मध्यप्रदेश की स्थापना के छप्पन वर्ष में पिछले नौ साल सही मायने में महिला सशक्तिकरण के रहे हैं। वर्ष 2004 के पहले महिला सशक्तिकरण को इतनी मजबूती नहीं मिल सकी थी, जितनी उसके बाद मिली। यही कारण रहा कि मध्यप्रदेश में महिलाओं के कल्याण के लिए किये गये बहु-आयामी प्रयासों के फलस्वरूप सभी क्षेत्रों में उन्होंने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज की। स्थानीय-नगरीय निकायों में मिले 50 प्रतिशत आरक्षण के फलस्वरूप आज 56 प्रतिशत जन-प्रतिनिधि महिलाएँ शासन की निर्णायक व्यवस्था में महती भूमिका निभा रही हैं। मध्यप्रदेश में बीते नौ वर्ष में महिलाओं को हर क्षेत्र में समान अधिकार और निर्णय लेने के समान अवसर प्रदान किये गये।

महिला सशक्तिकरण की दिशा में जितने ठोस कदम पिछले नौ साल में उठाए गये उतने वर्ष 1956 के बाद कभी नहीं। प्रदेश की स्थापना से लेकर वर्ष 2003 तक महिलाओं को लेकर इतने निर्णय, योजनाएँ और कार्यक्रम नहीं बन सके जितने वर्ष 2004 से 2012 में बने। राज्य की स्थापना के बाद किसी सरकार ने कभी यह नहीं सोचा कि गाँवों, कस्बों और शहरों के विकास में महिलाएँ भी भागीदार बने अथवा शासन व्यवस्था का नेतृत्व करें। पंचायतों और नगरीय निकायों में मिले 50 प्रतिशत आरक्षण के कारण अब वे अपनी प्रभावी भूमिका को दर्ज करवा रही हैं।

विकास की अवधारणा में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने का सर्वप्रथम प्रयास किया गया है बीते नौ वर्ष की अवधि में। स्थापना के प्रारंभ से ही यदि विकास की प्रक्रिया में महिलाओं की ओर विशेष ध्यान दिया जाता तो शायद मध्यप्रदेश को लाड़ली लक्ष्मी, बेटी बचाओ अभियान की कदापि जरूरत नहीं पड़ती। मध्यप्रदेश की स्थापना के बाद 47 वर्ष (1956-2003) में महिला सशक्तिकरण की बात तो बहुत की गई, लेकिन उसे मजबूती नहीं मिल सकी। महिला सशक्तिकरण को नई पहचान और वास्तविक रूप से मजबूती मिल सकी तो इन बीते नौ वर्ष में।

राज्य की स्थापना के तीस साल और विभिन्न राज्य सरकारों के कार्यकाल के बाद पहली बार वर्ष 1987 में महिला-बाल विकास विभाग का गठन तो किया गया लेकिन महिलाओं के कल्याण का मार्ग फिर भी प्रशस्त नहीं हो पाया। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए अक्टूबर, 1988 में महिला वित्त विकास निगम की भी स्थापना की गई। राज्य की पहली महिला नीति तो बनी लेकिन महिलाओं के हित में उल्लेखनीय कदम नहीं उठ सके। बाद में वर्ष 2007-12 में बनी महिला नीति के क्रियान्वयन से महिला सशक्तिकरण बढ़ा। “मंथन” के निष्कर्षों ने महिलाओं के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। जुलाई 2007 में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर पहली बार मध्यप्रदेश में महिला पंचायत बुलाकर महिलाओं के लिए योजनाएँ बनाने की पहल की गई। नई योजनाओं और नई महिला नीति के लिए महिलाओं से ही सुझाव माँगे गये।

महिलाओं और बेटियों का कल्याण मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की प्राथमिकता में प्रारंभ से शामिल रहा। महिलाओं और बेटियों को बराबरी का हक दिलाने में मध्यप्रदेश अब कतई पीछे नहीं है। वर्ष 2007 से निरंतर अपनाए जा रहे नवाचारों के कारण महिलाओं की दिशा और दशा दोनों में बदलाव आया। बीते नौ साल में महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक उत्थान व सर्वांगीण विकास के लिए ऐसे नीतिगत फैसले लिए गये, जिनके दूरगामी परिणाम शनै:-शनै: सामने आ रहे हैं। महिला सशक्तिकरण की मजबूती के लिए फैसले और दृढ़ इच्छाशक्ति की वजह से महिलाओं में आत्म-विश्वास निरंतर बढ़ा है। राज्य सरकार ने अनेक ऐसे नवाचारों को अपनाया जिनसे महिलाओं-बेटियों की स्थिति सतत सुदृढ़ हो रही है।

मध्यप्रदेश ने पिछले नौ साल में एक साथ अनेक योजनाएँ, कार्यक्रम शुरू कर महिला सशक्तिकरण की मजबूत आधारशिला रखी गई। इस दौरान लाड़ली लक्ष्मी, मुख्यमंत्री कन्यादान, आँगनवाड़ी केन्द्रों में किशोरी बालिका दिवस, मंगल-दिवस, गाँव की बेटी, प्रतिभा किरण, बालिका भ्रूण हत्या रोकने का कड़ाई से पालन, आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं-सहायिकाओं की बड़ी संख्या में भर्ती, महिला नीति का क्रियान्वयन, कामकाजी महिलाओं के लिये वसति गृह, जागृति शिविर, अल्प-कालीन आवास गृह, सिलाई केन्द्र, बेटी बचाओ अभियान, बाल विवाह विरोधी अभियान, तेजस्विनी, ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम, ग्राम्या, स्व-सहायता समूहों का गठन, ममत्व मेला आदि ऐसी योजनाएँ संचालित की गई, जिनके फलस्वरूप मध्यप्रदेश देश के सामने महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में अपनी नई पहचान के साथ उभरा है। केन्द्र शासन की सहायता से चल रही अन्य योजनाओं के क्रियान्वयन में भी मध्यप्रदेश पीछे नहीं रहा। सबला, स्वाधार, कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय, उषा किरण योजना का भी सफलतापूर्वक संचालन कर मध्यप्रदेश ने महिलाओं-बालिकाओं को लाभ दिलाया है।

देश के अन्य राज्यों द्वारा अपनाई गई लाड़ली लक्ष्मी योजना तो अपने आप में मिसाल साबित हो रही है। अब तक तेरह लाख से अधिक बालिकाएँ इस योजना का लाभ उठाकर लखपति हुई हैं। मुख्यमंत्री की पहल पर शुरू हुई “मुख्यमंत्री कन्यादान योजना” में अब तक 2 लाख 25 हजार गरीब कन्याओं का विवाह सरकार ने अपने खर्चे पर करवाया है। निर्धन परिवारों की बेटियों के लिये वरदान साबित हो चुकी मुख्यमंत्री कन्यादान योजना की हित लाभ राशि भी 7 हजार 500 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये की जा चुकी है।

ग्रामीण क्षेत्रों में कक्षा छठवीं एवं नवमी में प्रवेश लेने वाली छात्राओं को एक गाँव से दूसरे गाँव में अध्ययन के लिये नि:शुल्क साइकिलें दी जा रही हैं। योजना के शुरू होने से अब तक साढ़े 16 लाख से अधिक बालिकाएँ इसका लाभ उठा चुकी हैं। बालिकाओं को अध्ययन के लिये प्रोत्साहित करने हेतु परिवहन भत्ते की ओर भी ध्यान दिया जा रहा है। तेजी से बिगड़ रहे लिंगानुपात को सुधारने के लिए मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर वर्ष 2011 से बेटी बचाओ अभियान की शुरूआत की गई है। स्थापना के समय जहाँ स्त्री-पुरुष अनुपात 937 था, जो वर्ष 1986 में बढ़कर 941 तो हुआ लेकिन वर्ष 2001 की जनगणना में यह गिरकर 927 और वर्ष 2011 में 912 तक पहुँच गया। मौजूदा सरकार ने इसे चिंताजनक माना और बेटी बचाओ अभियान की शुरूआत की। बेटी बचाओ अभियान के तहत ऐसे अभिभावकों जिनकी संतानें बेटियाँ ही हैं, उन्हें पेंशन देने की नई योजना प्रारंभ की जा रही है। इस प्रयोजन के लिये चालू बजट में 3 करोड़ रुपये की राशि रखी गई है। एक से आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटियों को एक जोड़ी के स्थान पर दो जोड़ी शाला गणवेश के लिये चार सौ रुपये की राशि उपलब्ध करवाई जा रही है। छोटी-मोटी बसाहटों में बालिकाओं को माध्यमिक स्तर की शिक्षा को पूर्ण करवाने के लिये आवासीय सुविधा मुहैया करवाने के उद्देश्य से 200 कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय संचालित हो रहे हैं।

गाँव की बेटी योजना में गाँवों से 12 वीं कक्षा प्रथम श्रेणी में उर्त्तीण कर उच्च शिक्षा के लिए आगे पढ़ने वाली प्रतिभाशाली बालिकाओं को प्रतिमाह 500 रुपये की छात्रवृत्ति के मान से 10 माह में 5 हजार रुपये दिये जा रहे हैं। बीपीएल परिवार की बालिकाओं कोे उच्च शिक्षा अध्ययन-अध्यापन के लिए प्रतिभा किरण योजना संचालित की जा रही है। आँगनवाड़ी केन्द्रों में मनाए जाने वाले मंगल दिवसों में हर चौथा मंगलवार किशोरी बालिकाओं के नाम होता है। इस दिन बालिकाओं को संतुलित आहार, स्वास्थ्य की देखभाल आदि का प्रशिक्षण मिलता है। उषा किरण योजना में अब तक दर्ज लगभग 22 हजार 141 शिकायत में से 11 हजार का निवारण किया जा चुका है। राज्य सरकार महिलाओं की आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं के अनुसार लोक व्यय में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए जेंडर आधारित बजट का निर्धारण और क्रियान्वयन पिछले पाँच वर्ष से कर रही है।

मध्यप्रदेश के चिन्हित पन्द्रह जिलों में प्रारंभ की गई किशोरी बालिका सशक्तिकरण योजना “सबला” से 8 लाख बालिकाओं का लाभान्वित करने का लक्ष्य है। नि:शुल्क कानूनी एवं सहायता योजना का लाभ भी महिलाओं को बड़ी तादाद में मिल रहा है। पिछले नौ साल में महिला-बाल विकास के बजट सरकार ने आठ गुना से अधिक वृद्धि की है। वर्ष 2002-03 में जहाँ बजट 335 करोड़ 86 लाख था, वहीं वह अब (2012-13 में) बढ़कर 2949 करोड़ 30 लाख रुपये हो गया है। बीते 9 वर्ष में महिलाओं के प्रति हिंसा एवं अपराधों की रोकथाम के लिए भी प्रभावी पहल की गई है। महिलाओं की क्षमताओं का विकास पर उन्हें रोजगार एवं आय बढ़ाने के अवसर उपलब्ध करवाये गये हैं। श्रमिक महिलाओं के हित संवर्धन एवं संसाधन पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। वन, जल-संरक्षण, स्वच्छता एवं पर्यावरण क्षेत्र में भी वे सक्रिय भागीदारी निभा रही है। राज्य सरकार की कोशिशों से वे न सिर्फ शिक्षा बल्कि कृषि, पशु पालन, कृषि, सूचना-संचार, तकनीकी आदि क्षेत्र में भी अव्वल साबित हो रही है।

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