भोपाल, नवंबर, 2015/ मध्यप्रदेश के 60वें स्थापना दिवस पर सभी प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
इस साल स्थापना दिवस की खुशियों पर सूखे से उपजी विपत्ति की छाया अवश्य है, लेकिन संकट का मिल-जुलकर सामना करने तथा उससे उबरने की प्रदेशवासियों की क्षमता पर मुझे पूरा भरोसा है। पहले की तरह इस संकट से भी हम मिल-जुलकर उबरेंगें।
अक्सर सोचता हूँ कि हमारा मध्यप्रदेश कितना अदभुत और अनूठा है। उसकी विशेषताओं के बारे में सोचकर मैं भाव-विभोर हो उठता हूँ। भारत का ह्रदय-स्थल कहा जाने वाला मध्यप्रदेश सच्चे अर्थों में लघु भारत का स्वरूप है। यह एक ऐसा खूबसूरत गुलदस्ता है, जिसमें अलग-अलग रंग और खुशबू के फूल सजे हैं। साहित्य, कला, संस्कृति, प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि, शांतिप्रियता, उद्यमशीलता, अतिथि सत्कार, सामाजिक सौहार्द सभी में हमारा प्रदेश बेजोड़ है।
प्रकृति ने अपनी सम्पदा हमारी धरती पर खूब उदारता से लुटाई है, इसीलिये इसे रत्नगर्भा कहा जाता है। जहाँ माँ नर्मदा, क्षिप्रा, मंदाकिनी, बेतवा, ताप्ती,सोन और चम्बल जैसी पवित्र नदियाँ इस धरा पर बहती हैं, वहीं वनस्पतियों से भरपूर सतपुड़ा और विंध्याचल जैसी अलौकिक पर्वत श्रृंखलाएँ भी हमारे पास हैं।
मध्यप्रदेश के पास जहाँ खजुराहो, साँची और भीमबेठिका जैसे विश्व विरासत स्थल और राष्ट्रीय उद्यान हैं, वहीं एक से एक बढ़कर सुरम्य पर्यटन-स्थल भी हैं। भगवान राम के वनवास काल की लीलाओं का साक्षी चित्रकूट और भगवान श्रीकृष्ण की प्रारंभिक शिक्षा स्थली उज्जैन में सांदीपनि आश्रम के रूप में स्थित है। मध्यप्रदेश में उज्जैन में महाकालेश्वर में और ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग प्रतिष्ठित हैं। प्रदेश की शीतोष्ण जलवायु सभी को प्रीतिकर लगती है।
प्रदेश के मालवा, निमाड़, विंध्य, बघेलखण्ड, महाकौशल और मध्य भारत अंचल की अपनी-अपनी सांस्कृतिक धाराएँ, कला-वैभव और ऐतिहासिक विरासत हैं,जिन पर पूरे प्रदेश को गर्व है। यह सब धाराएँ अलग-अलग होते हुए भी सम्पूर्ण मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर हैं।
मेरे मन में अक्सर विचार आता है कि इतना सब होते हुए भी मध्यप्रदेश लम्बे समय तक पिछड़ा क्यों रहा? मुझे यही समझ में आया कि प्रदेश की प्राकृतिक और खनिज सम्पदा तथा अन्य विशेषताओं को प्रगति और विकास में बदलने के लिये जिस बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता थी, उसकी ओर कम ध्यान दिया गया। मुझे प्रदेश के प्रथम जन सेवक के रूप में सेवा का अवसर मिलने के बाद मैंने सबसे पहले अधोसंरचना के विकास पर ध्यान दिया। इसके फलस्वरूप प्रदेश में औद्योगीकरण तथा अन्य आर्थिक गतिविधियों में तेजी आयी। हमने देश-दुनिया के निवेशकों का ध्यान मध्यप्रदेश की खूबियों और संभावनाओं की तरफ आकर्षित किया। कृषि क्षेत्र को भरपूर बढ़ावा दिया गया। सिंचाई के साधनों में अभूतपूर्व वृद्धि की गयी। इन सभी प्रयासों के चलते मध्यप्रदेश ‘बीमारू’ राज्यों की श्रेणी से बाहर आ सका है।
प्रदेश के विकास और प्रगति के मामले में मैं परम असंतुष्ट व्यक्ति हूँ। जब तक प्रदेश सबसे अग्रणी विकसित राज्यों की पाँत में नहीं आ जाता, तब तक मैं चैन से नहीं बैठने वाला। मेरा मानना है कि सामाजिक उत्थान और विकास के बिना भौतिक विकास बहुत सार्थक नहीं होता। हमने बीते 10 साल में सामाजिक क्षेत्र पर समान रूप से ध्यान दिया। माता, बहनों और बेटियों को ज्यादा से ज्यादा सशक्त और युवाओं को प्रगति के लिये सक्षम बनाने पर पूरा ध्यान दिया गया। विकास के कार्यों में हमने जाति, धर्म, सम्प्रदाय या किसी अन्य आधार पर कभी निर्णय नहीं लिये। प्रयास यह रहा कि विकास का पूरा लाभ सभी प्रदेशवासियों को समान रूप से मिले।
मैं यह तो नहीं कह सकता कि सब-कुछ आदर्श हो गया है, लेकिन इतना जरूर कह सकता हूँ कि मध्यप्रदेश को आदर्श प्रदेश बनाने की ओर हमने लम्बा सफर तय कर लिया है। यह कार्य सभी वर्गों के सक्रिय सहयोग और भागीदारी से ही संभव हुआ है। हमें मध्यप्रदेश को और आगे ले जाना है। हर व्यक्ति अपने कार्य को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करे, तभी यह संभव हो सकता है।
मैं सभी प्रदेशवासियों का आव्हान करता हूँ कि वे मध्यप्रदेश को प्रगति के पथ पर और आगे ले जाने में सक्रिय रूप से सहयोगी बने रहें। प्रदेश के विकास से देश के विकास को भी गति मिलेगी।
(ब्लॉगर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं)