फंडा यह है कि…
कॉर्पोरेट कंपनियां अब ईमानदारी की तपिश को महसूस करने लगी हैं। अपने विद्यार्थियों की पृष्ठभूमि की जांच-पड़ताल कर उसका समुचित रिकॉर्ड रखने वाले कॉलेजों के लिए उन्हें बड़ी-बड़ी बहुराष्टï्रीय कंपनियों में प्लेस करने की बेहतर संभावनाएं हैं, बनिस्बत ऐसे कॉलेजों के जो अपने विद्यार्थियों को सिर्फ उनकी शैक्षणिक योग्यता के साथ जॉब मार्केट में भेजते हैं।
‘हमारे संस्थान में बहुत-से खराब लोग आ गए थे; हमने लोगों पर भरोसा करते हुए बगैर उनकी पृष्ठभूमि जांचे उन्हें नियुक्त कर लिया। हमारे यहां एक एक्जीक्यूटिव था, जिसका काम रिटेल आउटलेट्ïस के लिए उपयुक्त लोकेशनों का आकलन करना था। उसने भूस्वामियों से पैसे डकारते हुए ऐसी लोकेशनों को फाइनल कर दिया, जो हमारे कारोबार के लिहाज से उपयुक्त नहीं थीं। हमारे संस्थान की दूसरी गलती ऐसे छात्रों का चयन रहा, जिन्हें बाजार के बारे में व्यावहारिक जानकारी नहीं थी, जिसके चलते मध्य स्तर पर प्रबंधन का संकट हो गया।’ यह बात मुझसे विशाल रिटेल के प्रमोटर राम चंद्र अग्रवाल ने कही, जिन्होंने पिछले साल अपना कारोबार 70 करोड़ रुपए में बेच दिया।
उत्तर प्रदेश को देखें। इस राज्य में अतीत में हर चुनाव में (चाहे वह लोकसभा का चुनाव हो, विधानसभा का या फिर नगरीय निकाय का) साल-दर-साल आपराधिक रिकॉर्ड वाले प्रत्याशी चुने जाते रहे हैं, लेकिन अचानक यहां अपराधियों को ठुकरा दिया गया। हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में 901 दागी मैदान में थे, जिनमें से सिर्फ 14 जीतने में सफल रहे। 2007 के विधानसभा चुनावों में भी 143 दागी उम्मीदवार चुने गए थे।
आश्चर्यजनक यह है कि 2007 के चुनाव में 28 फीसदी प्रत्याशियों पर आपराधिक आरोप थे। वर्ष 2012 में नेशनल इलेक्शन वॉच द्वारा राजनीति के अपराधीकरण को रोकने की मुहिम चलाने के बावजूद 35 फीसदी दागी चुनाव मैदान में थे। हालांकि कुछ पार्टियों ने कट्टर अपराधियों को चुनावी समर में उतारने के प्रति अनिच्छा भी दिखाई, लेकिन कोई भी उन्हें चुनाव में अपनी पार्टी में उभरने से नहीं रोक सका। यह बदलते भारत के लिए एक अच्छा संकेत है कि मतदाताओं ने आपराधिक रिकॉर्ड वाले प्रत्याशियों को खारिज करते हुए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।
जनवरी 2012 में फोर्ड ने घोषणा की कि इसकी चौथी तिमाही की कमाई विश्लेषकों के अनुमान से अधिक रही है। निवेशकों ने बगैर समय गंवाए उसी दिन इसका गहन परीक्षण किया और पाया कि उन कमाइयों में बड़ा हिस्सा एक-बारगी होने वाली प्राप्तियों का भी है। इन प्राप्तियों को हटा दिया जाए तो फोर्ड का प्रति शेयर लाभ 20 सेंट (अमेरिकी मुद्रा)ठहरती है, जबकि विश्लेषकों ने 25 सेंट का अनुमान लगाया था। नतीजतन उसी शाम फोर्ड के शेयरों में चार फीसदी से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई। निवेशक अनुभवी थे और उन्होंने फौरी नतीजों से परे इसके बारे में ज्यादा बुनियादी जानकारी इक_ा की, जिससे उन्हें वस्तुस्थिति मालूम हो गई।
उपरोक्त तीनों उदाहरणों में एक बात समान है। आज लोग कॉर्पोरेट व्यवस्था में किसी भी तरह के गलत काम को बर्दाश्त नहीं करते, अपराध व अपराधियों को भी बर्दाश्त नहीं करते और न ही वे निवेशकों को धोखा देने के लिए दी गई गलत जानकारी को सहन कर सकते हैं। अब कम से कम कॉर्पोरेट लाइफ में नई नियुक्तियों के संदर्भ में उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि की पड़ताल भी अहम हिस्सा होने जा रही है। हालांकि राजनीति के बारे में अब भी ऐसा कहना मुश्किल है। अपने छात्रों को कॉर्पोरेट कंपनियों में प्लेस करने की जुगत में लगे कॉलेजों को चाहिए कि वे अपने तमाम छात्रों की पृष्ठभूमि की जांच पर भी जोर दें।