बाघ को शक्ति और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। बाघ-ग्लोबल विरासत है। दुर्लभ बाघ के संरक्षण और संवर्धन के लिए लोगों में
जागरूकता जरूरी है। देश में वर्ष 1969 में बाघ के शिकार पर प्रतिबंध लगाकर 1972 में वन्य-प्राणी संरक्षण अधिनियम के लागू होने से
बाघ के संरक्षण के काम को बल मिला। भारत सरकार की योजना में टाइगर रिजर्व कान्हा को बाघ संरक्षण के लिए सबसे पहले चुना गया
था। देश में लगभग 49 टाइगर रिजर्व हैं। इनमें से 7 मध्यप्रदेश में स्थित हैं।
यह बात राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा पर्यटन व्याख्यान की श्रंखला में ‘मध्यप्रदेश में बाघ संरक्षण का इतिहास’ विषय पर मुख्य वन
संरक्षक श्री आर. श्रीनिवास मूर्ति, ने कही।
श्री मूर्ति ने मध्यप्रदेश में वन्य-प्राणी एवं मुख्य रूप से बाघों के संरक्षण एवं संवर्धन विषय पर श्रोताओं को रोचक जानकारी दी। श्री मूर्ति
ने बताया कि भारत में मुगल काल से लेकर अंग्रेजों के समय तक आखेट के प्रयोजन के लिये बाघों का संरक्षण किया जाता था। पर्यावरण
की दृष्टि से बाघ का वैज्ञानिक संवर्धन सन 1963 के बाद ही शुरू हुआ, जो अब तक जारी है। व्याख्यान में बाघ संरक्षण एवं प्रजनन की
महत्वपूर्ण जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि बाघों की मुख्य रूप से 8 प्रजाति होती है जिनमें से बेन्गॉल (रॉयल बेन्गॉल टाईगर),
साइबेरियन, साउथ-चायना, इण्डो-चायनीज और सुमात्रा प्रजाति के बाघ अभी शेष हैं जबकि बाली, जावा आदि प्रजाति विलुप्त हो चुकी है।
व्याख्यान में श्री मूर्ति ने बताया कि दुनिया में 70 प्रतिशत बाघ भारत के हैं। देश में बाघ को राष्ट्रीय पशु के रूप में मान्यता प्राप्त है। बाघ
को देखकर सभी को अच्छा अनुभव होता है। डरावना होते हुए भी बाघ दिलकश और जेन्टल होता है। श्री मूर्ति ने अपने प्रेजेंटेशन में
केप्टन फोरसाइथ की पुस्तक, रूडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक और मध्यप्रदेश में वन्य-प्राणी सम्पदा पर जिम कार्बेट की पुस्तक का
खासतौर से जिक्र किया। उन्होंने भारत को बाघों के बचाव की दृष्टि से मुख्य केन्द्र बताया।
पन्ना स्टोरी
श्री मूर्ति ने कान्हा क्रोनोलॉजी प्रोजेक्ट टाइगर, बफर एरिया घोषित करने तथा पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों को पुनस्थापित करने की ‘पन्ना
स्टोरी’का उल्लेख करते हुए बाघ की गणना की पगमार्क और केमरा ट्रेप पद्धति से अवगत करवाया। श्री मूर्ति ने रीवा के सफेद शेर मोहन
के पाये जाने और इस नस्ल को बढ़ावा देने के प्रयासों की जानकारी भी दी।
शुरूआत में प्रबंध संचालक श्री हरिरंजन राव ने पर्यटन निगम की बौद्धिक गतिविधि के रूप में व्याख्यान श्रंखला के उद्देश्यों से अवगत
करवाते हुए अगले वर्ष हर दो माह में इसे आयोजित करने को कहा। निगम की अपर प्रबंध संचालक सुश्री तन्वी सुन्द्रियाल सहित अन्य
अधिकारी तथा जिज्ञासु श्रोता मौजूद थे।