नई दिल्‍ली, नवंबर 2012/ वित्त एवं वाणिज्यिक कर मंत्री राघवजी ने नई दिल्ली में वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम की अध्यक्षता में सम्पर्क राज्यों के वित्त मंत्रियों की बैठक में कहा कि राज्यों के करारोपण वाले क्षेत्रों में केन्द्र अतिक्रमण न करें। कर के मामले में सेल्स टैक्स संविधान में राज्यों को आवंटित विषय है। अतः केन्द्र जीएसटी में इसमें से हिस्सा न माँगे। बैठक में केन्द्रीय विक्रय कर में कमी से राज्यों को होने वाली राजस्व हानि की भरपाई तथा संविधान (115वें) संशोधन विधेयक के संबंध में मतभेद सुलझाने पर भी चर्चा हुई।

श्री राघवजी ने कहा कि केन्द्र सरकार ने वर्ष 2007-08 में केन्द्रीय विक्रय कर कम करते समय इससे राज्यों को होने वाली राजस्व हानि की भरपाई का वायदा किया था। इसके बाद उसने अटठ्यासीवें संविधान (संशोधन) अधिनियम 2004 के प्रावधान के अनुसार इस हानि की पूर्ति के लिए राज्यों को 44 चिन्हांकित सेवाओं पर उपयुक्त सेवा कर लगाने का अधिकार देने की प्रतिबद्धता जताई थी।

केन्द्र सरकार ने अपनी इस प्रतिबद्धता को पूरा नहीं किया और अपने क्षतिपूर्ति मानदंडों में संशोधन कर दिया। यहाँ तक कि संशोधित मानदंडों के अनुसार भी क्षतिपूर्ति जारी करने में अनावश्यक विलंब और त्रुटियाँ हो रही है। वर्ष 2010-11 की क्षतिपूर्ति राज्यों को अभी तक नहीं मिली है। इस अनुभव को देखते हुए जीएसटी से राज्यों को होने वाली राजस्व हानि की भरपाई के केन्द्र सरकार के वायदे को गंभीरता से नहीं लिया जा सकता। केन्द्र सरकार मनोरंजन अथवा विलासित जैसे क्षेत्र में राज्य सरकारों के कर-क्षेत्र की गतिविधियों पर सेवा कर वापस ले।

संविधान (115वें संशोधन) विधेयक, 2011 की चर्चा करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि केन्द्र सरकार हमेशा इस बात को आग्रहपूर्वक कहती रही है कि राज्यों का जीएसटी टेक्स आधार सीजीएसटी के समान होना चाहिए। इस बारे में मध्यप्रदेश का मानना है कि इस प्रकार की योजना से जीएसटी का टेक्स आधार निश्चित करने की राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता बहुत कम हो जाएगी।

वित्त मंत्री ने कहा कि यह चिन्ताजनक बात है कि केन्द्र सरकार सभी वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्त्ति के लिए टेक्स की एक ही दर रखना चाहती है। इस तरह की व्यवस्था से अमीरों के बजाय गरीबों पर ज्यादा टेक्स लगेगा। यह कराधान में समानता के सिद्धांत के विपरीत है। सेवा कर व्यवस्था में राज्यों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण लगातार जारी है। केन्द्र सरकार ने यद्यपि ‘मनोरंजन’ और ‘‘विज्ञापन’’ जैसी राज्य द्वारा कराधान की मदों को सातवीं अनुसूची की राज्य सूची से हटा लिया है, परंतु ‘‘लक्जरीज’’ पर केन्द्र द्वारा टेक्स लगाया जा रहा है। केन्द्र सरकार को यह समझना चाहिए कि ‘‘मनोरंजन’’, ‘‘विज्ञापन’’ और ‘‘विलासिता’’ ये सभी ‘‘सेवाओं पर कर‘’ के रूप में वर्गीकृत हैं। यह वर्गीकरण सीएजी द्वारा फायनेन्स एकाउन्ट्स में राष्ट्रपति के आदेशानुसार किया गया है। लिहाजा, इन पर अवशिष्ट अधिकार के तहत कराधान नहीं होना चाहिए। सड़क परिवहन सेक्टर पहले से ही राज्य सूची की एंट्री 56 में शामिल हैं। ‘‘भूमियों और भवनों‘‘ से संबंधित जिन अनेक सेवा गतिविधियों पर केन्द्र सरकार द्वारा कर लगाया जा रहा है वे राज्य सूची की एंट्री 49 में शामिल हैं। प्रस्तावित प्रावधानों के कारण इन क्षेत्रों में दोहरा करारोपण होगा। साथ ही जीएसटी में प्रस्तावित मानक टेक्स दर से अधिक कराधान होगा।

राघवजी ने ‘‘उपभोग के लिए स्थानीय क्षेत्र में वस्तुओं के प्रवेश ‘उपयोग और उनमें विक्रय कर’’ से संबंधित संशोधनों पर उन्हें आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि प्रस्तावित संशोधनों में ‘‘चुंगी के बदले प्रवेश कर’’ की मनाही है। इससे राज्यों को फिर से चुंगी लगाने को मजबूर होना पड़ेगा। इससे स्थानीय निकायों द्वारा पुनः वैरियर भी लग जाएँगे। इस मुद्दे के समाधान की भी जरूरत है।

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