र संचालित हैं। शासन द्वारा किये गये प्रयासों के परिणाम स्वरूप गत वर्ष की तुलना में शिशु मृत्यु दर में तीन अंकों की गिरावट आयी है।

876 न्यू बार्न कार्नर स्थापित

नवजात शिशुओं की देखभाल के लिये स्वास्थ्य संस्थाओं में संचालित त्रि-स्तरीय प्रणाली के अंतर्गत उन स्वास्थ्य संस्थाओं में जहाँ प्रसव होते हैं, उनमें न्यू बार्न कार्नर स्थापित किये गये हैं। वर्तमान में ऐसे 876 न्यू बार्न कार्नर स्थापित हैं। उप जिला-स्तरीय सीमॉक संस्थाओं में एन.बी.एस.यू. अर्थात् न्यू बार्न स्टेबिलाइजेशन यूनिट्स भी स्थापित किये गये हैं। शिशु स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये किये गये बेहतर प्रयासों का ही परिणाम है कि गत वर्ष जहाँ प्रति हजार जीवित जन्म पर शिशु मृत्यु दर 62 थी, वहीं अब चालू वित्तीय वर्ष में एसआरएस संस्था के सर्वे अनुसार प्रति हजार जीवित जन्म पर शिशु मृत्यु दर 59 रह गई है।

शिशु स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रयास

प्रदेश में शिशु स्वास्थ्य सुरक्षा के सघन प्रयासों के अंतर्गत किशोरी बालिकाओं में रक्ताल्पता नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत 32 साप्ताहिक गोलियाँ, वर्ष में 2 बार कृमि-नाशक गोलियाँ, स्वास्थ्य परीक्षण एवं हीमोग्लोबिन जाँच सेवाएँ स्वास्थ्य, महिला-बाल विकास तथा स्कूल शिक्षा विभाग के माध्यम से प्रदान की जा रही हैं। विभाग द्वारा गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण, टीकाकरण, प्रसव पूर्व जाँच एवं आई.एफ.ए. गोलियाँ दी जा रही हैं। इसी के साथ मातृ एवं नवजात शिशुओं में मृत्यु दर में कमी लाने के लिये संस्थागत प्रसव एवं शीघ्र स्तनपान को बढ़ावा देने के लिये प्रयास एवं जननी एक्सप्रेस के माध्यम से बीमार बच्चों के रैफरल तंत्र को भी मजबूत बनाया जा रहा है। शिशु एवं बाल पोषण के लिये समस्त ए.एन.एम., आँगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं महिला स्तनपान सलाहकार को शिशु एवं पोषण आहार के संबंध में आई.वाय.सी.एफ. कार्यक्रम के जरिये प्रशिक्षित किया जा रहा है।

प्रदेश में संस्थागत प्रसव सुविधायुक्त अस्पतालों को शिशु हितैषी अस्पतालों के रूप में भी सुदृढ़ किया जा रहा है। इन अस्पतालों में शिशु हितैषी अस्पताल के अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अनुसरण किया जाकर सफल स्तनपान के 10 बिन्दुओं का पालन किया जायेगा।

स्वास्थ्य विभाग द्वारा महिला-बाल विकास विभाग के सहयोग से ‘‘बाल सुरक्षा माह’’ में विभिन्न गतिविधियों का क्रियान्वयन किया जाता है। इसके अंतर्गत 9 माह से 5 वर्ष के सभी बच्चों को विटामिन ‘ए’ की खुराक, कृमि-नाशक गोलियाँ, छः-छः माह के अंतराल में वर्ष में दो बार दी जाती हैं। एक से 5 वर्ष के समस्त बच्चों को 100 दिन तक आई.एफ.ए. की छोटी गोली या सिरप भी प्रदाय किया जाता है।

योजना के अंतर्गत गंभीर कुपोषण के प्रबंधन के लिये प्रदेश में बाल शक्ति योजना पर अमल किया जा प्रदेश में संचालित 277 पोषण पुनर्वास केन्द्र में 41 हजार 131 गंभीर कुपोषित बच्चों को उपचार उपलब्ध करवाया गया है। भविष्य में समस्त 313 ब्लॉक में चरणबद्ध रूप से पोषण पुनर्वास केन्द्र स्थापित किये जायेंगे। इन केन्द्रों में गंभीर कुपोषित बच्चों के सम्पूर्ण प्रबंधन के लिये पोषण प्रशिक्षक, स्टॉफ नर्स, कुक तथा केयर-टेकर की भी नियुक्ति की जायेगी।

वर्तमान में प्रदेश में 81 सीमॉक संस्थाएँ क्रियाशील हैं। इनमें से 66 में ब्लड स्टोरेज यूनिट कायम हैं। साथ ही 464 बीमॉक संस्थाएँ भी कार्य कर रही हैं। आवश्यकता पड़ने पर शिशुओं को तुरंत अस्पताल लाने के लिये 313 जननी एक्सप्रेस कार्यरत हैं। चार जिला चिकित्सालय में मेटरनिटी विंग स्थापित किये गये हैं। प्रत्येक जिला अस्पताल में ब्लड-बैंक स्थापित हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here