भोपाल, अप्रैल 2015/ भोपाल से 70 कि.मी. दूर राजगढ़ जिले का चिड़ी खो (नरसिंहगढ़) वन्य-प्राणी अभयारण्य देश के भावी नागरिकों के लिए प्रकृति की पाठशाला बन चुका है। गत वर्ष से यहाँ आरंभ हुए नेचर एजूकेशन केम्प के प्रथम चरण में अब तक नरसिंहगढ़ के विभिन्न स्कूल के लगभग 1000 बच्चे भाग ले चुके हैं। वर्तमान वर्ष का सातवाँ ढाई दिवसीय शिविर आज से शुरू हुआ जिसमें नरसिंहगढ़ के श्री विनायक हायर सेकेण्डरी स्कूल के कक्षा 9 से 12 वीं के 30 विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। अभयारण्य में विद्यार्थियों के लिए इस माह तीन केम्प 6,7,8 अप्रैल, 10,11,12 अप्रैल और 15,16,17 अप्रैल को लगाये जा रहे हैं। शुरूआत गृह जिले से करने के बाद धीरे-धीरे सभी जिलों के बच्चों को इस प्रकृति की पाठशाला में शामिल किया जाएगा। केम्प का उद्देश्य छात्र-छात्राओं को वन, वन्य-प्राणी और पर्यावरण सुरक्षा की शिक्षा और संस्कार देना है, जो क्लास रूम में संभव नहीं है।
नेचर एजुकेशन केम्प
नेचर केम्प की शुरूआत फरवरी 2014 में एक दिवसीय शिविर के रूप में की गई थी, परन्तु इसमें छात्र सुबह पक्षी दर्शन और शाम को वन्य प्राणियों की गतिविधियों के अनुभव से वंचित रह जाते थे। इसके मद्देनजर केम्प ढाई दिवसीय कर दिए गए। छात्र-छात्राओं को ओरिएन्टेशन सेंटर चिड़ी खो हाल और एल्पाईनटेंट में ठहराया जाता है। पहले दिन विद्यार्थियों को अभयारण्य का सामान्य परिचय, वेट लेण्ड, नेचर ट्रेल भ्रमण, पर्यावरण, ईको सिस्टम, जैव विविधता अगले दिन की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी जाती है। बच्चों को जंगल से भली भाँति परिचित करवाने के लिए फिल्म भी दिखाई जाती हैं।
दूसरे दिन सुबह बच्चों को जंगल में पक्षी दर्शन, नेचर ट्रेल भ्रमण, वन्य-प्राणी, वनस्पति, जैव विविधता, वेट लेण्ड की विस्तृत जानकारी दी जाती है। बच्चों को प्राथमिक उपचार की जानकारी भी दी जाती है। प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण की जानकारी विभिन्न गतिविधियों और मनोरंजक नेचर गेम्स के माध्यम से की जाती है। अब तक के शिविरों का काफी अच्छा प्रभाव रहा है। छात्रों ने जाना है कि अपने दैनिक जीवन में किस तरह ईको फ्रेंडली रहकर पर्यावरण का संरक्षण कर सकते हैं। तीसरे दिन छात्र-छात्रा पर्यावरण शिक्षा, श्रमदान, फीड बेक और प्रमाण-पत्र वितरण कार्यक्रम के बाद अपने घर लौट जाते हैं।
नरसिंहगढ़ वन्य-प्रणी अभयारण्य
ब्रिटिश काल में शिकारगाह के रूप में प्रसिद्ध 57.19 वर्ग किलोमीटर में फैले वन और वन्य-प्राणियों से समृद्ध स्थल को वर्ष 1974 में अभयारण्य घोषित किया गया था। नरसिंहगढ़ महाराज श्री विक्रम सिंह द्वारा वर्ष 1935 में निर्मित झील चिड़ीखोह यहाँ का मुख्य आकर्षण है। अभयारण्य में मध्यप्रदेश के राजकीय पक्षी दूधराज सहित 175 प्रजाति के पक्षी (50 प्रवासी पक्षी) पाए जाते हैं। विशेष प्रजातियाँ जैसे रेड स्परफाउल, प्लमहेडेड पेराकीट, हरियल और ठण्ड में प्रवासी पक्षी ब्राह्मणी डक, कामन टील, कॉब डक आसानी से देखे जा सकते हैं। इसके अलावा तेन्दुआ, सियार, चीतल, सांभर, नीलगाय, चिंकारा, कृष्ण मृग, जंगली सुअर, पेड़-पौधों की 160, घास की 18 और जलीय पौधों की 11 प्रजाति यहाँ उपलब्ध हैं।