भोपाल, जुलाई 2014/ राज्य शासन द्वारा प्रदेश के अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों की उच्च शिक्षा निरंतर बनाये रखने के लिये उन्हें प्रदेश में और प्रदेश के बाहर मान्यता प्राप्त अशासकीय महाविद्यालयों में अध्ययन के लिये प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति द्वारा निर्धारित न्यूनतम अनिवार्य शुल्क की प्रतिपूर्ति की जायेगी। पूर्व में इन विद्यार्थियों को शासकीय संस्थाओं द्वारा निर्धारित शुल्क का भुगतान शासन द्वारा किया जाता था। इसके स्थान पर अब फीस नियामक आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम शुल्क, जो पूर्व में देय शुल्क से अधिक है, प्रदान किया जायेगा। जिन पाठ्यक्रमों के लिये यह बढ़ी हुई राशि दी जायेगी उनमें एम.बी.बी.एस., बी.डी.एस., बी.ई., पॉलीटेक्निक्स, नर्सिंग कोर्स, बी.फार्मा., बी.एड. एवं उससे उच्च पाठ्यक्रमों के लिये बढ़े हुए शुल्क का भुगतान राज्य शासन द्वारा किया जायेगा।

अब अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को शासकीय संस्था के निर्धारित शुल्क के स्थान पर शुल्क नियामक आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम फीस की राशि भुगतान की जायेगी। राज्य शासन के इस निर्णय से एम.बी.बी.एस. पाठ्यक्रम के लिये पूर्व में देय शुल्क 38 हजार 800 के स्थान पर फीस नियामक आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम शिक्षण शुल्क 3 लाख 75 हजार, बी.डी.एस. में पूर्व में देय 36 हजार 600 रुपये के स्थान पर एक लाख 43 हजार 500, बी.ई. में पूर्व में देय 29 हजार 450 के स्थान पर 37 हजार, बी.फार्मा. में पूर्व में देय 28 हजार 100 के स्थान पर 37 हजार, बी.एड. में पूर्व में देय 6000 के स्थान पर 25 हजार, डिप्लोमा इंजीनियरिंग में देय 11 हजार रुपये के स्थान पर 22 हजार शिक्षण शुल्क का भुगतान अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों को प्राप्त होगा।

राज्य शासन द्वारा चयनित पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत विद्यार्थियों को पोस्ट मेट्रिक छात्रवृत्ति का सीधे लाभ देने के लिये अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग द्वारा पारदर्शिता रखते हुए ऑनलाइन आवेदन-पत्र लेने, ऑनलाइन स्वीकृति एवं ऑनलाइन बैंक खाते में भुगतान की व्यवस्था लागू की गई है। चयनित पाठ्यक्रमों में पूर्व में देय शासकीय शिक्षण संस्था की फीस के स्थान पर फीस विनियामक आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम फीस दिये जाने से अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों को चयनित पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने के लिये पर्याप्त सुविधा शासन द्वारा उपलब्ध करवायी जा रही है।

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