मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया ने आज विधानसभा में राज्य का वर्ष 2014-15 का बजट पेश करते हुए घंटा, घडि़याल, घुंघरू, झांझ, मंजीरा, त्रिशूल, कमंडल और सामान्य धातुओं से बनी देवी देवताओं की मूर्तियों को कर मुक्त करने का ऐलान किया। वित्त मंत्री की यह छूट एक तरह से धर्म की चासनी में महंगाई की कुनैन गले उतारने की है। प्रदेश के इतिहास में अब तक के सबसे बड़े एक लाख 17 हजार करोड़ रुपए से अधिक के इस बजट में शुद्ध घाटा 76.89 करोड़ रुपए का बताया गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि बजट में कोई नया कर नहीं लगाया गया है। लेकिन यह बजट ऐसा कोई विजन भी पेश नहीं करता जिससे महसूस होता हो कि लोगों को आने वाले दिनों में बढ़ती महंगाई के बोझ से कुछ निजात मिल सकेगी। इस लिहाज से देखा जाए तो सरकार ने जनता को मंजीरे बजाकर महंगाई का मुकाबला करने के लिए छोड़ दिया है। मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में है जिसकी प्रगति की ओर कई समृद्ध राज्यों की नजर टिकी है। ऐसे में केवल कोई नया कर नहीं लगाने और धार्मिक सामानों पर फौरी राहत देने से बात नहीं बनने वाली। प्रदेश में औद्योगिक निवेश, बिजली क्षेत्र का बढ़ता घाटा, अधोसंरचना का विस्तार जैसी बड़ी चुनौतियां हैं जिनका सामना करने के काई ठोस उपाय इस बजट में नजर नहीं आते। हां, राज्य ने कृषि क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में जो अभूतपूर्व सफलता पाई है उसके चलते खेती किसानी से जुड़ी 34 चीजों को कर मुक्त कर कृषि क्षेत्र को 32 करोड़ रुपए की राहत दिए जाने का फैसला जरूर स्वागत योग्य है।
एक बात पर राज्य सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है कि वर्ष 2003-2004 तक राज्य में कुल राजस्व प्राप्ति का 22 प्रतिशत हिस्सा ब्याज भुगतान करने में खर्च होता था। इसको कम कर 6 प्रतिशत तक ले आया गया है। इस बार अलग से 22 हजार 413 करोड़ रुपये का कृषि बजट भी प्रस्तुत किया गया है। जो कुल बजट के 19 प्रतिशत से ज्यादा है।
दरअसल प्रगति के तमाम दावों के बावजूद सरकार की असली चुनौती गवर्नेंस को लेकर है। प्रदेश में भ्रष्टाचार की बढ़ती शिकायतों को यदि गंभीरता से नहीं लिया गया तो बजट में सालाना हो रही बढ़ोतरी का बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगा। इसके अलावा एक और बड़ा सवाल सेवाओं की गुणवत्ता का है। यह ठीक है कि सरकार बुनियादी सेवाओं और सामाजिक सेवाओं के बजट में बढ़ोतरी कर रही है लेकिन उन सेवाओं की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार दिखाई नहीं दे रहा है। कई सरकारी विभागों में प्रबंधन की कमजोरी और छीजन के चलते सैकड़ों करोड़ रुपए एक तरह से पानी में जा रहे हैं। अकेले यदि विद्युत वितरण कंपनियों का ही मामला लें तो पिछले आठ सालों में प्रदेश की तीनों विद्युत वितरण कंपनियों पूर्व, मध्य और पश्चिम का घाटा 700 करोड़ से बढ़कर 19 हजार करोड़ रुपए हो गया है। खुद वित्त मंत्री ने अपने भाषण में स्वीकार किया है कि वर्ष 2013-14 में इन कंपनियों की तकनीकी और वाणिज्यिक हानियां करीब 26 प्रतिशत थीं। यह बहुत बड़ा आंकड़ा है। इससे प्रदेश के विकास और संपूर्ण आयोजना बजट पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसी तरह प्रदेश पर अभी भी एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है। यदि इन बातों की ओर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो तेजी से दौड़ता नजर आ रहा प्रदेश के विकास का घोड़ा जल्दी ही ठिठक जाएगा।