भोपाल, सितंबर 2013/ नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने कहा है कि प्रदेश की महत्वाकांक्षी इंदिरा सागर परियोजना जलाशय को पूरा भरने का विरोध कतिपय तत्वों द्वारा ग्रामीणों को भ्रमित करने का परिणाम है और यह पूरी तरह औचित्यहीन है। प्राधिकरण ने इस संबंध में स्पष्ट किया है कि जलाशय के पूर्ण जल-स्तर से प्रभावित होने वाले परिवारों को उनकी अचल सम्पत्ति के मुआवजे और अन्य पुनर्वास लाभ वर्ष 2009 के पूर्व प्रदान किये जा चुके हैं। इसी आधार पर राज्य शासन, शिकायत निवारण प्राधिकरण और केन्द्रीय जल आयोग द्वारा विचार-विमर्श के बाद इंदिरा सागर जलाशय को पूर्ण जलाशय स्तर (262.13 मीटर) तक भरने का निर्णय लिया गया।

वस्तु-स्थिति यह है कि इस संबंध में नर्मदा बचाओ आन्दोलन की याचिका पर उच्च न्यायालय के आदेशानुसार केन्द्रीय जल आयोग और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (भारत सरकार) द्वारा डूब क्षेत्र का पुनः सर्वेक्षण कराया जाकर उसमें आने वाले अतिरिक्त पात्र प्रभावितों को भी मुआवजा और पुनर्वास लाभ दिये जा चुके हैं। गत् वर्ष जलाशय पूर्ण स्तर तक भरने से कतिपय अतिरिक्त भूमि डूब प्रभावित हुई उसका भी भू-अर्जन और प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया जा चुका है। पूर्ण जलाशय स्तर पर जहाँ भी रास्ते और पुल-पुलिया के कारण आवागमन की कठिनाई उत्पन्न हुई वहाँ ऐसी सुविधाओं के निर्माण के लिये एन.एच.डी.सी. के माध्यम से 70 करोड़ रुपये के कार्यों की स्वीकृति प्रदान की गई है। इस स्थिति में इंदिरा सागर जलाशय को पूर्ण जलाशय स्तर तक भरने पर कोई वैधानिक रोक नहीं है।

उल्लेखनीय है कि इंदिरा सागर परियोजना डूब प्रभावित परिवारों को अचल सम्पत्ति के मुआवजों के रूप में 88508.44 लाख रुपये, पुनर्वास और परिवहन अनुदान के रूप में 27375.98 लाख और विशेष पुनर्वास अनुदान मद में 23349.47 लाख रुपये का वितरण हुआ है। परियोजना के पूर्ण जलाशय स्तर पर 1000 मेगावाट बिजली और 1 लाख 23 हजार हेक्टेयर रकबे की सिंचाई का लाभ प्रदेश की महती आवश्यकता है। परियोजना से इस आवश्यकता की पूर्ति के लिये सरकार प्रतिबद्ध है। जलाशय में खड़े होकर विरोध करने वालों से प्राधिकरण ने भ्रमित न होने की अपील की है।

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