भोपाल, नवंबर 2012/ राज्य शासन ने गौण खनिज नियम-1996 में उल्लेखित अनुसूची-1 में दर्शित खनिजों को भी बी-2 श्रेणी में रखने के लिये राज्य पर्यावरण प्रभाव निर्धारण प्राधिकरण (सिया) से अनुरोध किया है। शासन ने इस संबंध में उल्लेख किया है कि इससे नीलाम खदान के साथ-साथ गौण खनिज की लीजें भी बी-2 श्रेणी में आने से शीघ्र अनुमति प्राप्त कर स्वीकृत हो सकेंगी। प्रदेश में पर्यावरण अनुमति के अभाव में निर्माण कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सिया से अनुरोध किया गया है कि प्रक्रिया को और अधिक सरलीकृत किया जाना आवश्यक है, जिससे प्रदेश में आसानी से गौण खनिजों की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।

शासन ने स्पष्ट किया है कि सिया की 17 सितम्बर, 2012 को हुई बैठक में पाँच हेक्टेयर से कम की गौण खनिज की खदानों के संबंध में प्रक्रिया का निर्धारण किया गया है। इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश गौण खनिज नियम-1996 की अनुसूची-2 में उल्लेखित कुछ खदानों को भी बी-2 श्रेणी में रखा गया है। इस संबंध में अनुरोध किया गया है कि अनुसूची-2 में उल्लेखित खदानों की खनन प्रक्रिया अनुसूची-1 में उल्लेखित खनिजों यथा क्रेशर द्वारा गिट्टी निर्माण, फर्शी पत्थर आदि के खनन की प्रक्रिया समान ही है। इसे देखते हुए अनुसूची-1 में दर्शित खनिजों को भी बी-2 श्रेणी के अंतर्गत रखा जाये।

सिया की बैठक की कार्यवाही विवरण के अनुसार ऐसी माइनिंग लीज, जिनकी आपस की दूरी 250 मीटर के अंतर्गत है और संयुक्त रूप से उनका क्षेत्रफल 5 हेक्टेयर से अधिक हो जाता है, उन्हें भी बी-1 श्रेणी में रखा जाना मान्य किया गया है। शासन के अनुसार 250 मीटर की परिधि में ऐसी भी खदानें आयेंगी, जिनमें वर्तमान में न तो उत्पादन में वृद्धि हो रही है और न ही नवीनीकरण की प्रक्रिया के अधीन है या उनकी अवधि शेष है, ऐसी खदानों में पर्यावरण की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होगी।

इसी प्रकार 250 मीटर की परिधि की अन्य खदानें, जो कि वर्तमान में बी-2 श्रेणी में वर्गीकृत हो रही हैं, भी बी-1 श्रेणी में वर्गीकृत हो जायेंगी। यह व्यवहारिक नहीं होगा कि 250 मीटर के अंदर स्थित खदानों को भी बी-1 श्रेणी में मान्य किया जाये। शासन ने सिया से अनुरोध किया है कि यदि 250 मीटर की परिधि में समस्त खदानें नवीन रूप से स्वीकृत की जायें तभी इस प्रतिबंध को लागू किया जाये।

मध्यप्रदेश गौण खनिज नियम-1996 में रेल, सड़क, पुलिया, आबादी, नदी, जल-निकासी तथा जलागम क्षेत्र से खनन के लिये 100 मीटर की दूरी प्रतिबंधित है, जबकि खनि-रियायत नियम-1960, जो भारत सरकार द्वारा निर्मित है, उसमें यह दूरी 50 मीटर रखी गई है। शासन ने सिया से अनुरोध किया है कि उसमें यह दूरी 100 मीटर रखी जाये। इस कार्य के लिये परिशिष्ट-1 में सुधार आवश्यक होगा।

जिला अथवा संभाग-स्तर पर प्राप्त आवेदन का हो निराकरण

शासन ने सिया से अनुरोध किया है कि उचित होगा कि बी-2 श्रेणी की पर्यावरण अनुमति प्रदाय किये जाने के लिये एक न्यूनतम समय-सीमा भी नियत की जाये। इससे आवेदन-पत्रों का त्वरित निराकरण किया जा सकेगा। वर्तमान प्रक्रिया के अनुसार पर्यावरण अनुमति लिये जाने के लिये पूरे प्रदेश से भोपाल स्थित सिया के कार्यालय में आवेदन-पत्र प्रस्तुत किया जाना है। यह प्रदेश के विस्तृत भू-भाग एवं खनन क्षेत्र को देखते हुए व्यवहारिक प्रतीत नहीं होता है। इस संबंध में भी विचार किया जाये कि आवेदन-पत्र प्राप्त किये जाने के लिये इस प्रकार की व्यवस्था की जाये, जिससे जिला-स्तर अथवा संभाग-स्तर पर आवेदन प्राप्त हो सकें तथा उनका निराकरण भी किया जा सके।

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