रंजन
जब इंडिया और साउथ अफ्रीका की क्रिकेट टीम का इंदौर में आगमन हो चूका था और वो शहर जिसने अभी कुछ दिन पहले ही देश में स्वच्छता के रिकॉर्ड का छक्का मारा था , वह एक अंतर्राष्ट्रीय मैच की मेजबानी करने जा रहा था, उस समय इंदौर नगर निगम के कुछ अधिकारी कुछ दूसरे खेल की पटकथा तैयार कर रहे थे।
निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों की टीम एक अधिकारी लता अग्रवाल के नेतृत्व में मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के हेडक्वार्टर्स पर धमकती है। और जैसा कि बाद में मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (MPCA) के प्रेसीडेंट अभिलाष खांडेकर ने पत्र में उल्लेख किया, वह टीम सीधे एकाउंट्स सेक्शन में जाती है और बाद में उनके ऑफिस में जाकर टैक्स चुकाने के लिए कहती है। खांडेकर का यह कथन गंभीर है कि टीम बार बार ये कहती रही कि उन्हें नगर निगम की आयुक्त प्रतिभा पाल ने भेजा है। वे लोग टैक्स नहीं चुकाने पर परिणाम भुगतने कि धमकी देते रहे।
खांडेकर का यह कथन तो और भी गंभीर है कि यह सब इसलिए किया गया क्योंकि नगर निगम में कुछ युवा आईएएस ऑफिसर्स को टी-20 का पास नहीं मिला था। जबकि MPCA ने पहले ही सुश्री पाल को 25 पास पूर्व परम्परा के अनुसार मुहैया करवा दिए थे। खांडेकर ने उक्त कार्रवाई के विषय में इंदौर के मेयर पुष्यमित्र भार्गव, जो कानून के अच्छे ज्ञाता हैं और संभागीय आयुक्त पवन कुमार शर्मा को भी बताया पर इसका कोई परिणाम नहीं निकला।
शासन और प्रशासन के तौर तरीकों को जानने वाला ही नहीं, शायद कोई बच्चा भी बता देगा कि जिस तरह से नगर निगम ने MPCA के मुख्यालय पर ‘छापा’ डाला उसकी टाइमिंग का मतलब क्या है? ऐसा एक्शन सिर्फ पूर्वाग्रह से ग्रसित ही हो सकता है। ऐसे छापे हम अकसर होटल्स,रेस्टोरेंट्स और अन्य कमर्शियल संस्थानों पर पड़ते हुए देखते हैं और ये छापे क्यों होते हैं ये भी सबको पता है।
इस घटना को लेकर कुछ सवाल उठते हैं-
- क्या MPCA का मुख्यालय रातोरात किसी दूसरे स्टेट में या किसी यूरोपियन कंट्री में शिफ्ट होने जा रहा था कि IMC की टीम को भारत और साउथ अफ्रीका के मैच के ठीक पहले MPCA में टैक्स वसूली के लिए जाना पड़ा ?
- क्या IMC और उसके अधिकारी उक्त टैक्स वसूली के लिए मैच ख़त्म होने का इंतज़ार नहीं कर सकते थे जो की सिर्फ 24 घंटे बाद ही हो जाता?
- अगर टैक्स वसूली में 24 घंटे की देरी हो भी जाती तो क्या IMC में इस महीने की तनख्वाह नहीं बंट पाती?
- क्या IMC और उसके अधिकारी इस बात से अनभिज्ञ थे कि इस तरह के मैच ना सिर्फ इंदौर बल्कि मध्य प्रदेश सरकार के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न होते हैं जिसको सकुशल संपन्न कराना ही उनका प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए था, ना कि टैक्स वसूली?
- क्या IMC और उसके अधिकारी इस बात से अनभिज्ञ थे कि भारत और साउथ अफ्रीका का मैच एक अंतर्राष्ट्रीय मैच था, जिसपर सारे क्रिकेटिंग कंट्री की, वहां के मीडिया की और देश विदेश के करोड़ों खेल प्रेमियों की निगाह थी और इस तरह का छापा ना केवल MPCA , मध्य प्रदेश बल्कि पूरे देश की इमेज के प्रति विश्व में एक नेगेटिव मैसेज भेजता?
- क्या इंदौर में MPCA के अतिरिक्त और कोई डिफाल्टर नहीं बचा था कि IMC का सारा ध्यान MPCA पर ही केंद्रित हो गया और वो भी ठीक एक अंतराष्ट्रीय मैच के पहले, जिसे देखने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जो कि स्वयं MPCA के अध्यक्ष रह चुके हैं, कुछ मंत्री तथा अन्य विशिष्टजन आने वाले थे?
- क्या टैक्स वसूली के पहले MPCA को कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गयी या MPCA और इसके अध्यक्ष या अन्य पदाधिकारियों से बात की गयी कि अगर टैक्स नहीं चुकाया गया तो मैच के ठीक पहले IMC की टीम MPCA ऑफिस में जाकर टैक्स की वसूली करेगी?
- क्या प्रदेश के अधिकारी अपने पैसे से टिकट खरीदकर मैच नहीं देख सकते और ऐसा करके वे एक अच्छा सन्देश पूरा प्रदेश के लोगों को नहीं दे सकते? क्या टिकट खरीदने से उनके अहम् को चोट पहुँचती है या फिर सातवें वेतनमान से भी उन्हें इतनी सैलरी नहीं मिलती कि वे एक टिकट खरीद पाएं?
सवाल ये भी है कि जिन यंग आईएएस ऑफिसर्स की बात हो रही है अगर वाकई उनको पास नहीं मिलने पर इतना हंगामा हुआ तो वे आगे क्या गुल खिलाएंगे। क्या ऐसे अधिकारी फील्ड में पोस्टिंग के लायक हैं? जबकि इसी मध्य प्रदेश में जाने कितने आईएएस और आईपीएस सर्विंग और रिटायर्ड आफिसर्स हैं जो यंग ऑफिसर्स के लिए रोल मॉडल होने चाहिए।
अभी कुछ दिन पहले मालवा क्षेत्र के ही झाबुआ में एसपी को मुख्यमंत्री के आदेश पर इसलिए सस्पेंड किया गया क्योंकि उनका व्यव्हार सामंतों जैसा था। वे अमर्यादित और गाली गलौज की भाषा पर उतर आये थे, जब कुछ आदिवासी छात्रों ने उनसे मदद मांगी। उसके अगले ही दिन कलेक्टर महोदय को भी रवाना किया गया क्योंकि उनके खिलाफ जनता में आक्रोश था।
अगर यह एक्शन IMC कमिश्नर की बिना जानकारी के हुआ है तो चिंतनीय विषय है और अगर उनकी जानकारी और आदेश पर हुआ है तो और भी चिंतनीय। उनको यह जानना चाहिए कि किसी भी एक्शन का जिले, शहर और प्रदेश कि इमेज पर क्या प्रभाव पड़ेगा। यही बात मेयर महोदय को भी समझनी चाहिए।
इस पूरे घटना पर जन प्रतिनिधि चुप हैं शायद इसलिए कि उन्हें यह पॉलिटिकली सूट करता है। जिले के प्रभारी मंत्री जो कि फिल्म के कंटेंट्स को लेकर बहुत ही सक्रिय रहते हैं और चेतावनी जारी करते रहते हैं उनको भी अभी तक ये समझ में नहीं आया कि उनके जिले में क्या हुआ है। हो सकता है कि वे अभी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट को पढ़ने में व्यस्त हों।
प्रतिभा जी से मैं तब मिला था जब वे श्योपुर की कलेक्टर थीं और एक एंटी-एन्क्रोचमेंट अभियान में कुछ सिख समुदाय के सदस्यों के घर सरदी के मौसम में तोड़ दिए गए थे। जिला प्रशासन का एक्शन कानूनी रूप से सही था पर उस एक्शन की टाइमिंग गलत थी।
IMC बनाम MPCA एपिसोड में MPCA की कार्यप्रणाली और ट्रांसपेरेंसी पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं कि जब स्टेडियम में 27000 सीट्स हैं तो सिर्फ 14000 टिकट्स ही ऑनलाइन क्यों बेचे गए और कुछ मिनट्स में ही टिकट्स कैसे ख़त्म हो गए। टिकट की कालाबाजारी क्यों हो रही थी यह भी खबरें हैं। अगर वाकई गड़बड़ी है तो इसको ठीक करने की जिम्मेदारी क्रिकेट के प्रशासकों की है। वे इसको अनदेखा नहीं कर सकते।
पास की व्यवस्था भी गलत है। क्यों हज़ारों लोगों को टिकट खरीदने को कहा जाय और जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं उन्हें VIP कल्चर के नाम पर पास बांटे जाएँ। अभी कुछ दिन पहले ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पत्रकारों को उनके कवरेज के दौरान टोल प्लाजा पर छूट के विषय पर कहा था कि ‘फोकट क्लास’ को वे इस सुविधा देने के पक्ष में नहीं हैं। यहां पर ‘फोकट क्लास’ कौन है यह भी विचारणीय प्रश्न है।
अगर वाकई पास मिलना चाहिए तो स्कूल, कॉलेज और क्रिकेट क्लब्स के उन बच्चों को मिलना चाहिए जो क्रिकेट के मैदान पर अपने रोल मॉडल्स को देखकर क्रिकेट सीखना चाहते हैं या अपने परफॉरमेंस को बेहतर करना चाहते है। पास इंदौर के उन सफाईकर्मियों को मिलना चाहिए था जिन्होंने अपनी मेहनत से इंदौर को लगातार छठवीं बार सबसे स्वच्छ शहर का खिताब दिलाया।
कुछ भी हो प्रथम दृष्टया IMC का एक्शन खासकर उसका तरीका और टाइमिंग न्यायोचित नहीं दिख रहा है। यह इंदौर प्रशासन की स्वच्छता के ऊपर एक धब्बा है।
(लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट के संपादित अंश)
(मध्यमत)
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