भोपाल, दिसम्बर 2014/ शांति के नोबल पुरस्कार से विभूषित कैलाश सत्यार्थी को यहाँ मुख्यमंत्री निवास पर गरिमामय समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की जनता की ओर से सम्मानित किया। अपने सम्मान के प्रत्युत्तर में श्री कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि दुनिया में शांति के लिये मानवीय करुणा के उदारीकरण की आवश्यकता है। आर्थिक वैश्वीकरण दुनिया को एक नहीं कर सकता।
श्री सत्यार्थी ने कहा कि जिन ताकतों ने यह बर्बरतापूर्ण काम किया है, जो बच्चों के हाथ में हथियार थमा रहे हैं और बचपन खत्म कर रहे हैं, वे लगातार कमजोर हो रहे हैं। उन्हें अपने अकेले होने का डर है इसलिये पेशावर जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं।
नोबल शांति पुरस्कार ऐसे बच्चों की आवाज है जिनका बचपन छिन गया है। यह भारत और भारत के लोगों का सम्मान है। बच्चों का सम्मान है। सम्मान मिलने से जिम्मेदारी बढ़ जाती है। किसी भी देश की शक्ति को नैतिकता और करुणा के आधार पर मापा जाता है न कि आर्थिक उन्नति से। भविष्य में भारत को बौद्धिक, आर्थिक और नैतिक रूप से प्रगतिशील बनना होगा। चरित्र का उदारीकरण ही दुनिया में दिलों को जोड़ता है।
श्री सत्यार्थी ने कहा कि हर व्यक्ति में एक बच्चा जीवित है। वैश्वीकरण के तंत्र का बच्चे हिस्सा बनते हैं। यौवन की पूँजी तब प्रदर्शित होती है जब स्वामी विवेकानंद जैसा सपूत शिकागो में संबोधन देता है। नैतिकता को जन-आंदोलन बनाने की कोशिश जारी है। इसमें सभी के सहयोग की आवश्यकता है। यदि नोबल शांति पुरस्कार महात्मा गांधी को मिला होता तो इस पुरस्कार की गरिमा कई गुना बढ़ जाती।
मुख्यमंत्री ने विदिशा जिले के उस स्कूल का नामकरण श्री सत्यार्थी के नाम पर करने की घोषणा की, जहाँ श्री कैलाश सत्यार्थी ने पढ़ाई की थी। श्री चौहान ने श्री सत्यार्थी को जीवन-पर्यन्त राज्य अतिथि बनाये जाने की भी घोषणा की।
मुख्यमंत्री ने श्री सत्यार्थी का सम्मान करते हुए कहा कि नोबल शांति पुरस्कार से मध्यप्रदेश, भोपाल और विदिशा का मान बढ़ा है। श्री सत्यार्थी को अपने बीच पाकर मन आनंदित है। अपने लिये तो कीट-पतंगे से लेकर सब जीते हैं। श्री सत्यार्थी जैसे व्यक्ति जो देश, दुनिया, समाज के लिये जीते हैं उनका जीवन धन्य है। उन्होंने भारत और मध्यप्रदेश सहित विदिशा और भोपाल का मान बढ़ाया है। बाल श्रम के खिलाफ जोरदार आवाज उठाकर वैश्विक जाग्रति की। भारत में ही नहीं विश्व के 144 देश के 83 हजार बच्चे श्री सत्यार्थी के आंदोलन से अपना बचपन बचा पाये। उनके ही प्रयत्नों से देश के बाल श्रम के बारे में बना कानून और शिक्षा का अधिकार भी उनके प्रयत्नों का ही प्रतिफल है। इटली, जर्मनी, ब्रिटेन की संसद ने अपने यहाँ व्याख्यान के लिये उन्हें बुलाया और संयुक्त राष्ट्र संघ जहाँ केवल राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्रियों को ही भाषण के लिये बुलाया जाता है, वहाँ सत्यार्थीजी का विशेष उदबोधन हुआ।
श्री चौहान ने राज्य सरकार द्वारा बचपन बचाने और बच्चों के अधिकारों के संरक्षण और विकास के लिये किये गये प्रयासों और योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा कि बच्चों के लिये भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य, सभी के प्रयास किये गये हैं। उनके विकास में किसी भी प्रकार की कोई बाधा नहीं आयेगी। बच्चों की पढ़ाई के लिये हॉस्टल सुविधा, प्रतियोगी परीक्षाओं की फ्री कोचिंग सुविधा, शहरों में उच्च शिक्षा के लिये हॉस्टल सुविधा, उच्च शिक्षा ऋण सुविधा और उद्यमिता विकास योजनाएँ शुरू की हैं। उन्होंने कहा कि हर क्षेत्र में बच्चों को विकास के अवसर मिलना चाहिये। इसके लिये सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा।
महिला-बाल विकास मंत्री माया सिंह ने स्वागत उदबोधन में कहा कि श्री सत्यार्थी के सम्मान से दुनिया का ध्यान बाल-कल्याण प्रयासों पर केन्द्रित हुआ है। उन्होंने इस दिशा में प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों का विवरण दिया। मुख्यमंत्री ने श्री सत्यार्थी का शॉल-श्रीफल और सम्मान-पत्र भेंट किया।
मुख्य सचिव अन्टोनी डिसा ने श्री सत्यार्थी के सम्मान-पत्र का वाचन किया। कार्यक्रम में श्री सत्यार्थी ने नोबल मेडल का प्रदर्शन भी किया।
इस अवसर पर प्रदेश मंत्रिमंडल के कई सदस्य, विधायक, वरिष्ठ अधिकारीगण, श्रीमती सुमेधा सत्यार्थी और श्री सत्यार्थी की बहन श्रीमती लीला शर्मा सहित गणमान्य नागरिक एवं स्कूली बच्चे उपस्थित थे।
कार्यक्रम से पहले श्री सत्यार्थी का मुख्यमंत्री निवास पहुँचने पर श्री चौहान ने आत्मीय स्वागत किया। संस्कृति राज्य मंत्री सुरेन्द्र पटवा ने आभार ज्ञापित किया।
सम्मान के दौरान बच्चों में भारी उत्साह दिखा। श्री सत्यार्थी के आते ही प्रफुल्लित बच्चों ने तालियाँ बजाकर हर्ष-ध्वनि की। वे बच्चों के बीच से होते हुए मंच पर पहुँचे, मुख्यमंत्री श्री चौहान उनके साथ थे। शांति का नोबल मेडल श्री सत्यार्थी ने मुख्यमंत्री के माध्यम से प्रदेश की जनता को दिखाया। उन्होंने मेडल मुख्यमंत्री श्री चौहान की धर्म-पत्नी श्रीमती साधना सिंह के हाथों में भी दिया। श्री सत्यार्थी ने बताया कि उन्हें मिला मेडल पहला है, जो भारत के पास है।
पेशावर में मृत बच्चों को श्रद्धांजलि
पेशावर में बीते दिन हुई नृशंस घटना पर दु:ख, क्षोभ प्रकट करते हुए प्रारंभ में मृत बच्चों की याद में दो मिनट का मौन रखा गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्चे फरिश्ते होते हैं, भगवान का रूप होते हैं। सारी दुनिया उस भयानक दर्दनाक घटना से व्यथित है। मन दर्द से भरा है। जिनके बच्चों की मृत्यु हुई उनकी असहनीय पीड़ा का अंदाज नहीं लगाया जा सकता। उन्होंने बस्ता देकर यूनीफार्म पहनाकर अपने बच्चों को स्कूल भेजा था और वही बच्चे ताबूत में लौटे। श्री चौहान ने पीड़ित परिवारों को यह भयावह दु:ख सहन करने की शक्ति देने की प्रार्थना ईश्वर से की।