मोहम्मद की गाय

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प्रिय पाठको, स्‍टार टीवी नेटवर्क के मीडिया प्रोफेशनल हैदर अब्‍बास नकवी ने आज के हालात पर केंद्रित एक विचारोत्‍तेजक कहानी खासतौर से मध्‍यमत डॉट कॉम को भेजी है। यह कहानी आपको वर्तमान सामाजिक स्थितियों पर नए नजरिए से सोचने के लिए मजबूर कर देगी। इस कहानी को हम दो भागों में प्रकाशित कर रहे हैं। आज पढि़ए इसका पहला भाग-

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मोहम्मद की गाय

हैदर अब्बास नक़वी

पंजाब के नाभा तहसील के अलीपुर गांव में रहने वाला मोहम्मद अपनी जिन्दगी से बहुत खुश था। उसके तबेले में पांच भैंसे थी और एक गाय, जिसका नाम गौरी था। गौरी और मोहम्मद के मिलने की कहानी भी दिलचस्प है। जनवरी के घने कोहरे में जब मोहम्मद पटियाला में एक बड़े सरकारी अफसर को दूध देकर वापस अपने गांव लौट रहा था, तभी रास्ते में गाय की एक बछिया तड़प रही थी, उस वक्त उसकी उम्र शायद 20-25 दिन की रही होगी, ऐसा लगता था रात को कोहरे की वजह से कोई टक्कर मार कर चला गया होगा।

मोहम्मद ने अपनी मोटरसाइकिल साइड में लगा कर देखा तो बछिया की सांसे चल रहीं थी। बछिया का पिछला हिस्सा बुरी तरह से ज़ख्मी था और ठंड की वजह से खून जम गया था। उसका दर्द उसके चेहरे पर साफ नज़र आ रहा था। मोहम्मद ने अपना हाथ उसके मुंह पर लगाया तो बछिया ने अपनी जीभ से मोहम्मद का हाथ चाटना इस तरह शुरू किया जैसे वो अपनी मां को चाटती रही होगी, न जाने क्यों मोहम्मद की आंखे नम हो गई उसने अपने भाई को फोन कर के बुलाया और मोटर साइकिल पर बछिया को पकड़ कर बैठ गया बछिया को पकड़ने की वजह से उसके ज़ख्म जो ठंड से जम चुके थे सड़क के झटको की वजह से फिर से खुलने लगे और धीरे धीरे मोहम्मद की जैकेट, कुर्ता पजामा, संगरूर के डॉक्टर तक पहुंचते पहुंचते खून से तर हो गया।

डॉक्टर साहब मौजूद नहीं थे। वेटनेरी अधिकारी के कहने पर कर्मचारी ने जख्म साफ करके मरहम पट्टी कर दी और कहा जख्म पहले भरने दो अभी बच्चा है शायद टांगें अपने आप ठीक हो जाएं, और अगर नहीं हुई तो, इसके ज़िंदा रहने का कोई फायदा नहीं होगा और ‘’हां, बाकी पट्टी अपने गांव मे किसी से करा लिया करना’’ । पट्टी के साथ मोटरसाइकिल पर बछिया को लाना मुश्किल था, इसलिये ट्रैक्टर ट्रॉली की गई। रास्ते में बाइक पर सवार मोहम्मद के भाई ने कहा “वैसे ही सुबह से सारा दिन बेकार हो चुका है, शाम को दूध बेचने की तैयारी भी करनी है, मेरी मानो इसे पास की गौशाला में दे दो, वो लोग इसकी देखभाल कर लेंगे, नहीं तो, काम छोड़ कर हर तीसरे दिन पट्टी कराना होगी, फिर भी चल पाये या नहीं चल पाये कुछ पता नहीं’’, मोहम्मद खामोश रहा… भाई ने ट्रैक्‍टर ट्रॉली को गौशाला की ओर मुड़वा दिया।

जमीन विवाद के चलते पुरानी गौशाला को हटा दिया गया था वहां रहने वाली गायें या तो सड़कों पर भटक रहीं थी या किसी व्यापारी की पूंजी में इज़ाफा कर चुकी थी। लोगों से पूछने पर पता चला कि दूसरे पिंड में एक और गौशाला है… रास्ता पूछते पूछते मोहम्मद और उसका भाई जब वहां पहुंचे तो वहां काम करने वाले मजदूर ने कहा “सेठ बाहर गये हुए हैं और किसी भी नई गाय को लेने से मना किया हुआ है’’, मज़दूर से पता चला कि यहां गाय को मानने वाले कम हैं इसलिये जितनी गायें हैं उनके खाने के लिये भी मुश्किल से बंदोबस्त हो पाता है, तबेले में मौजूद गायें, इतनी बूढी हैं कि आये दिन उनका इलाज चलता रहता है और ऊपर से जमीन के बढ़ते दामों के चलते, कोई न कोई पंगा हर रोज़ हो ही जाता है। इसलिये इस बछिया को तो मैं नही रख सकता अगर आपको बात करनी है तो, कल आकर सेठ से कर लेना पर उनका जवाब भी वो ही होगा जो मैंने कहा है ।

दोनों भाईयों ने एक दूसरे की तरफ देखा.. भाई की आंखों में गुस्सा था और मोहम्मद की आंखों में बेबसी ।

ट्रैक्टर ट्रॉली वाला भी परेशान हो गया था बोला “भाईजी आधे घंटे के लिये बोल कर लाये थे, सुबह से बिना रोटी खाये चल रहा हूं अब कहीं नहीं जाऊंगा..मेरा हिसाब कर दो..”

मोहम्मद के भाई ने बड़ी मिन्नतें की और कहा, “बस अब हमें हमारे पिंड अलीपुर छोड़ दो..” बहुत देर तक बात होने के बाद ट्रैक्टर आखिर अलीपुर में मोहम्मद के दरवाज़े पर जा खड़ा हुआ।

मोहम्मद ने संभालते हुए बछड़े को घर के अंदर लाकर आंगन पर पड़े मंजे पर लिटाया। घर में रहने वाले और लोग भी आ गये। आंगन पूरा भर गया, माहौल थोड़ा गमगीन अपने आप बन गया था कि तभी मोहम्मद का तीन साल का बेटा शेरा जो अपनी मां की गोद में था, अपनी तोतली आवाज़ में बोला “..गोरी भैंस…” अचानक सब लोग खामोश हो गये फिर एक सेकंड बाद पूरा आंगन हंसी से गूंज उठा और बछिया का नाम पड़ गया गौरी।

वक्त के साथ गौरी के जख्म भरने लगे… गांव के ही वैद्य से इलाज होने लगा। कई दिन तक पट्टियां चलीं फिर लेप से काम चलाया गया, बाद में लकड़ी के फट्टों से बांध कर खड़ा करने कि कोशिश की गई। कुछ दिन के बाद यह कोशिश कामयाब हुई । मोहम्मद का पूरा परिवार गौरी की देखभाल में लगा रहता था।

गौरी भी वक्त के साथ निखरने लगी, दूध से भी ज्यादा सफेद गौरी का रंग, सींग आगे की तरफ पैने, आंखे इतनी काली की काजल भी शरमा जाये।

गोरी भैंस कहने वाले शेरे को तो मानो कोई दोस्त मिल गया हो, जब भी वक्त मिलता वो गौरी के साथ ही पाया जाता। लेकिन गौरी को जिससे सबसे ज्यादा लगाव या प्यार कहें… वो था मोहम्मद।

आंगन में बैठे बैठे न जाने कैसे, वो मोहम्मद की बाइक की आवाज़ को सुन कर एकदम बैचेन हो जाती और घर वालों को पता चल जाता कि मोहम्मद आने वाला है।

कमरे से मोहम्मद की आवाज़, या खांसने तक से उसके कान खड़े हो जाते थे उसके पास से गुजरता तो अपना सिर उसके शरीर से टकरा देती और जब मोहम्मद अपना हाथ उसके पास लाता तो वो उसी तरह से चाटती जिस तरह से उसने पहली बार मोहम्मद के मिलने पर किया था।

शायद जिसने हमें जिन्दगी दी है उससे इतनी मोहब्बत हम भी करते तो आज जिन्दगी दूसरी होती।

वक्त सब ठीक कर देता है, गौरी भी ठीक हो गई। अब उसको घर के आंगन से तबेले ले जाया गया। जब गौरी आंगन से रुखसत हो रही थी, एक बार फिर मोहम्मद के घर में मोहरम सा मंजर था ।

मोहम्मद का बेटा शेरा बहुत जोर से रो रहा था। बीवी भी उदास थी, मोहम्मद सब को समझा रहा था कि “भई कहीं और थोड़ी जा रही है जरा सी दूरी पर ही तो है, जब दिल चाहो आकर देख लेना’’  पर जिसे नहीं मानना होता है वो कहां मानते हैं।

गौरी खुश थी क्योंकि उसकी डोर सही हाथों में थी सब को रज़ामंद करने के बाद, मोहम्मद गौरी को लेकर तबेले की ओर चल दिया।

गौरी जब घर से तबेले के रास्ते मोहम्मद के पीछे पीछे जा रही थी तो सड़क पर देखने वालों का तांता लग गया था..

उसकी खूबसूरती पर सब वारे जा रहे थे… लोग एक दूसरे को बुला रहे थे… सब की जुबान पर बस यही था ’’देखो मोहम्मद की गाय… देखो मोहम्मद की गाय’’… जैसे जैसे आवाज गूंज रही थी भीड़ बढ़ती जा रही थी और भीड़ को देख गौरी इतरा रही थी और मोहम्मद की छाती फख्र से फूल रही थी।

जलन, हसद और सियासत भी कुदरत की दी हुई वो नियामतें हैं, जो इंसान के साथ परिंदों, चरिंदो को भी मिली हुई हैं। गौरी जब तबेले में पहुंची तो वहां मौजूद भैंसों को उसकी आमद बहुत नागवार गुज़री सबने अपनी नाराज़ी अपने सुर में दर्ज की…

एक भैंस तो इतनी ख़फा हुई की शाम को किसी को थन में हाथ भी लगाने नहीं दिया जो पास आया उसे लात मार कर भगा दिया, भरी हुई दूध की बाल्टी में भी लात मार दी।

गौरी की पहली रात तबेले में बहुत की खौफनाक गुज़री। काली रात में जैसे सफेद चांद चमकता वैसे ही तबेले मे गौरी दिख रही थी और उसको घूर रही थी पांच काली काली आंखे जो आपस में शायद यह कह रही हों कि “कहां से आ गई ये हुस्नपरी’’।

गौरी के लिये यह अनुभव नया था, लेकिन जिसकी जिन्दगी बड़े हादसों से गुज़र कर आती है वो हर तरह कि नजरों और हालात से अपने को संभाल ही लेता है और वक्त के साथ आंखे और सोच सब बदल जाती है। (क्रमश:)

कल पढि़ए-

और अचानक गौरी गायब हो गई….

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