भोपाल, जुलाई 2014/ प्रदेश में आगामी 13 एवं 14 जुलाई से अच्छी वर्षा की पूरी संभावना है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यह जानकारी यहाँ भोपाल स्थित मौसम विज्ञान केन्द्र निदेशक डॉ. अनुपम कश्यपी ने दी।
मुख्यमंत्री ने प्रदेश में अवर्षा से उत्पन्न परिस्थितियों पर विचार करने और रणनीति बनाने के लिये विशेष बैठक बुलाई थी। विधानसभा में बुलाई इस बैठक में वर्षा की स्थिति के संबंध में विशेष प्रस्तुति देते हुए डॉ. कश्यपी ने देश और मध्यप्रदेश में मानसून की स्थिति पर विस्तार से चर्चा कर बताया कि इस बार 17 प्रतिशत हिस्से में मानसून अभी तक नहीं पहुँचा है। देश में पिछले साल इस समय तक 242.5 मि.मी. वर्षा हो चुकी थी जबकि इस साल बहुत कम वर्षा हुई है। उत्तर-पूर्वी भारत में मानसून अच्छी स्थिति में है जबकि मध्य भारत में अवर्षा की स्थिति बनी है। पश्चिमी मध्यप्रदेश में सबसे खराब स्थिति है। उन्होंने बताया कि केवल दो जिले रीवा और सीधी में सामान्य वर्षा हुई जबकि 18 जिले में अभी भी पर्याप्त वर्षा नहीं हुई है। ताजा स्थिति में पूर्वी मध्यप्रदेश में पानी गिर रहा है और पश्चिमी मध्यप्रदेश में शुरूआत हो गयी है। उत्तर-पश्चिमी मध्यप्रदेश में मानसून धीरे-धीरे जम रहा है और जल्द ही अगले एक-दो दिन में पूरे मध्यप्रदेश में जम जायेगा।
डॉ. कश्यपी ने मुख्यमंत्री को बताया कि डाप्लर राडार से मानसून आने और उसकी तीव्रता की जानकारी दो-तीन घंटे पहले बताई जा सकती है ताकि लोग सजग हो जायें।
मुख्यमंत्री ने मानसून आने की स्थिति को देखते हुए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिये कि वे किसानों से संपर्क बनाये रखें। मैदानी अमले को भी सतर्क कर दें। बीज की तैयारी रखें। किसानों को किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होनी चाहिये क्योंकि मानसून में विलम्ब के बाद एक-एक दिन बहुत कीमती है। उन्होंने सोयाबीन, मक्का और अन्य फसलों की जल्दी उगने वाली किस्मों के बीज तैयार रखने के निर्देश दिये और कहा कि मनरेगा में कृषि संबंधी ज्यादा से ज्यादा कार्य करवायें और मेहनताने का भुगतान करायें।
बैठक में बताया गया विलंबित बोनी के लिये मूंग, सोयाबीन, अरहर, उड़द, मक्का, धान, तिल, कोदो, कुटकी और बाजरा के जल्दी पकने वाले बीज की व्यवस्था की गई है। प्रत्येक जिले को आवश्यक धनराशि दी जा रही है जिससे वे प्राथमिक सहकारी समितियों को तत्काल बीज उपलब्ध करा सकें। खरीफ 2013 की फसल बीमा राशि का वितरण किया जा रहा है। खरीफ 2014 में किसानों को सहकारी बैंकों के माध्यम से 5,500 करोड़ रूपयों से ज्यादा का फसल ऋण दिया जा चुका है।