भोपाल, अप्रैल 2015/ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल से सहमत होकर राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बेंक (नाबार्ड) ने देश में पहली बार किसानों के व्यापक हित में आनावारी के बजाय किसानवार फसल हानि का मापदंड तय करने के मध्यप्रदेश के प्रस्ताव को मान्य कर कर्ज की वसूली स्थगित और पीड़ित किसान को पुन: कर्ज देने के प्रस्ताव पर अपनी सहमति दी है।

प्रदेश सरकार के आग्रह पर नाबार्ड ने देश में पहली बार यह ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इस निर्णय से प्रदेश के आपदा प्रभावित किसानों को बड़ी राहत मिली है। अब आनावारी के बजाय किसान को इकाई मानते हुए  फसल क्षति का आकलन किया गया है।

मध्यप्रदेश के विशेष सन्दर्भ में  रबी 2015 में ओला वृष्टि की क्षति के लिये ऋण स्थगित करने की प्रक्रिया को नाबार्ड ने परिवर्तित कर दिया है। देश में यह पहला उदाहरण है। इससे ऐसे किसानों के शार्ट-टर्म फसल ऋण को मीडियम टर्म क्रॉप लोन में परिवर्तित किया जा सकेगा, जिनकी फसल का नुकसान 50 प्रतिशत से अधिक है।

इसके अलावा राज्य सरकार ने जिन किसानों  ने सहकारी बेंकों से ऋण प्राप्त किया था उनके लिए वर्ष 2013-14 एवं 2014-15 में रिजर्व बेंक के मापदण्डों के अनुसार आनावारी के आधार पर फसल ऋण वसूली के लिये शार्ट-टर्म ऋण को मीडियम टर्म ऋण में परिवर्तित किया था। इसके लिए राज्य सरकार द्वारा 4 करोड़ 74 लाख रुपये की ऋण गारंटी नाबार्ड को दी गयी है। जिला सहकारी बेंकों को 105 करोड़ रुपये प्रदाय किये गये हैं। राज्य के अंश के रूप में यह राशि दी गयी है। साथ ही यह भी आदेश जारी किया गया है कि अगले 3 वर्ष तक स्थगित किये गये कर्ज की वसूली पर भी ब्याज शून्य प्रतिशत ही रहेगा। इस तरह मुख्यमंत्री ने अपनी पूर्व की घोषणाओं को पूरा किया है।

उल्लेखनीय है कि श्री चौहान की विशेष पहल पर इस बार राज्य सरकार की ओर से नाबार्ड के अध्यक्ष को किसानों के व्यक्तिगत प्रकरण के आधार पर लघु अवधि के कर्ज को मध्यम अवधि के कर्ज में बदलने का प्रस्ताव दिया गया था। राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए नाबार्ड अध्यक्ष को बताया कि गाँव की आनावारी और फसल कटाई प्रयोग में भी फसल के वास्तविक नुकसान का अंदाज नहीं हो पा रहा है। गाँव में 50 प्रतिशत से ज्यादा नुकसान भले ही नहीं हुआ हो लेकिन उस गाँव में ऐसे कई किसान हो सकते हैं जिनका 50 प्रतिशत से ज्यादा नुकसान हुआ है। इससे वे लघु अवधि कर्ज को माध्यम अवधि कर्ज में बदलने की सुविधा से वंचित रह गए हैं। यह भी तर्क दिया गया कि गाँव की आनावारी में 50 प्रतिशत से ज़्यादा नुकसान दिख सकता है लेकिन प्रभावित किसानों की संख्या कम भी हो सकती है। नाबार्ड द्वारा नीति में परिवर्तन से किसानों को  नुकसान के हिसाब से राहत मिलने में समस्या नहीं होगी। नुकसान को जिला कलेक्टर द्वारा प्रमाणीकृत किया जायेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here