भोपाल। जनजातीय क्षेत्रों के समग्र विकास के लिये क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभावी तरीके से उपयोग कर विकास के लक्ष्य को सही मायनों में हासिल किया जा सकता है। विकास के कार्यों में जन-भागीदारी बढ़ाने में भी स्थानीय भाषाएँ काफी हद तक कारगर साबित हो सकती हैं। यह विचार प्रशासन अकादमी में ‘जनजातीय भाषाएँ और विकास’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों एवं आदिवासी भाषाओं के विशेषज्ञों ने व्यक्त किये।

अपर मुख्य सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास श्रीमती अरुणा शर्मा ने संगोष्ठी में कहा कि आज के समय विकास की योजनाएँ और उनके क्रियान्वयन की प्राथमिकता ग्राम-पंचायत स्तर पर ग्राम-सभा में तय हो रही है। ऐसे में जरूरी है कि स्थानीय भाषाओं की जानकारी प्रशासनिक अधिकारियों को भी हो। उन्होंने बताया कि विकास की धारा को आदिवासी अँचलों तक पहुँचाने के लिये सड़क, बैंकिंग एवं इंटरनेट कनेक्टिविटी के क्षेत्र में तेजी से कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषाओं का उपयोग कर शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य योजनाओं की जानकारी बेहतर तरीके से दी जा सकती है।

भारतीय भाषा संस्थान के पूर्व उप निदेशक प्रो. जे.पी. शर्मा ने कहा कि जनजातीय संस्कृति के संरक्षण के लिये प्रदेश में पिछले कुछ वर्ष से ठोस कार्य किये गये हैं। उन्होंने कहा कि नौजवान पीढ़ी को प्राचीन आदिवासी संस्कृति से जोड़े रखने के लिये भाषा के क्षेत्र में शोध किये जाने की जरूरत है।

वरिष्ठ पत्रकार गिरिजाशंकर ने संगोष्ठी में कहा कि विकास से आदिवासी संस्कृति को नुकसान पहुँचने की गलत धारणा को बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सरकारी एजेंसियों की पहुँच स्थानीय भाषाओं की जानकारी न होने से उतने अच्छे तरीके से नहीं पहुँच पा रही है, जितनी स्वयंसेवी संगठनों ने बनाई है। उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में मानव संसाधन प्रतिभाओं के बेहतर उपयोग पर भी जोर दिया। भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री दिलीप सामंतराय ने कहा कि शासकीय कार्यों में स्थानीय भाषाओं को भी प्राथमिकता मिलना चाहिये। ऐसा करने से आदिवासी अँचलों का शासकीय एजेंसी के प्रति विश्वास बढ़ेगा।

भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी सुनील टंडन ने कहा कि विकास के लिये जाति को आधार न मानते हुए समग्र विकास की बात की जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि दुर्गम अँचलों में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाकर बेहतर परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। उन्होंने स्वास्थ्य के क्षेत्र में आन्ध्र प्रदेश में प्राप्त किये गये अच्छे परिणामों की जानकारी दी।

खेल सचिव अशोक शाह ने इन क्षेत्रों के विकास के लिये मनोवैज्ञानिक सोच में बदलाव लाये जाने की आवश्यकता बताई। संगोष्ठी में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी सेवाराम ने भी विचार व्यक्त किये।

टीआरआई के संचालक के. सुरेश ने संगोष्ठी की प्रस्तावना रखी। उन्होंने बताया कि टीआरआई ने गोंडी, भीली और कोरकू के 1500 अतिरिक्त शब्द का संकलन किया है। जनजातीय मौखिक साहित्य का संकलन एवं गोंडी, भीली, कोरकू जाति के पारम्परिक गीतों का ध्वनि-अंकन किया गया है। उन्होंने जनजातीय क्षेत्रों में सामुदायिक रेडियो की व्यवस्था की भी जानकारी दी।

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