भोपाल, मार्च 2015/ नागपुर में चल रही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने देश में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा अथवा संविधान स्वीकृत प्रादेशिक भाषा में ही दिए जाने की मांग की है।
इस संबंध में प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि देश-विदेश की विविध भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करने की पक्षधर है लेकिन उसका यह मानना है कि स्वाभाविक शिक्षण व सांस्कृतिक पोषण के लिए शिक्षा, विशेष रुप से प्राथमिक शिक्षा, मातृभाषा अथवा संविधान स्वीकृत प्रादेशिक भाषा के माध्यम से ही होनी चाहिए.
भाषा केवल संवाद की ही नहीं अपितु संस्कृति एवं संस्कारों की भी संवाहिका है. भारत एक बहुभाषी देश है. सभी भारतीय भाषाएँ समान रूप से हमारी राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक अस्मिता की अभिव्यक्ति करती हैं. यद्यपि बहुभाषी होना एक गुण है किंतु मातृभाषा में शिक्षण वैज्ञानिक दृष्टि से व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है. मातृभाषा में शिक्षित विद्यार्थी दूसरी भाषाओं को भी सहज रूप से ग्रहण कर सकता है . प्रारंभिक शिक्षण किसी विदेशी भाषा में करने पर जहाँ व्यक्ति अपने परिवेश, परंपरा, संस्कृति व जीवन मूल्यों से कटता है वहीं पूर्वजों से प्राप्त होने वाले ज्ञान, शास्त्र, साहित्य आदि से अनभिज्ञ रहकर अपनी पहचान खो देता है.
महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ ठाकुर, श्री माँ, डा. भीमराव अम्बेडकर, डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे मूर्धन्य चिंतकों से लेकर चंद्रशेखर वेंकट रामन,प्रफुल्ल चंद्र राय, जगदीश चंद्र बसु जैसे वैज्ञानिकों, कई प्रमुख शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों ने मातृभाषा में शिक्षण को ही नैसर्गिक एवं वैज्ञानिक बताया है. समय-समय पर गठित शिक्षा आयोगों यथा राधाकृष्णन आयोग, कोठारी आयोग आदि ने भी मातृभाषा में ही शिक्षा देने की अनुशंसा की है. मातृभाषा के महत्व को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र ने भी समस्त विश्व में 21 फरवरी को मातृभाषा-दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है.
प्रतिनिधि सभा स्वयंसेवकों सहित समस्त देशवासियों का आवाहन करती है कि भारत के समुचित विकास, राष्ट्रीय एकात्मता एवं गौरव को बढ़ाने हेतु शिक्षण, दैनंदिन कार्य तथा लोक-व्यवहार में मातृभाषा को प्रतिष्ठित करने हेतु प्रभावी भूमिका निभाएँ. इस विषय में परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण है. अभिभावक अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा अपनी ही भाषा में देने के प्रति दृढ़ निश्चयी बनें.
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा यह भी आवाहन करती है कि केन्द्र सरकार एवं राज्य-सरकारें अपनी वर्तमान भाषा संबंधी नीति का पुनरावलोकन कर प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा अथवा संविधान स्वीकृत प्रादेशिक भाषा में देने की व्यवस्था सुनिश्चित करें तथा शिक्षा के साथ-साथ प्रशासन व न्याय-निष्पादन भारतीय भाषाओं में करने की समुचित पहल करें.