भोपाल, सितम्बर  2014/ कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के फलस्वरूप पिछले दो साल तक भारत सरकार का प्रतिष्ठित कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त करने वाले मध्यप्रदेश को वर्ष 2013-14 के लिये भी शार्ट लिस्ट किया गया है। मध्यप्रदेश किये जाने वाले 5 बड़े राज्य में शामिल है। यह राज्य हैं आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, पंजाब और मध्यप्रदेश।

केन्द्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा मध्यप्रदेश शासन को यह जानकारी देते हुए 14 अक्टूबर 2014 को नई दिल्ली में स्क्रीनिंग कमेटी के सामने प्रेजेंटेशन के लिये बुलाया गया है। समिति के अध्यक्ष भारत सरकार के कृषि सचिव हैं। प्रेजेंटेशन में वर्ष 2013-14 में खाद्यान्न, तिलहन उत्पादन और राज्य सरकार द्वारा इन उपलब्धियों के लिये अपनायी गई रणनीति एवं उपायों को शामिल करने के लिये कहा गया है। प्रेजेंटेशन में ऊर्जा, सिंचाई, खाद्य, साख इत्यादि से जुड़े विभागों के बीच समन्वय के लिये किये गये उपायों पर भी जानकारी देने को कहा गया है।

उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश को दो वर्ष से लगातार कृषि कर्मण अवार्ड मिल रहा है। राष्ट्रपति द्वारा दिये जाने वाला यह पुरस्कार 2 करोड़ रुपये का होता है।

इस वर्ष ओला-पाला आदि प्राकृतिक आपदा से फसल को हुए भारी नुकसान के बावजूद मध्यप्रदेश सरकार की कृषि और कृषक हितैषी नीतियों के चलते मध्यप्रदेश की कृषि की स्थिति बहुत अच्छी है। इसी कारण प्रदेश कृषि कर्मण अवार्ड के लिये शार्ट लिस्ट किये गये पाँच बड़े राज्य में शामिल किया गया है।

मध्यप्रदेश ने बीते कुछ वर्षों में ऊँची कृषि विकास दर हासिल कर देश में पहला मुकाम हासिल किया है। साल 2012-13 में प्रदेश की कृषि विकास दर 20.16 और साल 2011-12 में 19.85 फीसदी रही। साल 2013-14 के अग्रिम अनुमान के अनुसार यह 24.99 फीसदी है।

एक बड़ी उपलब्धि यह है कि मध्यप्रदेश में 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-11) में कृषि विकास दर का लक्ष्य 2.5 फीसदी तय किया गया था। इसके बरक्स इस दौरान 9.04 फीसदी विकास दर हासिल की गई। इसकी तुलना में देश में सकल कृषि विकास दर का लक्ष्य 4 फीसदी था, जबकि हासिल सिर्फ 2.5 फीसदी की जा सकी।

दलहन, तिलहन और चना उत्पादन में तो मध्यप्रदेश पहले से ही अगुवा है। बीते तीन साल में किसानी में बड़ी उपलब्धियों के चलते देश में हरित क्रांति के जनक कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति की अनुशंसा पर प्रदेश को सर्वश्रेष्ठ कृषि राज्य श्रेणी में एग्रीकल्चर लीडरशिप अवार्ड भी मिला है।

राज्य सरकार ने खेती के लिये ब्याज रहित ऋण देने की व्यवस्था की है। पिछले पाँच साल में 39 हजार 820 करोड़ रुपये ऋण के रूप उपलब्ध करवाये गये। गेहूँ उत्पादन के लिये 34 हजार करोड़ बोनस के रूप में दिये गये। खेती के लिये सहकारिता कर्ज वर्ष 2013-14 में बढ़कर 11 हजार 209 करोड़ रुपये हो गया है। यह वर्ष 2003-04 में मात्र 1213 करोड़ रुपये था। किसानों को गेहूँ, मक्का और धान की खरीदी पर बोनस भुगतान की व्यवस्था की गई।

पिछले दस साल में प्रदेश ने सिंचाई क्षमता बढ़ाने में अभूतपूर्व प्रदर्शन किया है। वर्ष 2003 में जहाँ मात्र साढ़े सात लाख हेक्टेयर में सिंचाई होती थी आज 27.5 लाख हेक्टेयर में सिंचाई हो रही है। अब खेती के लिये दस घंटे बिजली मिल रही है। किसानों को फ्लेट दर पर साल में दो बार बिजली का बिल भरने की सुविधा दी गई है। उत्पादन में बढ़ोतरी को देखते हुए प्रदेश ने अपनी भण्डारण क्षमता में भी वृद्धि की है। वर्ष 2010-11 में यह क्षमता 79 लाख मीट्रिक टन थी जो 2013-14 में बढ़कर 115 लाख मीट्रिक टन हो गई है।

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