भोपाल, मई 2015/ मध्यप्रदेश में सिंचाई क्षमता बढ़ाने के अभूतपूर्व सफल प्रयासों के साथ-साथ निर्मित सिंचाई क्षमता के वास्तविक उपयोग में भी 13 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। वर्ष 2003-04 में मध्यप्रदेश में कुल साढ़े सात हेक्टेयर में सिंचाई होती थी, जिसकी तुलना में अब सिंचाई क्षमता बढ़कर 33 लाख हो गई है।

राष्ट्रीय स्तर पर निर्मित सिंचाई क्षमता का वास्तविक उपयोग लगभग 35 से 40 प्रतिशत ही होता है। मध्यप्रदेश में यह लगभग 70 प्रतिशत है।

प्रदेश में सफल सिंचाई प्रबंधन की बदौलत बीते 10 वर्ष में सिंचाई क्षमता और वास्तविक सिंचाई के अंतर को लगातार कम किया गया है। वर्ष 2004-05 में निर्मित सिंचाई क्षमता 22 लाख 58 हजार हेक्टेयर थी, जिसकी तुलना में वास्तविक सिंचाई 10 लाख 35 हजार हेक्टेयर थी। वर्तमान में निर्मित सिंचाई 33 लाख हेक्टेयर है, जिसकी तुलना में वास्तविक सिंचाई 23 लाख 80 हजार हेक्टेयर हो रही है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा के अनुरूप पिछले एक दशक में निर्मित सिंचाई क्षमता के अधिकतम उपयोग की दिशा में बहुआयामी प्रयास किये गये। इन प्रयासों में वर्षों से अधूरी पड़ी वृहद और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने के साथ ही लघु सिंचाई योजनाओं को समयबद्ध रूप में पूरा किया गया। मध्यम और वृहद सिंचाई परियोजनाओं की नहरों के अंतिम छोर तक पानी पहुँचाया गया।

प्रदेश में सिंचाई क्षमता के वास्तविक उपयोग में वृद्धि बेहतर सिंचाई प्रबंधन के फलस्वरूप हो सकी है। प्रदेश में सभी बड़ी सिंचाई परियोजनाओं में नहरों को पक्का किया गया है। साथ ही नहरों के अंतिम छोर तक पानी पहुँचाया गया है। मशीनें लगाकर नहरों में वर्षों से जमा गाद को निकाला गया है। नहरों में उगी झाड़ियों को हटाने और साफ-सफाई के लिये विशेष अभियान चलाया गया। इसके अलावा बड़ी नहरों में रोटेशन पद्धति से पानी का संचालन किया गया। नहरों के टूटे-फूटे गेटों को बदला और सुधारा गया है।

प्रदेश स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक पद्धति से सिंचाई की मॉनीटरिंग की गई। इस कार्य के लिये इस साल जल संसाधन विभाग को ई-गवर्नेंस उत्कृष्टता पुरस्कार भी मिला है।

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