देश का दिल कहा जाने वाला प्रदेश, मध्यप्रदेश स्थापना के 57 वें वर्ष में एक नई पहचान और प्रशासनिक अवधारणा के साथ प्रवेश कर रहा है। कभी बीमारू राज्य कहे जाने वाले मध्यप्रदेश को अब विकास की नई गति और समृद्धि का मजबूत आधार मिल गया है। ग्याहरवीं पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य से डेढ़ गुनी 10.02 प्रतिशत की वृद्धि दर कृषि विकास की 18 प्रतिशत वृद्धि दर, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक सुरक्षा के नवाचारों से ऐसा मध्यप्रदेश विकसित हो रहा है, जो जनता के द्वारा गढ़ा जा रहा है।

स्थापना के 50वें वर्ष में मध्यप्रदेश के विकास का नया जोश और उत्साह संचारित हुआ। स्वर्णिम मध्यप्रदेश के सपने के साथ प्रदेश में एक ऐसा नेतृृत्व आया जिसने ‘आओ बनाए अपना मध्यप्रदेश’ के नारे के साथ विश्वास और विकास का मार्ग प्रकाशित किया। मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने प्रदेश में सुशासन की ऐसी व्यवस्था निर्मित की है जिसमें सही अर्थों में जनता के लिये जनता के द्वारा कार्य करने वाली प्रशासनिक संरचना को स्थापित किया है। इस व्यवस्था में विभिन्न समाजों , समुदायों और समूहों की शासन की नीति निर्माण में सीधी भागीदारी है। जाति-समाज हो अथवा व्यवसायिक समूह, शिक्षित हो या शिल्पी, छात्र हो या फिर वकील, वृद्ध हो अथवा युवा, कारीगर हो अथवा कामगार, अमीर हो या गरीब सभी सरकार की रीति-नीति निर्धारण में प्रत्यक्ष हिस्सेदारी कर रहे हैं। विगत 6 वर्ष में आयोजित 26 पंचायतों ने मध्यप्रदेश के विकास का रोड मेप बनाने का सफल कारनामा किया है।

वर्ष 2006 के जुलाई माह में आयोजित प्रथम महिला पंचायत से लेकर अगस्त 2012 में आयोजित वकील पंचायत के विचार-विमर्श से प्रदेश में जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन के विभिन्न संस्कारों और जरूरतों के अवसर पर सरकार के सहयोग और सहायता के प्रावधान और योजनाएँ निर्मित हुई हैं। महिला सशक्तीकरण के लिये स्थानीय संस्थाओं में महिलाओं के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान, लाड़ली लक्ष्मी योजना, पुलिस बल में महिलाओं के लिये 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था, ग्वालियर, भोपाल, इन्दौर और जबलपुर महिला पुलिस सेल के गठन के कदमों के पीछे 30 जुलाई 2006 को आयोजित महिला पंचायत में महिलाओं से हुआ विचार-मंथन ही है।

इसी प्रकार खेती को लाभ का धंधा बनाने के राज्य सरकार के प्रयासों की शुरूआत भी 30 अगस्त 2006 को आयोजित किसान पंचायत से हुई। अभी तक आयोजित दो किसान पंचायत में कृषि विभाग का नाम बदलकर किसान-कल्याण और कृषि विकास विभाग करने से लेकर किसानों को न्यूनतम ब्याज पर ऋण, समर्थन मूल्य पर गेहूँ और अन्य फसलों के उपार्जन पर बोनस, बलराम तालाब, सहस्त्रधारा योजना, बागवानी फसलों को प्रोत्साहन के निर्णयों और लगभग 5,600 करोड़ रूपये के कार्यों का सूत्रपात 2006 और 2008 की किसान पंचायतों की देन है।

समभाव के साथ विकास का दर्शन भी इन्हीं पंचायतों से निकला है। अनुसूचित जनजाति के शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक विकास प्रयासों को नई गति और ऊर्जा 6 जनवरी 2007 को आयोजित आदिवासी पंचायत से ही मिली है। विभिन्न स्तर के आदिवासी छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति और शैक्षणिक सुविधाओं में वृद्धि, आदिवासी परिवारों को 3-3 दुधारू पशु देने की कामधेनु योजना, वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने की कोशिश, बालिकाओं को मु्फ्त में साइकिल वितरण की योजना का सूत्रपात इसी पंचायत में हुआ। प्रदेश की वन समितियों में एक तिहाई पद महिलाओं को देने और वन समिति के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष में से कोई एक पद महिला के लिये आरक्षित रखने का क्रांतिकारी निर्णय भी फरवरी 2007 की वन पंचायत की सौगात है।

इसी पंचायत में मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने उनकी प्रशासनिक मान्यताओं को भी परिभाषित करते हुए कहा था कि मैं राजा नहीं हूं असली राजा तो वे हैं जो पंचायत में उपस्थित हुए हैं। श्री चौहान ने यह बात उस समय कही जब पंचायत में उपस्थित एक प्रतिनिधि ने उन्हें राजा साहब कहकर संबोधित कर दिया था।

पंचायत के इन राजाओं ने अपने अधिकारों का बखूबी इस्तेमाल किया है। यह विगत वर्षों का अनुभव सिद्ध करता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा पुरस्कृत और विश्व प्रसिद्ध लोक सेवा प्रदाय गारंटी कानून को प्रदेश में लागू करने के पीछे भी पंचायत ही है। मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित पहली अनुसूचित जाति पंचायत में जाति प्रमाण-पत्र बनाने में आ रही दिक्कतों पर चर्चा हुई थी। पंचायत में समय पर लोक सेवाएँ मिले, इसकी आवश्यकता महसूस की गई। इसी अनुभव की पूर्ति लोक सेवा प्रदाय गारंटी कानून में हुई है। अब जाति प्रमाण-पत्र निश्चित समय में बनने की गांरटी हो गई है। ऐसा ही कुछ अभी इन्दौर में संपन्न हुए तीन दिवसीय ग्लोबल इन्वेटर्स समिट के लिये कहा जा सकता है जिसका पहला दिन लघु एवं मध्यम उद्योगो पर केंद्रित रहा। मुख्यमंत्री निवास पर 29 जून 2007 को आयोजित लघु पंचायत में निवेश को आकर्षित करने के लिये बनी अवधारणा को देखा जा सकता है।

प्रदेश में अभी तक आयोजित 26 पंचायत ने समाज और समुदाय की अपेक्षाओं, विभिन्न समूहों और संगठनों की आवश्यकताओं को पूरा किया है। झाबुआ जिले के कोटवार श्री वेस्ता की साइकिल की इच्छा, सागर के कोटवार मोहन लाल आठिया की भूमि सुधार की मंशा और विदिशा जिले के कमरअली की कोटवारों को बरसाती देने के सुझाव भी 22 जून 2007 की कोटवार पंचायत में कोटवार मानदेय में 500 रूपये की वृद्धि के राज्य सरकार के निर्णय में शामिल हो गये थे।

ऐसा ही कुछ 29 अगस्त 2007 को आयोजित खेल पंचायत में भी हुआ जिसने प्रदेश में खेल के वातावरण को पूरी तरह से बदल दिया। कभी राष्ट्रीय स्तर पर एक-एक पदक के लिये संघर्ष करते प्रदेश के खिलाड़ियों की झोली में अब सैकड़ों पदक हैं। उनकी अंर्तराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी दावेदारी मजबूत हुई हैं। सरकारी खजाने से सुविधाओं और प्रोत्साहन की झड़ी भी खेल पंचायत की भावनाओं का कार्यरूप ही है।

प्रदेश में कारीगर हो अथवा कामगार सभी को उनकी आवश्यकता बताने और उसके लिये जरूरी निर्णय करने का हक इन पंचायतों में मिला है। बाँस के कारीगर को रियायती दर पर बाँस की उपलब्धता, कुम्हार के लिये मिट्टी की उपलब्धता, कामगारों और मजदूरों को विवाह, चिकित्सा, शिक्षा सहायता और प्रसूति व्यय की प्रतिपूर्ति आदि प्रावधानों के साथ बनी महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री मजदूर सुरक्षा योजना का सृजन भी ऐसी ही पंचायत में हुआ है। निर्माण श्रमिको के लिये पेंशन, इलाज, दुर्घटना और मृत्यु के प्रकरणों में सहायता के निर्णय भी 19 अगस्त 2008 की निर्माण श्रमिक पंचायत में लिये गये थे। इसी प्रकार निःशक्तजन कल्याण का स्पर्श अभियान, शासकीय सेवाओं में 6 प्रतिशत आरक्षण के नियम का प्रभावी क्रियान्वयन और उपयुक्त एवं पात्र उम्मीदवार उपलब्ध नहीं होने पर पद को रिक्त रखने का निर्णय, 4 प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण एवं अनुदान देने के फैसले भी 29 अप्रैल 2008 की निःशक्तजन पंचायत में लिये गये थे। गरीबी उन्मूलन प्रयासों में स्व-सहायता समूह की भागीदारी, मँहगाई बढ़ने के साथ मजदूरी में वृद्धि और हाट बाजारों के निर्माण का निर्णय भी 9 सितंबर 2008 की स्व-सहायता समूह पंचायत की देन है। मंडी बोर्ड में तुलावटियों को शामिल करने का ऐतिहासिक निर्णय भी मंडी हम्माल-तुलावटी पंचायत का ही निर्णय है।

शासन को जनता द्वारा दिशा-दर्शन की यह अभिनव पहल समय के साथ-साथ और प्रभावी और मजबूत हुई है। स्वैच्छिक संस्थाओं के एक्रीडेशन की व्यवस्था और पंजीकरण के लिये वेब आधारित एकीकृत प्रणाली आदि कार्यों की मांग भी स्वैच्छिक संस्थाओं की पंचायत में 12 अक्टूबर 2009 को पहली बार उठी थी। घरेलु कामकाजी महिलाओं के पति और बच्चों के इलाज,बच्चों की पढ़ाई, गर्भावस्था के दौरान रोजगार की समस्या, कन्या विवाह में सहायता, व्यवसायिक प्रशिक्षण और बीमा सुरक्षा की बात भी कामकाजी महिला पंचायत के सुझाव हैं।

ऐसे ही 31 जनवरी 2009 को आयोजित पंचायत ने साइकिल रिक्शा और हाथ ठेला चालकों को रिक्शा और हाथ ठेले का मालिक बना दिया। प्रदेश में युवा आयोग और विद्यार्थियों के कल्याण के लिये 50 करोड़ की राशि से शिक्षा कोष गठन के निर्णय 12 जनवरी 2012 केा विद्यार्थियों की पंचायत की देन है। फेरी वालों की 23 जनवरी को आयोजित पंचायत ने फेरी वालों के लिये कम ब्याज पर ऋण, के्रडिट कार्ड और परिचय-पत्र जारी करवाने की व्यवस्था की है। प्रदेश के 80 हजार मछुआरों को मात्र एक प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाने, मछुआ कल्याण बोर्ड के गठन और मछलीपालन विभाग का नाम बदलने के नीतिगत निर्णय चार फरवरी 2012 की पंचायत का प्रतिफल है। अप्रैल माह में आयोजित वृद्धजन पंचायत में बनी तीर्थ-दर्शन योजना ने प्रदेश में धार्मिक-सामाजिक समभाव का नया उजाला रोशन किया है। अगस्त माह में संपन्न हुई वकील पंचायत में भी नीतिगत निर्णयों की परंपरा कायम रही है। विधि आयोग को पुनर्जीवित करने, नए अधिवक्ताओं को कार्यालय स्थापना के लिये एकमुश्त 12 हजार रूपये की सहायता और अधिवक्ता की मृत्यु होने पर राज्य सरकार द्वारा पृथक से एक लाख रूपये की आर्थिक सहायता के फैसले लिये गये हैं।

मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित पंचायतों की प्रक्रिया और परिणामों की संवीक्षा में जो एक बात स्पष्ट दिखाई दे रही है, उसे जनता के लिये, जनता के द्वारा ही फैसले और फरमान जारी करना कहा जा सकता है। मध्यप्रदेश राज्य की स्थापना के 57 वें वर्ष में राज्य की जनता द्वारा जनता के लिये समर्पित प्रशासनिक व्यवस्था को गढ़ने का कार्य सफलता से किया जा रहा है और आगे भी किया जायेगा, ऐसा साफ दिखायी दे रहा है।

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