भोपाल, दिसम्बर 2015/ तीन पीढ़ी के राग मनीषियों की सुमधुर और घरानेदार गायिकी से सुर सम्राट तानसेन की साधना स्थली गूँज उठी। ग्वालियर में तानसेन समारोह की अंतिम संगीत सभा तानसेन की जन्मस्थली बेहट में झिलमिल नदी के किनारे घनी अमराई के बीच सजी।
अंतिम संगीत सभा में लगभग 15 वर्षीय उदीयमान कला-साधक प्रज्ज्वल शिर्के के गायन ने गहरी छाप छोड़ी तो जीवन के लगभग 90 बसंत देख चुके प्रतिष्ठित शास्त्रीय गायक पं. श्रीराम मराठे की घरानेदार गायिकी ने समां बाँध दिया। 50 वर्षीय ख्याल गायक भोपाल के जनाब जमीर हुसैन खान का गायन भी काबिले तारीफ रहा। तानसेन समारोह के मंच पर कलाश्री वाद्य वृन्द की प्रस्तुति हुई।
ख्यातिनाम संगीतज्ञ श्री अनंत पुरंदरे ग्वालियर के निर्देशन में “कलाश्री वाद्य वृन्द” में शामिल उनके शिष्यों ने जब राग मदमाद सारंग में वादन शुरू किया तो साजों के सम्मिश्रण से झर रहे सुरों के सम्मोहन में संगीत रसिक बँधे नजर आए। सबसे पहले रूपक ताल में गत प्रस्तुत की गई। सभी वाद्यों का आपसी तालमेल और आलाप तानों का सम्मिश्रण गजब का जादू पैदा कर रहा था। इसी राग में तीन ताल में मंगल प्रस्तुति “श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मनु हरण भवभय दारूणं” के साथ समापन हुआ।
किशोर वय में ही बड़े-बड़े संगीतज्ञों के चहेते बने ग्वालियर के प्रज्ज्वल शिर्के ने जब राग गुर्जरी तोड़ी एक ताल में बड़ा ख्याल “मुरली भनक पड़ी” प्रस्तुत किया तो रसिक श्रोता वाह-वाह कर उठे।”
अंतिम सभा के आखिर में ग्वालियर घराने के वरिष्ठ संगीतज्ञ पं. श्रीराम मराठे का गायन हुआ। उन्होंने राग भीम पलासी का चयन किया। उन्होंने एक ताल में बड़ा ख्याल “अब तो सुन ले” और छोटा ख्याल “हरवा गरवा डारूँगी” तीन ताल में प्रस्तुत किया।
अंतिम संगीत सभा की शुरूआत साधना केन्द्र तानसेन स्मारक बेहट के ध्रुपद गायन से हुई। केन्द्र के विद्यार्थियों ने राग आसावरी चौताल में बंदिश “नील बरन पायो रे” की प्रस्तुति दी।