रविवार को जब मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के केरल दौरों की खबरों को संपादित कर रहा था तो मुझे काफी हैरानी हो रही थी। क्या यह सिर्फ संयोग था या फिर इसे संयोग बनाया गया था कि लोकसभा चुनाव के दौरान एक दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहे ये दोनों नेता एक ही समय राजनीतिक रूप से संवेदनशील एक राज्य की यात्रा पर थे।
यात्रा के संयोग की बात अलग भी रख दें तो भी दोनों के केरल पहुंचने और वहां लोगों से संवाद करने की शैली में बहुत कुछ ऐसा था जो कांग्रेस और भाजपा दोनों की भविष्य की राजनीति को पढ़ने में मदद करता है। सबसे पहले प्रधानमंत्री की बात ले लीजिए। बाकी कार्यक्रमों के अलावा वे त्रिशूर के प्रसिद्ध गुरुवायूर मंदिर पहुंचे। दौरे की रचना ऐसी थी कि गुरुवायूर मंदिर दर्शन को ही मीडिया में सुर्खियां मिलीं।
इसके अलावा प्रधानमंत्री ने केरल में पार्टी कार्यकर्ताओं से भी संवाद किया। उस संवाद की बातें ध्यान देने लायक हैं। उन्होंने कहा- ‘’लोग पूछते हैं, जिस केरल में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली, मोदी उसका दौरा करने क्यों आए? इस स्वरचित प्रश्न का जवाब भी मोदी ने खुद ही दिया और बोले- ‘’हमारे संस्कार और हमारी सोच यही है कि लोकतंत्र में चुनाव अपनी जगह, पर जीत कर आने वाले की जिम्मेदारी 130 करोड़ लोगों के प्रति है।‘’
इसके बाद मोदी ने जो कहा वह बहुत गूढ़ अर्थ रखता है। वे बोले- ‘’जो हमें जिताते हैं वे भी हमारे हैं और जो इस बार हमें जिताने में ‘चूक’ गए वे भी हमारे हैं। केरल भी मेरा उतना ही अपना है जितना बनारस है।‘’
जो लोग राजनीति में शब्दों से खेलना चाहते हैं, जो शब्दों को अपना हथियार बनाना चाहते हैं, जो शब्दों से अपनी बात या भावनाएं लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं, उन्हें इस वाक्य का अध्ययन करना चाहिए। गौर करिए, मोदी ने कहा जो लोग हमें जिताते हैं वे भी हमारे हैं और जो इस बार हमें जिताने से चूक गए वे भी हमारे हैं। उन्होंने जिताने वालों के समानांतर, नहीं जिताने वाले कहने के बजाय जिताने से चूक गए लोग कहा।
अब इस ‘चूक’ शब्द में उलाहना भी है,संदेश भी और संभावना भी। आपने मुझे नहीं जिताया फिर भी मैं आपके बीच हूं, यह कहने के बजाय यह कहा गया कि आप जिताने से चूक गए फिर भी आप हमारे हैं। यह मोदी नहीं बोल रहे, भाजपा की रणनीति बोल रही है। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि बंगाल पर अपनी मुट्ठी कसने के बाद भाजपा का अगला टारगेट केरल ही है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने केरल से कम से कम एक सीट की उम्मीद लगाई थी। लेकिन उसे वहां कोई भी सीट नहीं मिली। 20 सीटों वाले इस राज्य में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 15 सीटें जीती हैं, जिनमें वायनाड भी शामिल है, जहां से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जीते हैं। मोदी ने अपनी केरल यात्रा में इस एक शब्द से कई निशाने साधे हैं। उन्होंने एक तरफ केरल के लोगों से कह दिया कि आपने भाजपा को न जिताकर गलती की है, वहीं उन्होंने पार्टी की संभावनाओं को बरकरार रखते हुए लोगों से उम्मीद भी जिलाए रखी कि इस ‘चूक’ को आगे सुधारा जा सकता है। इसीलिए वे बोले जैसे मेरे लिए बनारस है वैसे ही केरल भी है…
एक बात और… मोदी ने अपनी यात्रा में गुरुवायूर मंदिर के दर्शन को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर अपनी पार्टी के एजेंडे को भी बहुत स्पष्ट कर दिया है। गुरुवायूर मंदिर में दरअसल कृष्ण की ही मूर्ति है और मोदी ने अपने गुजरात के द्वारका से गुरुवायूर का संबंध जोड़ते हुए केरल से खुद के रिश्ते को परिभाषित किया।
अब आइये राहुल गांधी की केरल यात्रा पर। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद राहुल तीन दिन के दौरे पर केरल पहुंचे थे। जिस दिन मोदी की केरल यात्रा की खबरें छपीं उसी दिन वायनाड में राहुल गांधी की सभा की खबरें भी छपीं। मोदी के दौरे की खबरों की हेडलाइन्स गुरुवायूर मंदिर दर्शन और केरल की जनता को धन्यवाद से बनीं, जबकि राहुल गांधी की खबरों की हेडलाइन बनी-‘’मोदी समाज में जहर घोल रहे हैं।‘’
वायनाड के कलपेट्टा में एक रोड शो में राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी पर हमलावर होते हुए कहा कि ‘’राष्ट्रीय स्तर पर हमारा मुकाबला जहर से है। नरेंद्र मोदी समाज में जहर घोल रहे हैं, हम उनकी विभाजनकारी नीति के खिलाफ लड़ते रहेंगे। मैं कठोर शब्द बोल रहा हूं, लेकिन मोदी इस देश को बांटने के लिए क्रोध और घृणा का इस्तेमाल कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी प्यार, भाईचारे और सच का नाम है, जबकि नरेंद्र मोदी झूठ और नफरत के नाम पर राज करते हैं। कांग्रेस भाजपा के इस झूठ के खिलाफ लगातार लड़ती रहेगी।‘’
मुझे समझ नहीं आ रहा कि आखिर राहुल गांधी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर कौनसी राजनीतिक उपलब्धि हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव अभी अभी खत्म हुआ है। उसमें राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने मोदी के खिलाफ अब तक का सबसे आक्रामक या यूं कहें कि तेजाबी रुख अपनाया था। लेकिन उसका नतीजा क्या निकला? राहुल समझते रहे कि वे मोदी को गाली देकर अपने वोट पुख्ता कर रहे हैं जबकि असलियत में उनके ऐसे हर शब्द से कांग्रेस के लिए गड्ढे बन रहे थे।
चुनाव से पहले या चुनाव के दौरान भले ही यह बात समझ में न आई हो या दिखाई न दी हो, लेकिन चुनाव बाद के आकलन में तो यह साफ दिख रहा है कि खुद को दी जाने वाली गालियों को मोदी ने और अधिक छाती से चिपकाकर वोट बटोर लिए। तो फिर आखिर राहुल क्यों वैसी ही भाषा का चुनाव बाद भी इस्तेमाल करने को अपनी‘सफल रणनीति’ मान रहे हैं।
मुझे लगता है कि चाहे राहुल हों या ममता बैनर्जी या कोई और… यदि विपक्ष के नेताओं को भाजपा और उससे भी बढ़कर मोदी का मुकाबला करना है तो यह सीखना पड़ेगा कि लोगों के बीच आपकी भाषा क्या और कैसी हो… राजनीति में बहुत सारे फैसले इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि आप कब, कहां, क्या और कैसे बोलते हैं…