भोपाल, अगस्त 2013/ मध्यप्रदेश शासन ने स्पष्ट किया है कि पाठ्यक्रम में गीता के अंशों को शामिल करने के पीछे सरकार की मंशा बच्चों को सभी धर्मों की ज्ञानवर्धक बातों से परिचित कराना है। गीता के अंशों को स्कूली पाठ्क्रम में शामिल करने को लेकर छपी खबरों पर स्थिति स्पष्ट करते हुए शासन ने कहा कि इस संबंध में वस्तु-स्थिति यही है कि स्कूली पुस्तकों को समावेशी बनाने की दृष्टि से गीता के अलावा अनेक धर्मों, संप्रदायों के विषय भी विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन हेतु पाठ्य-पुस्तकों में शामिल किये गये हैं। जिसमें पैगम्बर ‘‘हजरत मोहम्मद की जीवनी‘‘, ‘‘वाकया-ए-करबला’’ और ‘‘गुरू नानक देव’’, ‘‘गौतम बुद्ध’’, ‘‘महावीर स्वामी’’, ‘‘क्राइस्ट’’, ‘‘गरीब नवाज ऑफ अज़मेर’’ पर प्रोजेक्ट कार्य दिये गये हैं। विभिन्न कक्षाओं की पुस्तकों में ‘‘क्रिसमस का तोहफा’’, ‘‘बीवी फातिमा की जीवनी’’, होली, ईद, दीवाली, राखी, ईदुज्जुहा, ओणम, क्रिसमस, दशहरा, गुरू पर्व, महावीर जयंती, बुद्ध जयंती, लोहड़ी आदि त्यौहारों पर जानकारी कविता, कहानी एवं पाठ के रूप में शामिल है। कक्षा 11 में बिशप्स केंडल स्टिक्स वाला पाठ भी है। ईदगाह पर भी पाठ इन पुस्तकों में शामिल है। ईसाई सज्जन दीनबंधु एण्ड्रूज का ‘‘सेवा भाव’’ प्रेरक प्रसंग के रूप में दिया गया है। हकीम इब्नेसिना की भावना धन की अपेक्षा ज्ञान को महत्व देने को स्वीकार कर प्रेरक प्रसंग के रूप में लिया गया तथा इसी में सूफी सम्प्रदाय का भी उल्लेख है। एक अन्य पाठ में अब्दुल कादिर नामक बालक द्वारा सच्चाई और ईमानदारी के गुण द्वारा डाकुओं का सामना करने का प्रसंग है। वह कहता है – ‘‘मेरी अम्मी ने कहा था चाहे जो मुसीबत आए सच ही बोलना। सच बोलने वाले पर अल्लाह की मेहर रहती है’’।
उर्दू की पाठ्य-पुस्तकों में गीता के सिर्फ दो संदेश शामिल किए गए हैं। एक ‘‘नियतं कुरू कर्म त्वम्’’, जो कर्मठता और कर्त्तव्यपरायणता का संदेश है। इस पाठ में स्कूल पढ़ने न जाकर सिर्फ खेलने में समय बिताने वालों को समझाइश है। एक अन्य पाठ ‘‘परस्परं भावयन्तं श्रेयः’’ का है जो ‘‘आओ मिलकर रहें’’ का संदेश देता है। यह पाठ दृष्टिहीन और अपंग का है। इनमें से कोई भी पाठ अपनी प्रकृति में धार्मिक या साम्प्रदायिक नहीं है। इनसे किसी का न धर्म बिगड़ता है, न प्रचार होता है।
इसे अनिवार्य बनाने की किसी मंशा का आरोप इसी बात पर खत्म हो जाता है कि जिन कक्षाओं की उर्दू पाठ्य-पुस्तकों में इन पाठों को शामिल किया गया है, उनमें परीक्षा के आधार पर कक्षा में रोकने का प्रावधान नहीं है। फिर भी यदि किसी छात्र या छात्रा को इन पाठों के पढ़ने में रूचि नहीं है तो इन पाठों को वैकल्पिक माना जाएगा। हमने यही नीति सूर्य नमस्कार के बाबत् भी अपनाई थी।
गीता के व्यवहारिक जीवन में उपयोगी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जो पाठ स्कूल पुस्तकों में जोड़े गए हैं, उन्हें धार्मिक या साम्प्रदायिक नजरिए से देखना गलत है। यह मूलतः नैतिक शिक्षा तथा जिसे भावनात्मक परिपक्वताओं का शिक्षण कहा जाता है, उसके अनुरूप की गई कार्रवाई है।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जनवरी, 2012 में मध्यप्रदेश के स्कूलों में गीता-सार पढ़ाए जाने के शासन के निर्णय के विरूद्ध कैथोलिक बिशप कौंसिल द्वारा याचिका दायर किए जाने पर व्यवस्था दी कि गीता मूलतः भारतीय दर्शन की पुस्तक है, न कि भारत के धर्म पर।
पाठ्य-पुस्तकों में गीता आधारित सामग्री का निर्णय नवीन नहीं है। वरन् वर्ष 2011-12 से गीता के व्यवहारिक एवं नैतिक मूल्यों पर आधारित विभिन्न पाठ्य सामग्री, कक्षा 01 से 12 की भाषा की पुस्तकों में समाहित की गई है। ये पुस्तकें विगत दो वर्षों से शासकीय शालाओं के साथ ही अनुदान प्राप्त मदरसों में प्रचलित है, जिसके संबंध में किसी प्रकार की आपत्ति सामने नहीं आई है।
उक्त सामग्री धार्मिक रूप में शामिल नहीं है। वरन् व्यवहारिक एवं नैतिक मूल्यों पर आधारित पाठ्य-सामग्री कहानी, प्रेरक प्रसंग, आत्मकथा, नाटक, निबंध आदि के रूप में पाठ्य-पुस्तकों में समाहित है। जिसमें राष्ट्रपिता महात्मा गाँघी, सामाजिक संत विनोबा भावे आदि के लेखों के अंश भी पाठ्य-सामग्री के रूप में शामिल हैं।
उपरोक्त वस्तु-स्थिति के आधार पर यह कहना कि, पाठ्य-पुस्तकों में चुनावी या धार्मिक भावना से कोई पाठ शामिल किया गया है, पूर्णतः भ्रामक एवं गलत होगा।