भोपाल, नवम्बर 2015/ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन से उपजे संकट का प्रभावी समाधान भारतीय जीवन दर्शन और जीवन पद्धति में निहित है। भारतीय दर्शन, जीवन शैली, परंपराओं और प्रथाओं में प्रकृति की रक्षा करने का विज्ञान छुपा है। आवश्यकता दुनिया के सामने इसकी व्याख्या करने की है। उन्होंने कहा कि जब तक भारतीय दर्शन के अनुरूप जीवन शैली नहीं अपनायेंगे तब तक वैश्विक तपन जैसी समस्या का समाधान नहीं मिलेगा। इसलिये प्रकृति की रक्षा करने वाली परंपराओं और संस्कृति को पुनर्जीवित करने की जरूरत है।

श्रीमती स्वराज यहाँ दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘वैश्विक तपन और जलवायु परिवर्तन – समाधान की ओर’ के समापन सत्र को संबोधित कर रही थीं। सिंहस्थ 2016 के परिप्रेक्ष्य में आयोजित विचार श्रंखला में संगोष्ठी का आयोजन नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग द्वारा पर्यावरण नियोजन एवं समन्वयक संगठन, नर्मदा समग्र, जन अभियान परिषद और सेकाईडेकान संस्थाओं के सहयोग से किया गया।

श्रीमती स्वराज ने कहा कि विश्व के सामने आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन दो बड़ी चुनौतियाँ हैं। आतंकवाद मनुष्य द्वारा मनुष्य पर हमला है जबकि जलवायु परिवर्तन मनुष्य द्वारा प्रकृति पर किया गया हमला है। इस हमले की शुरूआत 18वी सदी में औद्योगीकरण की प्रक्रिया के साथ शुरू हो गयी थी। कुछ विकसित देशों ने अंधाधुंध विकास करने की होड़ में पृथ्वी के लिये जो संकट पैदा किये हैं अब वे उसका समाधान सबसे चाहते हैं।

श्रीमती स्वराज ने कहा कि कृत्रिमता के साथ किया गया विकास प्रकृति के लिये एक समस्या बन गया। विडम्बना यह है कि इसका कृत्रिम समाधान ढूँढा जा रहा है। जब तक जीवन शैली में बदलाव नहीं आयेगा तब तक समाधान नहीं मिलेगा। भारत में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप उपजी प्रकृति की विनाश लीलाओं के संदर्भ में उन्होंने कहा कि यह समस्या भारत के कारण नहीं है लेकिन हम इस वैश्विक समस्या के समाधान का अंग बनना चाहते हैं। भारतीय ज्ञान पूरी तरह वैज्ञानिक है। विश्व स्तर पर कार्बन क्रेडिट की बात हो रही है लेकिन ग्रीन क्रेडिट भी मिलना चाहिये। लालच छोड़ने, पृथ्वी को नष्ट नहीं होने देने और आवश्यकता के अनुरूप प्रकृति के संसाधनों का उपभोग करने का संकल्प लेने से ही वैश्विक तपन की समस्या का समाधान मिलेगा।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सिंहस्थ में कृषि महाकुंभ, लघु उद्योग, स्वच्छता और बेटी बचाओ विषय पर भी वैचारिक कुंभ का आयोजन किया जायेगा। भौतिकवादी दृष्टिकोण से उपभोग करने की प्रवृत्ति बढ़ी जिससे पृथ्वी के संसाधन भी संकट में आ गये। कार्बन का उत्सर्जन करने वाले यंत्रों की संख्या बढ़ गयी है। इससे खेती भी प्रभावित हुई है। ऋषि खेती या जैविक खेती ही सबसे प्रभावी विकल्प है। मध्यप्रदेश में अभी भी बड़े क्षेत्र में जैविक खेती हो रही है लेकिन इसके लिये किसानों पर जोर नहीं डाला जा सकता। जैविक खेती भी जीरो बजट में लाभ देती है इसके पर्याप्त तर्क और सबूत देकर उन्हें राजी करना होगा। सीधा और सरल जीवन जीना ही पर्यावरणीय समस्याओं का बेहतर समाधान है। प्रदेश में बड़े पैमाने पर लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रदेश की 23 हजार ग्राम पंचायत में खाद्य प्र-संस्करण इकाइयाँ स्थापित करने के लिये स्थानीय युवाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा ने कहा कि वैश्विक तपन और जलवायु परिवर्तन की समस्याओं को हल करने के लिये वैज्ञानिक तर्कों के साथ सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरूआत करना होगी। ग्लोबल वार और ग्लोबल वार्मिंग दो बड़े मुद्दे विश्व के सामने हैं और इन्होंने अब विकराल रूप ले लिया है।

राज्य सभा सदस्य एवं आयोजन समिति के अध्यक्ष अनिल माधव दवे ने दो दिन में पन्द्रह सत्र में हुए विचार-विमर्श का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। उन्होंने प्रतिभागियों और विषय- विशेषज्ञों का आव्हान किया कि वे सिंहस्थ 2016 में वैश्विक तपन की चुनौती से निपटने के लिये सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से किये जाने वाले वैकल्पिक समाधानों पर विचार करें। इस पर सिंहस्थ घोषणा के समय विचार-मंथन होगा। राज्य मंत्री नगरीय विकास एवं पर्यावरण लाल सिंह आर्य ने आभार व्यक्त किया।

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