मध्यप्रदेश अपनी स्थापना के 56 वसंत देखने के बाद एक नवंबर को 57 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। साढ़े पाँच दशक के दौरान भारत के इस हृदय-प्रदेश ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे। विभिन्न दल की सरकारें बनीं। सभी मुख्यमंत्रियों ने अपनी-अपनी समझ क्षमता और कार्यकुशलता से प्रदेश के विकास में अपना योगदान किया। बहरहाल, एक खेदजनक बात यह स्पष्ट रूप से सामने आयी कि तमाम कोशिशों के बावजूद मध्यप्रदेश अपनी क्षमताओं के अनुरूप समग्र रूप से विकसित नहीं हो सका। अकूत प्राकृतिक सम्पदा और विकास की संभावनाएँ भरपूर होने के बाद भी यह संभावनाओं का प्रदेश ही कहा जाता रहा। विकास और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ इसीलिए इसे “पिंजरे में बंद शेर” भी कहते रहे।
बहरहाल, बीते 8 वर्षों में प्रदेश में दो महत्वपूर्ण बातें हुयीं। पहली यह कि यह संभावनायुक्त से संभावनाओं को साकार करने वाले प्रदेश के रूप में उभरा। दूसरी बात, यह निगेटिव ग्रोथ प्रुफ हो गया। इन दो महत्वपूर्ण तथ्यों के चलते अब यह उदीयमान प्रदेश हो गया है।
प्रदेश के संभावना से कम विकसित होने का प्रमुख कारण प्राकृतिक सम्पदा के विकास में दोहन के लिए बुनियादी ढाँचा खड़ा न हो पाना रहा। इसी कारण, उद्योगपति मध्यप्रदेश में निवेश के नाम पर मुँह बिचकाते रहे। विगत 8 वर्ष में सड़क, बिजली, पानी सहित अधोसंरचना विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्रदेश के खाते में दर्ज हैं। इसीके चलते अब उद्योगपतियों और निवेशकों को मध्यप्रदेश में आना फायदेमंद नजर आने लगा है। वे पूरे भरोसे के साथ यहाँ निवेश कर रहे हैं। इससे प्रदेश में वाणिज्य और उद्योग को गति मिली है।
मध्यप्रदेश आज एक मजबूत अर्थ-व्यवस्था वाला प्रदेश बन गया है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-11) के 7.6 प्रतिशत आर्थिक विकास के लक्ष्य को दो साल पहले ही पीछे छोड़ कर योजना के अंत में 10.20 प्रतिशत विकास दर हासिल की गयी। इससे पहले नवमीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) में यह दर 8.49 प्रतिशत थी। इसी तरह ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में औसत कृषि विकास दर 9.04 प्रतिशत रही, जो एक शानदार उपलब्धि है। इस दौरान अखिल भारतीय कृषि विकास दर महज 3.3 प्रतिशत रही।
मध्यप्रदेश ने वर्ष 2011-12 में लगभग 12 प्रतिशत आर्थिक विकास दर और 18 प्रतिशत कृषि विकास दर हासिल कर अपनी आर्थिक मजबूती का परिचय दिया। बीते पाँच वर्ष में प्रदेश की संचयी औद्योगिक विकास दर 9.82 प्रतिशत रही, जबकि अखिल भारतीय दर 6.83 रही। वर्ष 2011-12 में प्रदेश की औद्योगिक विकास दर अखिल भारतीय 3.95 की तुलना में 8.05 प्रतिशत रही। जीएसडीपी में सेकण्डरी सेक्टर (खनिज, विनिर्माण, ऊर्जा, निर्माण) का योगदान बढ़कर 33 प्रतिशत हो गया। निर्माण क्षेत्र में प्रदेश 16.69 प्रतिशत की दर से बढ़ा।
वर्ष 2011-12 में मध्यप्रदेश ने आर्थिक विकास दर में गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, पंजाब और तमिलनाडु जैसे दिग्गज प्रदेशों को पीछे छोड़ दिया है।
प्रदेश के विकास में दूसरा महत्वपूर्ण कार्य प्रदेश का ऐसी स्थिति में पहुँच जाना है, जहाँ अब भविष्य में नकारात्मक विकास (निगेटिव ग्रोथ) संभव नहीं होगा। इसमें कृषि को मिले मजबूत आधार ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कृषि प्रधान अर्थ-व्यवस्था वाले इस प्रदेश में कृषि-आधार में मजबूती के फलस्वरूप 5 वर्ष में प्रदेश विकास दर कभी नकारात्मक नहीं रही। वर्ष 2009-10 में 35 प्रतिशत और 2010-11 में 36 प्रतिशत कम वर्षा हुयी। वर्ष 2010-11 में व्यापक सूखा रहा, फिर भी विकास दर 10 प्रतिशत से अधिक रही। यहाँ तक कि वर्ष 2010-11 में पाले और तुषार से 7 हजार करोड़ की फसल का नुकसान होने पर भी प्रदेश की विकास पर नकारात्मक नहीं हुयी। इसके विपरीत वर्ष 2004-05 के पूर्व ऐसी स्थिति बनने पर विकास नकारात्मक हो जाता था।
प्रदेश में सिंचाई सुविधा का अभूतपूर्व विकास कृषि में मजबूती का महत्वपूर्ण कारण है। इसके चलते मध्यप्रदेश अब एक तरह से ड्राउट प्रुफ भी हो गया है। आज यह एक-दो सूखे की मार सहजता से झेलते हुए अनिरूद्ध विकास करने में सक्षम बन गया है। बीते 7 वर्ष में करीब 8 लाख हेक्टेयर की अतिरिक्त सिंचाई क्षमता निर्मित की गयी। बलराम तालाबों का भी इसमें बहुत योगदान रहा। इनसे 28 हजार हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र को सिंचाई का पानी मिला है। आज मध्यप्रदेश में क्षेत्र सिंचित 32 प्रतिशत हो गया है।
सिंचाई क्षमता में विकास के साथ-साथ राज्य सरकार द्वारा कृषि के विकास के लिए दी जा रही सुविधाओं के चलते प्रदेश कृषि उत्पादन के नये कीर्तिमान रच रहा है। वर्ष 2011-12 में मध्यप्रदेश ने गेंहूँ उत्पादन में हरियाणा और उत्तरप्रदेश को पीछे छोड़ते हुए पंजाब के बाद दूसरा स्थान प्राप्त किया। बीते रबी मौसम में प्रदेश में 127 लाख टन का बम्पर गेंहूँ उत्पादन हुआ।
वर्ष 2002-03 में मध्यप्रदेश का समग्र कृषि उत्पादन 145.45 मीट्रिक टन था, जो वर्ष 2010-11 में बढ़कर 254.86 लाख मीट्रिक टन हो गया। इसी तरह कृषि उत्पादकता 831 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 1230 किलोग्राम हो गयी। यह वृद्धि 47 प्रतिशत है। सिर्फ 32 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र के बलबूते इतनी बड़ी उपलब्धि अर्जित करना कोई कम महत्वपूर्ण बात नहीं है।
अधोसंरचना विकास में लगभग 70 हजार किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण और सुधार किया गया। इससे न केवल आवागमन आसान हुआ, बल्कि आर्थिक गतिविधियों को तेज गति मिली। बिजली के मामले में बहुत तेजी से काम हुआ है। प्रदेश में विद्युत उत्पादन क्षमता बढ़कर 9458 मेगावाट हो गयी है। फीडर सेपरेशन की महत्वाकांक्षी परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है। इससे अगले साल के अंत तक ग्रामीण परिवारों को 24 घंटे तथा खेती के लिए 8 घंटे बिजली मिलने लगेगी।
यह तो हुयी भौतिक विकास की बात। लेकिन सिर्फ भौतिक विकास ही सब कुछ नहीं होता। लोगों का शैक्षणिक, बौद्धिक और सामाजिक विकास होने पर ही इसे पूर्णता प्राप्त होती है। इसमें शिक्षा की अहम भूमिका है। मध्यप्रदेश में बीते 8 वर्ष में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक भरपूर ध्यान दिया गया। स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में शाला न जाने वाले तथा पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या में आयी उल्लेखनीय कम एक बड़ी उपलब्धि है। सर्व शिक्षा अभियान के प्रारंभ में प्रदेश में शाला न जाने वाले बच्चों की संख्या 13 लाख 28 हजार थी, जो अब कम होकर 1 लाख 26 हजार रह गयी है।
राज्य सरकार ने पहली से बारहवीं कक्षा तक बच्चों को पढ़ाई की लगभग सारी सुविधाएँ मुफ्त उपलब्ध करवा दी हैं। बड़ी संख्या में शिक्षकों की भर्ती की गयी है। आज प्रदेश के बच्चों में पढ़ाई के प्रति जबर्दस्त रुझान है। माता-पिता भी बच्चों को पढ़ाने के प्रति बहुत जागरूक हो गये हैं। उनमें पढ़ने की चाह उत्पन्न होना ही अपने आप में बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि जहाँ चाह होती है, वहाँ राह निकल ही आती है।
इसी प्रकार, तकनीकी और उच्च शिक्षा का प्रदेश में गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों का तेजी से विस्तार हुआ है। प्रदेश में हर साल लगभग एक लाख टेक्नीकल ग्रेजुएट तथा 2 लाख 70 हजार से अधिक ग्रेजुएट तैयार हो रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर के अनेक उच्च शिक्षा संस्थान खुल गये हैं। इनमें ग्वालियर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इनफर्मेशन टेक्नालॉजी, भोपाल में नेशनल लॉ स्कूल और नेशनल ज्यूकडिशियल अकाडेमी तथा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी, इंदौर में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेनेजमेन्ट और आई.आई.टी. आदि प्रमुख है। प्रदेश में उद्योगों की प्रशिक्षित जनशक्ति की माँग को पूरा करने के लिए महत्वाकांक्षी कौशल विकास कार्यक्रम हाथ में लिया गया है। नये औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्र खोले जा रहे हैं और उनके पाठ्यक्रमों में समय की आवश्यकता के अनुरूप संशोधन-परिवर्तन किये जा रहे है।
इन प्रयासों से प्रदेश के युवाओं की रोजगार पाने की योग्यता लगातार बढ़ रही है और वे देश-दुनिया में मध्यप्रदेश का नाम ऊँचा कर रहे हैं। आधी आबादी, महिलाओं के सशक्तीकरण, उनके हितों के संरक्षण तथा उनके प्रति समाज के दृकष्टकोण में सकारात्मक बदलाव लाने में मध्यप्रदेश ने पूरे देश को राह दिखाई है। लाड़ली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, स्थानीय निकायों तथा शिक्षक के पदों में महिलाओं का 50 प्रतिशत आरक्षण, गाँव की बेटी, प्रतिभाकिरण, ऊषा किरण और पिछले साल से जारी बेटी बचाओ अभियान इस दिशा में बहुत सफल रहे हैं। इससे जहाँ महिलाओं तथा बालिकाओं के प्रति समाज की सोच में सकारात्मक बदलाव आ रहा है, वहाँ स्वयं उन्हें भी अपनी शक्ति और महत्व का अहसास हुआ है।
मध्यप्रदेश के विभिन्न अंचलों में रहने वाले लोगों में सांस्कृतिक एकीकरण तथा “मध्यप्रदेशियत” का भाव जाग्रत करने में “आओ बनाएँ अपना मध्यप्रदेश” अभियान काफी सफल रहा है। “मध्यप्रदेश गान” की रचना से लोगों में मध्यप्रदेश के गौरव के प्रति जाग्रति आयी है।
शिक्षा और जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ शासन स्तर पर किये गये प्रयासों के कारण अब महिलाओं, अनुसूचित जाति, जनजाति सहित अन्य कमजोर वर्गों के प्रति होने वाले अपराधों में उल्लेखनीय कमी आयी है। अनुसूचित जाति और जनजाति की नयी पीढ़ी शिक्षा में तेजी से आगे बढ़ रही है, जिससे इन वर्गों की सामाजिक-आर्थिक हैसियत में फर्क आने लगा है।
मध्यप्रदेश के भौतिक और सामाजिक विकास में सुशासन का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रदेश में सुशासन के नवाचार किये गये हैं और शासन-प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग इसे अधिक प्रभावी बनाया गया है। लोगों को शासकीय सेवाएँ समय पर और आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए लोकसेवा गारंटी जैसा अद्भुत कानून लागू किया गया है। इसके महत्व का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे संयुक्त राष्ट्र का पुरस्कार मिला। मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा विकास के श्रेष्ठ कार्यों तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में किये गये कार्यों के फलस्वरूप उन्हें अपने अनुभव साझा करने के लिए विश्व बैंक तथा मिशिगन यूनिवर्सिटी में आमंत्रित किया गया।
विकास की एक बड़ी शर्त शांति-व्यवस्था है। इस मामले में मध्यप्रदेश बहुत अच्छी स्थिति में है। प्रदेश में दस्यु समस्या का उन्मूलन हो चुका है। आज प्रदेश में कोई भी सूचीबद्ध दस्यु गिरोह नहीं है। ‘सिमी’ के नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया गया है। साथ ही माओवाद पर प्रभावी अंकुश लगातार बना हुआ है।
विकास और किसे कहते हैं? भौतिक के साथ-साथ मानसिक, सामाजिक और बौद्धिक उत्थान के सम्मिश्रण से ही समग्र विकास होता है। मध्यप्रदेश में यही हो रहा है। अब मध्यप्रदेश न “बीमारू” है न पिछड़ा, न संभावनाओं का प्रदेश है न पिंजरे में बंद शेर। अब अपनी समस्त प्राकृतिक सम्पदा का समग्र विकास में उपयोग करता हुआ यह है – उदीयमान मध्यप्रदेश।