भोपाल, मई 2015/ हाल में किये गये एक पुरातात्विक सर्वेक्षण में रायसेन जिले के गोरखपुर से भोपाल की ओर बाड़ी तक एक वृहद एवं भव्य दीवार युक्त एक नयी पर्वतीय जन-जातीय संस्कृति प्रकाश में आयी है। पुरातत्व एवं अभिलेखागार संचालनालय के अनुसार यह नया तथ्य हाल में हुए नये सर्वेक्षण में उजागर हुआ है। सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी है कि रायसेन जिले की उदयपुरा एवं बरेली तहसील की 500 से 700 फुट ऊँची पर्वत श्रंखलाओं पर जन-जातीय संस्कृति के लोग निवास करते थे। पर्वतों (पहाड़ों) के नीचे 9वीं से 12वीं शती के प्रतिहार एवं परमारकालीन अनेक मंदिर एवं मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

गोरखपुर से शुरू सर्वेक्षण से यह तथ्य स्पष्ट हुआ है कि जन-जातीय कबीलों ने अनेक भू-खण्डों में बाँटकर अधिक मजबूत दीवारों से अपने को सुरक्षित कर लिया था। गोरखपुर की ऊँची पहाड़ी से शुरू इस दीवार ने 5-6 किलोमीटर परिक्षेत्र की पर्वत श्रंखलाओं को करीब 15 भू-खण्ड में बाँटा है। यह दीवार कुछ स्थान को छोड़कर लगातार 15 किलोमीटर लम्बी बनायी गयी है। इसमें 8 किलोमीटर तक दीवार की अधिकतम ऊँचाई 16 फुट एवं चौड़ाई 15 फुट है। आठ किलोमीटर से नौ किलोमीटर तक चौड़ाई 16 से 24 फुट है। इस प्राचीर (दीवार) से सुरक्षित भू-खण्ड पर लगभग 20 आवास-गृह के साक्ष्य मिले हैं। देवरी ग्राम के नजदीक बूदनवाड़ा स्थान पर स्थित पर्वत पर यह 15 किलोमीटर लम्बी दीवार समाप्त होती है। गोरखपुर में दीवार के पास मिले पुरावशेषों एवं मोघ बाँध के समीप प्राप्त कलावशेषों के आधार पर यह वास्तु 1200 वर्ष प्राचीन प्रतीत होती है।

गोरखपुर ग्राम रायसेन जिले की तहसील उदयपुरा में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-12 पर स्थित है। ग्राम गोरखपुर राजधानी भोपाल से न केवल राष्ट्रीय राजमार्ग बल्कि विंध्यांचल पर्वत श्रेणियों से भी जुड़ा है। गोरखपुर एवं सम्पूर्ण रायसेन जिले पर प्राचीन-काल में मौर्य, शुंग, सातवाहन, कुषाण, गुप्त, वर्धन, प्रतिहार एवं परमार वंश का शासन रहा है। मध्य काल से इस क्षेत्र पर मुस्लिम शासकों तथा बाद में अंग्रेजों का आधिपत्य हो गया था।

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