भोपाल, अप्रैल 2013/ विगत 9 वर्ष में मध्यप्रदेश में हुए अभूतपूर्व विकास में राज्य शासन द्वारा स्व-कर राजस्व में वृद्धि की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस दौरान मध्यप्रदेश में स्व-कर राजस्व लगभग 5 गुना बढ़ा है। वर्ष 2003-04 में मध्यप्रदेश का स्व-कर राजस्व 6,805 करोड़ 10 लाख रुपये था, जो वर्ष 2012-13 के पुनरीक्षित अनुमान के अनुसार 29 हजार 570 करोड़ 68 लाख रुपये हो गया है। वर्ष 2013-14 में बजट अनुमान के अनुसार यह बढ़कर 33 हजार 381 करोड़ 68 लाख रुपये होना संभावित है।
मध्यप्रदेश में योजना व्यय में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इस वृद्धि के फलस्वरूप प्रदेश में अधोसंरचना का तेजी से विकास हुआ है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि प्रदेश में लोगों के पास पैसा बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश में योजना व्यय वर्ष 2003-04 में 5,684 करोड़ 73 लाख रुपये था, जो वर्ष 2012-13 के पुनरीक्षित अनुमान के अनुसार 33 हजार 540 करोड़ 85 लाख रुपये हो गया है। यह वृद्धि 6 गुना से अधिक है। वित्तीय वर्ष 2013-14 के बजट अनुमान के अनुसार प्रदेश का योजना व्यय बढ़कर 37 हजार 608 करोड़ 17 लाख रुपये होने की संभावना है।
इसी तरह प्रदेश में आलोच्य अवधि में पूँजीगत व्यय में भी बहुत अच्छी वृद्धि हुई है। इसके कारण सड़क, बाँध, सिंचाई क्षेत्र आदि के लिये अधिक बजट प्रावधान किये जा सके हैं। वर्ष 2003-04 में प्रदेश का पूँजीगत व्यय 2,678 करोड़ 64 लाख रुपये था, जो वर्ष 2012-13 के पुनरीक्षित अनुमान के अनुसार बढ़कर 16 हजार 954 करोड़ 25 लाख रुपये हो गया है। यह वृद्धि लगभग 8 गुना है।
मध्यप्रदेश सरकार के कुशल वित्तीय प्रबंधन के फलस्वरूप राज्य में राजकोषीय घाटा 3 प्रतिशत की निर्धारित सीमा के भीतर रहा है। साथ ही बीते 9 वर्ष में लगातार राजस्व आधिक्य की स्थिति बनी हुई है। इससे स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार ने अपने संसाधनों का बेहतर प्रबंधन किया है।
राज्य सरकार को ऋण पर दिये जाने वाले ब्याज को उल्लेखनीय रूप से कम करने में सफलता मिली है। वर्ष 2003-04 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद का लगभग 22 प्रतिशत ब्याज के रूप में भुगतान किया जाता था। वर्ष 2012-13 में यह घटकर 9.18 प्रतिशत हो गया है।