भोपाल, सितम्बर 2014/ प्रदेश में महिला श्रमिकों को सभी श्रम कानूनों में न केवल पुरुष श्रमिकों की भाँति ही संरक्षण दिया गया है बल्कि उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को देखते हुए समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 और मातृत्व हितलाभ अधिनियम 1961 विशेष रूप से प्रभावशील है।

श्रम मंत्री अंतर सिंह आर्य ने बताया कि समान पारिश्रमिक अधिनियम में समान कार्य के लिये महिला श्रमिकों को पुरुष श्रमिकों के समान ही मजदूरी भुगतान अनिवार्य किया गया है। इसी तरह भर्ती के दौरान नियोजक को बिना भेदभाव किये हुए पुरुषों के बराबर ही महिलाओं को रोजगार के अवसर देने होंगे और प्रशिक्षण एवं स्थानांतरण में भी कोई भेदभाव नहीं बरता जा सकता। श्री आर्य ने बताया कि अधिनियम में महिलाओं के लिये रोजगार वृद्धि के उपाय खोजने के लिये एक राज्य-स्तरीय सलाहकार समिति का भी गठन किया गया है।

श्रम मंत्री ने बताया कि मातृत्व हितलाभ अधिनियम 1961 में कारखानों, वाणिज्यिक स्थापना, खदान और बीड़ी निर्माण इकाई में कार्यरत महिलाओं को प्रसूति के दिन से 6 सप्ताह पूर्व और 6 सप्ताह बाद तक सवैतनिक अवकाश प्राप्त करने की पात्रता है। इसके अलावा यदि प्रसूति के पहले गर्भपात हो जाता है तो 6 सप्ताह तक सवैतनिक अवकाश प्राप्त करने की पात्रता है। प्रसूतिकाल में यदि महिला श्रमिक की मृत्यु हो जाती है तो देय रकम महिला द्वारा नामित व्यक्ति या वैध प्रतिनिधि को नियोजक द्वारा देने का प्रावधान है। इसके अलावा महिला श्रमिक के शिशु की आयु 15 माह पूर्ण होने तक प्रत्येक कार्य दिवस में 15-15 मिनट के लिये दो बार शिशु को फीड करवाने के लिये जाने की अनुमति होती है।

मातृत्व हितलाभ अधिनियम के चलते प्रदेश की किसी भी महिला श्रमिक को प्रसूतिकाल में उसकी अनुपस्थिति के कारण सेवा से पृथक नहीं किया जा सकता है। अधिनियम किसी भी गर्भवती महिलाकर्मी से कठिन कार्य जैसे लम्बी अवधि तक खड़े रहना आदि की भी इजाजत नहीं देता। नियोजक ने यदि महिलाकर्मी को प्रसव पूर्व या पश्चात देखरेख का कोई उपबंध नि:शुल्क न किया हो तो प्रसूति सुविधा 250 रुपये का चिकित्सा बोनस दिया जाता है। महिलाकर्मी को अधिनियम का हितलाभ देने का दायित्व नियोजक का होता है। ऐसा न करने पर नियोजक को दण्डित भी किया जा सकता है।

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